Saturday, April 20, 2013

पांच साल की लड़की के साथ दरिंदगी के साथ बलात्कार किया गया। दरिंदगी अपने चरम पर है ....
अगर सख्ती न हुयी तो किसी दिन कहीं यह खबर भी न सुना दे कोई कि पाँच साल के लड़के ने ऐसा किया है .....
कोई डर नहीं तो जो मर्ज़ी करो।जो मर्ज़ी सिखाओ ................................

हमें हर स्कूल में प्राथमिक स्तर से शुरू करके उच्चस्तरीय शिक्षा तक gender senstization तुरंत चाहिए ...हर ऑफिस में इसकी ट्रेनिंग होनी चाहिए ...तुरंत रिपोर्ट हो चाहे ऑफिस हो या स्कूल .....नागरिकों को स्वंय अपनी पोलिसिंग करनी होगी ...कितनी पुलिस बुलाएँगे और कार्यवाही करने वाली पुलिस,रिपोर्ट लिखने वाली पुलिस मिलेगी कहाँ ?
मुझे तो शक है कि इसके लिए शिक्षक /प्रशिक्षक भी कम मिल पाएंगे।

हर एक शख्स, जो इस दर्द को समझता है उसे इस अपराध को रोकने के लिए इसकी मानसिकता पर प्रहार करना चाहिए ....इस लड़ाई में खुद अपने खिलाफ खड़े हो जाना होगा ......
एक तरह से यह जेंडर आतंकवाद है .....







तीन लड़के, तीन घंटे , तीन दिन .....

तीन लडकियाँ ----------------------------

उम्र पाँच साल -
शाम को घर के बाहर खेल रही थी ...गायब हुयी , तीन दिन बाद ग्राउंड फ्लोर में मिली तो वेजाइना और रेक्टम फटे हुए थे ..आपरेशन के बाद डाक्टर को उसमे तीन मोमबतियां ,और तेल की बोतल डाले जाने का पता चला जिससे उस बच्ची को इंटरनल इन्फेक्शन है…

उम्र सोलह साल -
दसवीं कक्षा में पढ़ने वाली लड़की सुबह साढ़े छह बजे अपने घर से स्कूल जाने के लिए निकली ..घर से कुछ दूरी पर ही तीन लड़कों ने उसे जबरदस्ती गाड़ी में डाल लिया और तीन घंटे तक सामूहिक बलात्कार के बाद वापस उसी के मोहल्ले में डाल गये .....

उम्र बीस साल -
सड़क पर जाती लड़की को तीन लड़के जबरदस्ती गाड़ी में खींच ले गये और सामूहिक बलात्कार के बाद लड़की अर्धबेहोसी की हालत में फ्लाईओवर के नीच पायी गयी ...

एक लड़की खेल रही थी अपने घर के बाहर ...उम्र पाँच साल ,
एक स्कूल जा रही थी ...उम्र सोलह साल ,
एक सड़क पर कहीं जा रही थी ...उम्र बीस साल,
क्या गुनाह था इनका?

आज रामनवमी की छुट्टी है और रामजन्म मनाते हुए मंदिरों में प्रसाद
भी बँटेगा ही ...नौ दिनों से देवियों की पूजा हो रही है ..शक्तिरूपा ..चंडी
काली ..दुर्गा ...कहाँ है ? शक्ति .. खड्ग और शेर इत्यादि ?

(पिछले तीन दिन से हुयी ये सभी घटनाएँ दिल्ली में घटी हैं )

क्या लड़के की संवेदना में सेक्स गालियों और गलियों/सड़क की विकृति से शामिल होता है और लड़की की संवेदना में डर के साथ ..???

देख रहीं हूँ अपनी बालकनी से नीचे सड़क पर एक सात साल की बच्ची अपने फरोक के घेर को घुमा घुमा कर नाच रही है और साथ में उसका तीन साल का भाई भी नाच रहा है ...इसी नाच की आंच में झुलस रही हैं मेरी आँख कि जल उठे मेरी हर साँस ......

लड़की तुम इसी तरह नाचती रहना अपने भाई के साथ ...बिना डरे ..
माँ तुम डरना नहीं .....


सवाल उनके लिए उठेंगे जो घिनौने अपराधों को छुपाने में भागीदार होंगे ...उन्हें कौन माफ़ करेगा जो सब समझते है ..बच्चे नहीं हैं वे ... जिम्मेदार हैं मानवता की रक्षा के लिए ....

कौन नहीं है जिम्मेदार ?
कौन अपना मुंह जिम्मेदारी से मोड़कर गर्व कर सकता है ???

दस बारह साल की उम्र तक स्कूल की हर बात लड़का अपनी माँ से बता रहा है। कमसिन और सेक्स जैसे सवालों पर बातचीत शुरू होने लगी क्योंकि स्कूल के दोस्त अपने चुटकुलों में ये सब शामिल कर रहे थे और गालियों का खूब मजेदार इस्तेमाल करके एन्जॉय कर रहे थे। लड़के को उसमें शामिल होना है, उसे भी नये आनंद से परिचय हो रहा है। गलियों से सेक्स का साक्षात्कार करते लड़के को माँ देख रही है।उसे गलत /सही बताने की जैसे ही कोशिश करती है वैसे ही लड़के से संवाद कम होने लगता है। पिता की नज़र में साफ़ है कि लड़के इसी तरह मर्द बनते हैं। माँ बेटे की तरफ से संशय में डूबने लगती है और जवान होते बेटे की प्रक्रिया को रोकना चाहती है लेकिन लाचार पाती है खुद को ..आस पास सब वैसा ही तो है जो वो रोकना चाहती है .. लेकिन कब रोक पाई है गुस्से में पड़ती गलियों की बौछार को जिसे उसने हर जगह पाया है ? मदर इंडिया बन क्यों नहीं पाती माँ ?? वह दुखी है कि बेटा सेक्स को माँ /बहन की गलियों में दोस्तों के साथ एन्जॉय करके जान रहा है और इसे अपने दोस्तों के बीच बार बार छुप छुप के जानता है।जो कुछ गन्दा है सब पोर्न मैगज़ीन और विडिओ में दोस्तों के बीच शेयर होता है ..दोस्ती पक्की होती है इससे । ......................................बेटा अब माँ से हर बात नहीं बताता। ....

बेटी जो चार पांच साल की है उससे माँ ने कहा है कि अपने प्राइवेट बॉडी पार्ट किसी को छूने मत देना .कोई अजनबी अंकल बुलाएँ तो उसके साथ जाना नहीं ...कई तो जान पहचान वाले अंकल के साथ भी माँ जाने नहीं देती जबकि भाई को जाने देती है ...आठ दस साल की लड़की जाने लगती है की जब कोई घूरकर देखे तो यह गन्दी बात है ..लड़की बहुत कम उम्र में सेक्स को डर से पहचानने लगती है ...

.लड़के की संवेदना में सेक्स गालियों और गलियों/सड़क की विकृति से शामिल होता है और लड़की की संवेदना में डर के साथ ..

(जिन लड़कों के पास परिवार और शिक्षा की कोई नैतिकता नही है ...आस पास गली नुक्कड़ में अपराध की दुनिया ही जिनका संसार है उनके लिये क्या कहें??? .....घर से भागे या भगाए गये बेरोजगार ...न प्रेम पाया न मानवता देखी ? )


मैं पुरुष हूँ ........

मैं पुरुष हूँ ...... लेकिन पिता के बाद बूढ़ी माँ अकेली कैसे रहेगी ?और अपना शहर छोड़कर मेरे साथ जाएगी भी नहीं सो अपनी तरक्की के लिए दूसरे शहर नहीं गया ..

मैं पुरुष हूँ .....लेकिन अपने परिवार की खातिर विदेश की नौकरी छोड़कर चला आया ....

मैं पुरुष हूँ ...लेकिन अपनी बहन को समाज के दरिंदों से सदैव बचाने के लिए उसकी मदद करता हूँ ...

मैं पुरुष हूँ ....लेकिन अपनी महिला मित्रों की तकलीफों को समझता हूँ ...

मैं पुरुष हूँ ...लेकिन अपनी प्रेमिका को बहुत प्यार करता हूँ ...

मैं पुरुष हूँ ....लेकिन सच कहता हूँ कि अपनी पत्नी की हर तकलीफ को साझा करना चाहता हूँ ...

मैं पुरुष हूँ ....सिर्फ इसलिए शर्मिंदा होकर दिन रात गालियों से संगसार किये जाने से तो अच्छा होगा कि मुझे गोलियों से भून दो .....

क्या पुरुष होने के नाते मेरी ये तकलीफ़ (??? ) किसी बहस या विमर्श का हिस्सा हो सकती है ?.....




प्रकृति ने बच्चे को दो केयर टेकर दिए माता -पिता ...
लेकिन व्यवस्था ने उसे एक ही प्रत्यक्ष रूप से उपलब्ध करवाया ...एक छीन लिया ...कई जगह तो पिता छोटे बच्चों को कभी गोद में नहीं उठाते ...लोग क्या कहेंगे ...लेकिन आजकल बहुत सारे पिता मार्किट में ,पार्क में बच्चों के साथ देखे जा सकते हैं ...
यह ठीक है कि बच्चा पैदा स्त्री करेगी और छह माह तक दूध भी वही पिलाएगी ...लेकिन उसके अलावा बच्चे की परवरिश पिता भी उसी तरह कर सकता है जिस तरह माँ ....मासूम बच्चों को अपराधी की तरह पेश किया जाना मनुष्यता के खिलाफ है ....बच्चे कैरिअर में बाधक हैं ....इसलिए पैदा न हों ...यदि हुए तो ईश्वर ने तो बच्चे को पढ़े लिखे माता-पिता दिए लेकिन उन्हें अनपढ़ नौकरानी के हवाले किया गया ....माता -पिता दोनों को उनसे प्यार है तो बच्चों के काम ,देखभाल दोनों कर सकते हैं ...नहीं आता तो सीख सकते हैं ...यह उनसे प्यार है ना कि कोई बोझ ....इसे न समझना शर्मनाक है… मासूम बच्चों से प्यार न करना ,उन्हें बोझ समझकर असुरक्षित हाथों में सौंपना मनुष्यता के खिलाफ है ...पिता को परवरिश में ,देखभाल में अपने बच्चों को प्राथमिकता देनी चाहिए ..कभी सोचकर देखिये कि बच्चे यह देख रहें हैं कि उनके माता -पिता उनकी देखभाल को लेकर कितनी लड़ाई कर रहे हैं ....बच्चे उस समय अपनी आँखों में आंसू लेकर इस्वर से प्रार्थना कर रहे होते हैं कि हमें जल्दी से बड़ा कर दो भगवान जिससे पापा मम्मी लड़े नहीं ...यह माँग सभी जगह होनी चाहिए कि हर छोटे बड़े दफ्तर में छोटे बच्चों की देखभाल की व्यवस्था हो , बच्चे बीमार हों तो माता -पिता किसी को भी छुट्टी मिल जाए और बाज़ार, पुस्तकालय ,पार्लर इत्यादि सभी जगह कैंटीन और टॉयलेट और रिसेप्शन की अनिवार्यता की तरह उत्तम क्वालिटी के क्रेच हों ....समाधान खोजे जाएँ ,प्रावधान किये जाएँ ना कि बच्चों को तरक्की में बाधक मानते हुए मनुष्यता के विरुद्ध खड़े होने को बढ़ावा दिया जाए ....




we are very good learner.

हमें सिखाया गया है यही ,
हमें बनाया गया है ऐसा ही ,
स्त्री बनाई जाती है ,पुरुष बनाया जाता है ....
बहस सुन सुनके कान लगातार बहरे होने की धमकी देने लगे हैं ...

तो पढाई लिखाई करके बड़े क्यों हुए ? बच्चे ही रह जाते ...
(यह बच्चों को बदनाम करना है )
सबसे ज्यादा इंसान होते हैं बच्चे , सब समझते हैं ...
कौन क्या कह रह है ...क्या कर रहा है ...

लेकिन बड़े लोगों ने जुलूसों की कतारें लगा दी हैं
एक जुलूस विवाहित औरतों का ,
एक जुलुस अविवाहित स्त्रियों का ,
एक झंडे वाली औरतों का ......
एक युवा प्रगतिशील पुरुषों का ,
एक प्रगतिशील सार्थक सपने देखने वाले अधेड़ पुरुषों का ,
एक स्त्री द्वारा पीड़ित पुरुषों का,

एक हैरान पुरुष और बदहवास भीड़ का ...
क्या कोई बच्चों की पीढ़ी से भी उम्मीद है
जो मना कर दे इंसानियत के खिलाफ सिखाये जा रहे सब कुछ को मानने से ....

ताकि जिम्मेदारी उनकी बन जाए जो सिखाये जाने की दुहाई दे देकर मरते और मारते हैं ....







इस संस्कार और भाषा का निर्माण चाहिए कि
तुम इंसान बनो सिर्फ !
न स्त्री न पुरुष .....

पुरुष स्त्री को मारने के लिए अपराधी घोषित है ...(ताड़न के अधिकारी)

लेकिन उन स्त्रियों का क्या ..
जिनके माता-पिता ने अपने मन में अपनी बेटियों से यह उम्मीद की होगी कि वे बुढ़ापे में उनका ख्याल रखेंगी ...
अपने छोटे भाई की जिम्मेदारी उठाएँगी ....

बेटी ने व्यवस्था का दिया संस्कार शब्दश: निभाया ....
अपने बच्चे पाले और ससुराल का कर्तव्य निभाया .....

व्यवस्था लड़कियों को सिखा नहीं पाई कि तुम स्त्री मत बनो ...
तुम इंसान बनो !!!

इस संस्कार और भाषा का निर्माण चाहिए कि 
तुम इंसान बनो सिर्फ ! 
न स्त्री न पुरुष ..... 

पुरुष स्त्री को मारने के लिए अपराधी घोषित है ...(ताड़न के अधिकारी)

लेकिन उन स्त्रियों का क्या ..
जिनके माता-पिता ने अपने मन में अपनी बेटियों से यह उम्मीद की होगी कि वे बुढ़ापे में उनका ख्याल रखेंगी ...
अपने छोटे भाई की जिम्मेदारी उठाएँगी ....

बेटी ने व्यवस्था का दिया संस्कार शब्दश: निभाया ....
अपने बच्चे पाले और ससुराल का कर्तव्य निभाया .....

व्यवस्था लड़कियों को सिखा नहीं पाई कि तुम स्त्री मत बनो ...
तुम इंसान बनो !!!


औरते अक्सर जानती हैं कि उनके क्या करने का क्या मतलब पुरुष निकालेंगें। देखने ,बोलने ,चलने सब पर निगाह रखी जाती है। लेकिन औरतें आदत डाल लेती हैं और अपने काम से काम रखते हुए अपनी राह चलती जाती हैं। बर्दाश्त से बाहर होने पर थप्पड़ भी रशीद कर देतीं हैं।मर्दों को अपनी दुनिया में औरतों का बोलना अच्छा नहीं लगता। सड़कों पर उनका बेख़ौफ़ चलना ,नुक्कड़ पर उनका खड़ा होना अच्छा नहीं लगता।औरतों के चाल-चलन का हिसाब अन्य जगहों की तरह फेसबुक पर भी हो रहा है। कानाफूसी अब राह चलते फिकरों में बदल चुकी है। सावधान लड़कियों ! जल्दी ही कोई फेसबुकिया एसिड बन सकता है।

मेरे एक टीचर थे जिनकी पत्नी का देहांत हो चुका था। वे जब भी नया सूट सिलवाते थे तो पहनने के पहले ही जो भो कोई घर में आता उसे हैंगर में टंगे-टंगे ही दिखाकर पहले नये सूट की प्रशंसा सुनते। फिर पहनते तो बताते कि इसका चुनाव करने से पहले कितनी दुकानें देखीं और कितने रंगों में से यह चुना है। एक बार तो नया चाकू लाये थे तो उसे भी अपने घर आने वाले विद्यार्थियों को दिखाकर दाम भी बता डाले। अपनी बातें बताने का उन्हें बहुत शौक था। आज जब लोगों को फेसबुक पर सबकुछ शेयर करते हुए देखती हूँ तो उनकी याद आ जाती है। फेसबुक कुछ लोगों के लिए बहुत ही गंभीर बहस का मंच है तो कुछ लोग बहुत ही लाइट मूड में गाना ,खाना, घूमना ,सोना ,सब कुछ बता डालते हैं। कभी- कभी तो बहुत ही रोमांचक लगता है जब कोई बताता है कि उपन्यास का प्लाट दिमाग में चल रहा है या कहानी अभी-अभी पूरी हुई है या लेख कल तक पूरा हो जायेगा।मेरी कहानी का कुछ अंश देखिये ,राय दीजिये।लम्बी कविता का अंश प्रस्तुत है।ग़ज़ल प्रेमी निराश न हों यहाँ शेर बाज़ार भी है। मेरी किताब चार पांच दिन में आने वाली है।लीजिये पुस्तक आपकी सेवा में प्रस्तुत है। किताब की समीक्षा छपी है यहाँ इस लिंक पर पढ़ लीजिये।मैं कल एक कार्यक्रम में गया था ओह आप जा आ नहीं सके कोई बात नहीं रिपोर्ट यहाँ प्रस्तुत है पढ़ लीजिये।फोटो लिंक भी है भीड़ देखकर कार्यक्रम की सफलता का अंदाज़ा लगा लीजिये।अरे आज टीवी पर मेरा कार्यक्रम आएगा ..आपने देखा नहीं ,कोई दुःख नहीं आप बच नहीं सकते ..लिंक यहाँ दे रहा हूँ। मेरे एक मित्र ने सुबह-सुबह का अखबार पढना छोड़ दिया है उसका कहना है कि हर महत्वपूर्ण खबर फेसबुक पर पूरे विश्लेषण के साथ मज़ेदार टिप्पणियों के साथ मिलती है। एक मित्र को अपना खोया हुआ गाना फेसबुक पर मिल गया। यह कितना स्वास्थ्यवर्धक और पर्यावरण के लिए अच्छा है जब केक खाने कि जगह सिर्फ देखकर ही ख़ुशी मिल जाये और फूल तोड़े बिना ही पुष्प गुच्छ पहुँच जाए। कई साफ़ गोया दिल दिमाग का सारा ग़ुबार चैनल,मीडिया,सरकार सभी पर एक साथ निकालकर निवृति पाकर निश्छल जीते हैं। यह एक ऐसा नुक्कड़ बन चुका है जो फ़कीराना मस्ती के साथ हर वक़्त जेब में छंछ्नाता खनखनाता रहता है। उदास पड़ा मन भी यहाँ गुनगुनाता रहता है।राग रंग का शऊर यहाँ बिखरा पड़ा है।हर चेहरा यहाँ कुछ बोलता हुआ सुर्ख है। हर कान यहाँ आँख बन चुका है।गज़ब की जुगलबंदी में शामिल हुए लोग तीसरी आँख से दूसरी दुनिया में झांककर ताली पीटकर लौटते हैं और अपने जीवन में ताली लगाते हैं। ......... ........होली निकट है एक रंग यह भी शामिल करें। .......
(कोई अति संवेदनशील मित्र इसे व्यक्तिगत लेकर बुरा न मानें यह फेसबुक होली है ,सिर्फ सुखद भावनाओं का आनंद लें )





मैंने कभी नहीं सुना कि किसी पुरुष के मुंह पर किसी स्त्री ने तेजाब डालकर उसकी ताउम्र आवाज़ छीन ली हो या सूरत बिगड़ दी हो।इतने खतरनाक इरादों का कलेजा उस आम लड़की के भीतर क्यों नहीं पनपता कभी जो दिन रात अपने मन कि इच्छाओं को बर्फ सा जमाये रहती है अपनी आवाज़ को गले में घोटे रहती है और अपने वज़ूद के लिए प्रदत्त संस्कारों की लड़ाई में पिसती रहती है।लड़की के लिए ऐसी परवरिश का संस्कार ही समर्थन नहीं पा सकेगा कभी? अन्याय के खिलाफ जीरो टोलरेंस का संस्कार लड़की को देने की संस्कृति का समर्थन होना किसी मानवाधिकार के खिलाफ नहीं जायेगा।


कोई बताये कि किसी स्कूल में आज के दिन समारोह का आयोजन हुआ है क्या ?
विश्वविद्यालय में तो सप्ताह मनाये जा रहे हैं ,क्यों विद्यालयों में बच्चों को नहीं जानना चाहिए इसे ?
लडकियों को स्कूल में ही उनके सशक्तिकरण का एहसास बचपन से ही होना क्यों जरुरी नहीं है?
क्यों चिड़ा और चिड़ी की कहानी में चिड़ी बेबकूफ और चिड़ा बुद्धिमान होता है ? 
क्यों पोस्टमैन की पिक्चर में कहीं लड़की नहीं होती ?
क्यों लड़कों के लिए अपने घर और परिवार की महिलाओं और अपने साथ की लड़कियों की परेशानियाँ जानना और उनके लिए मनुष्य होने के नाते संवेदनशील होना महत्वपूर्ण नहीं माना जा रहा है ?
....क्यों अक्सर घर के झगडे के बाद माँ रोती है ? किस तरह लड़कियां स्कूल के बाद घर में लड़कों से अलग जीवन जीती हैं ? किस तरह घर से सड़क तक के रास्ते के मायने दोनों के लिए अलग अलग होते हैं ? लड़के नुक्कड़ को आनंद की जगह मानते हैं और लडकियाँ उन्हीं नुक्कड़ों से डरती हैं?
क्यों स्कूल में बलात्कार की खबर टी वी पर सुनकर अपने ही शिक्षक से डरने लगती हैं लड़कियां ? क्या बचा लेने की संवेदना सहपाठी लड़के में होगी ? कब लड़की में अपनी सुरक्षा की ताकत होगी ? कब संवेदनहीन पुरुषों का खुले आम बहिष्कार होगा ? कब शिक्षक अपना धर्म निभायेंगे ?
कब स्कूल में अध्यापन को महिलाओं के लिए एकदम सही जॉब मानना बंद होगा ? कब स्कूल में अध्य्यन लड़कियों के लिए सुरक्षित होगा?
कब प्ले स्कूल में नन्हे बच्चों को ममता देने की नौकरी कर पाएंगे पुरुष शिक्षक ? कब प्राइमरी के पुरुष शिक्षक से प्रेम और ममता का पाठ पढ़ेगा वह लड़का ,जिसका पिता रोज़ उसकी माँ को पीटता है ? 
सीबीएसई के चेयरमैन ने बाहरवीं में लैंगिक संवेदनशीलता को विषय के रूप में शामिल करने की बात की है। जेंडर अवेरनेस सेल भी बनाया है जो विद्यालयों में जागरूकता बढ़ाने दे लिए मदद करेगा। ugc के चेयरमैन ने भी कॉलेज और विश्वविद्यालयों को एक प्रश्नावली भेजकर छात्राओं की सुरक्षा और जागरूकता को लेकर उठाये जा रहे क़दमों के बारे में जानने का रुख किया है।
काश ! ऐसा हो जाये कि स्कूल में हर बच्चा विमेंस डे celibration की ताकत को जान ले । देवी/देवता और राक्षस बनाने की प्रक्रिया का पर्दाफाश हो। हर आठ साल का लड़का और लड़की आठ मार्च का मतलब जान लें। जब कोई दिवस ऐसा होगा ,तब आंसू मोती से नहीं चमकेंगे बल्कि तब सूरज जल उठेगा मेरी आँख में।


कोई बताये कि किसी स्कूल में आज के दिन समारोह का आयोजन हुआ है क्या ?
विश्वविद्यालय में तो सप्ताह मनाये जा रहे हैं ,क्यों विद्यालयों में बच्चों को नहीं जानना चाहिए इसे ?
लडकियों को स्कूल में ही उनके सशक्तिकरण का एहसास बचपन से ही होना क्यों जरुरी नहीं है?
क्यों चिड़ा और चिड़ी की कहानी में चिड़ी बेबकूफ और चिड़ा बुद्धिमान होता है ? 
क्यों पोस्टमैन की पिक्चर में कहीं लड़की नहीं होती ?
क्यों लड़कों के लिए अपने घर और परिवार की महिलाओं और अपने साथ की लड़कियों की परेशानियाँ जानना और उनके लिए मनुष्य होने के नाते संवेदनशील होना महत्वपूर्ण नहीं माना जा रहा है ?
....क्यों अक्सर घर के झगडे के बाद माँ रोती है ? किस तरह लड़कियां स्कूल के बाद घर में लड़कों से अलग जीवन जीती हैं ? किस तरह घर से सड़क तक के रास्ते के मायने दोनों के लिए अलग अलग होते हैं ? लड़के नुक्कड़ को आनंद की जगह मानते हैं और लडकियाँ उन्हीं नुक्कड़ों से डरती हैं?
क्यों स्कूल में बलात्कार की खबर टी वी पर सुनकर अपने ही शिक्षक से डरने लगती हैं लड़कियां ? क्या बचा लेने की संवेदना सहपाठी लड़के में होगी ? कब लड़की में अपनी सुरक्षा की ताकत होगी ? कब संवेदनहीन पुरुषों का खुले आम बहिष्कार होगा ? कब शिक्षक अपना धर्म निभायेंगे ?
कब स्कूल में अध्यापन को महिलाओं के लिए एकदम सही जॉब मानना बंद होगा ? कब स्कूल में अध्य्यन लड़कियों के लिए सुरक्षित होगा?
कब प्ले स्कूल में नन्हे बच्चों को ममता देने की नौकरी कर पाएंगे पुरुष शिक्षक ? कब प्राइमरी के पुरुष शिक्षक से प्रेम और ममता का पाठ पढ़ेगा वह लड़का ,जिसका पिता रोज़ उसकी माँ को पीटता है ? 
सीबीएसई के चेयरमैन ने बाहरवीं में लैंगिक संवेदनशीलता को विषय के रूप में शामिल करने की बात की है। जेंडर अवेरनेस सेल भी बनाया है जो विद्यालयों में जागरूकता बढ़ाने दे लिए मदद करेगा। ugc के चेयरमैन ने भी कॉलेज और विश्वविद्यालयों को एक प्रश्नावली भेजकर छात्राओं की सुरक्षा और जागरूकता को लेकर उठाये जा रहे क़दमों के बारे में जानने का रुख किया है।
काश ! ऐसा हो जाये कि स्कूल में हर बच्चा विमेंस डे celibration की ताकत को जान ले । देवी/देवता और राक्षस बनाने की प्रक्रिया का पर्दाफाश हो। हर आठ साल का लड़का और लड़की आठ मार्च का मतलब जान लें। जब कोई दिवस ऐसा होगा ,तब आंसू मोती से नहीं चमकेंगे बल्कि तब सूरज जल उठेगा मेरी आँख में।




कोई बताये कि किसी स्कूल में आज के दिन समारोह का आयोजन हुआ है क्या ?
विश्वविद्यालय में तो सप्ताह मनाये जा रहे हैं ,क्यों विद्यालयों में बच्चों को नहीं जानना चाहिए इसे ?
लडकियों को स्कूल में ही उनके सशक्तिकरण का एहसास बचपन से ही होना क्यों जरुरी नहीं है?
क्यों चिड़ा और चिड़ी की कहानी में चिड़ी बेबकूफ और चिड़ा बुद्धिमान होता है ? 
क्यों पोस्टमैन की पिक्चर में कहीं लड़की नहीं होती ?
क्यों लड़कों के लिए अपने घर और परिवार की महिलाओं और अपने साथ की लड़कियों की परेशानियाँ जानना और उनके लिए मनुष्य होने के नाते संवेदनशील होना महत्वपूर्ण नहीं माना जा रहा है ?
....क्यों अक्सर घर के झगडे के बाद माँ रोती है ? किस तरह लड़कियां स्कूल के बाद घर में लड़कों से अलग जीवन जीती हैं ? किस तरह घर से सड़क तक के रास्ते के मायने दोनों के लिए अलग अलग होते हैं ? लड़के नुक्कड़ को आनंद की जगह मानते हैं और लडकियाँ उन्हीं नुक्कड़ों से डरती हैं?
क्यों स्कूल में बलात्कार की खबर टी वी पर सुनकर अपने ही शिक्षक से डरने लगती हैं लड़कियां ? क्या बचा लेने की संवेदना सहपाठी लड़के में होगी ? कब लड़की में अपनी सुरक्षा की ताकत होगी ? कब संवेदनहीन पुरुषों का खुले आम बहिष्कार होगा ? कब शिक्षक अपना धर्म निभायेंगे ?
कब स्कूल में अध्यापन को महिलाओं के लिए एकदम सही जॉब मानना बंद होगा ? कब स्कूल में अध्य्यन लड़कियों के लिए सुरक्षित होगा?
कब प्ले स्कूल में नन्हे बच्चों को ममता देने की नौकरी कर पाएंगे पुरुष शिक्षक ? कब प्राइमरी के पुरुष शिक्षक से प्रेम और ममता का पाठ पढ़ेगा वह लड़का ,जिसका पिता रोज़ उसकी माँ को पीटता है ? 
सीबीएसई के चेयरमैन ने बाहरवीं में लैंगिक संवेदनशीलता को विषय के रूप में शामिल करने की बात की है। जेंडर अवेरनेस सेल भी बनाया है जो विद्यालयों में जागरूकता बढ़ाने दे लिए मदद करेगा। ugc के चेयरमैन ने भी कॉलेज और विश्वविद्यालयों को एक प्रश्नावली भेजकर छात्राओं की सुरक्षा और जागरूकता को लेकर उठाये जा रहे क़दमों के बारे में जानने का रुख किया है।
काश ! ऐसा हो जाये कि स्कूल में हर बच्चा विमेंस डे celibration की ताकत को जान ले । देवी/देवता और राक्षस बनाने की प्रक्रिया का पर्दाफाश हो। हर आठ साल का लड़का और लड़की आठ मार्च का मतलब जान लें। जब कोई दिवस ऐसा होगा ,तब आंसू मोती से नहीं चमकेंगे बल्कि तब सूरज जल उठेगा मेरी आँख में।




अरे इन मानसिक बलात्कारियों के लिए कौन सा रसायन आएगा ????

......तो बच जाती ....
अगर समर्पण कर देती ....किसी ने कहा 
हाथ पकड़ कर भाई बना लेती ...
पाँव पकड़ लेती भगवान् का नाम लेकर .. कहा जा रहा है ...





jnu से उठी थी वह चिंगारी,
जिससे उठी आग की लपटें सब कुछ लपेट ले रहीं हैं ;
वर्ना यह घटना भी गुम हो जाती ...

उस लड़की के दोस्त ने बताया था कि मैंने भी शुरुआत में इसे छुपाने का भरसक प्रयत्न किया था और सिर्फ एक्सीडेंट बताया था ,
लड़की ने भी उससे कहा था कि तुम नहीं होते तो मैं रिपोर्ट भी नहीं करती ....
उन दोनों का शुरूआती ट्रीटमेंट भी आम आदमी के तरीके से हुआ ..

यह विरोध की आवाज के बुलंदी का असर था कि कुछ इतना खास हुआ कि
अब हर तरफ से बदलाव की दुहाई का सुर गूँज उठा है ...परिवार,स्कूल,शिक्षा कानून ,पुलिस ,समाज ..........सब एक बस में सवार हैं

जो महिला संगठन हैं या स्त्री के मुद्दों पर लिखने वाले लोग वे तो पहले भी अपना काम कर रहे थे ,
लेकिन जे .एन . यू .ने दिखाया ki सड़क और क्लास रूम और न्यायालय को एक ही भाषा में बात करनी होगी ....

विरोध की उस पहली आवाज को सलाम .....

1. हम क्या चाहते हैं -
181 महिला एम पी अगली लोक सभा में देखना चाहते हैं या 181 डायल करना ...

181 हेल्पलाइन से पीड़ित होने पर कुछ मदद होने की उम्मीद मिलेगी ..
.जबकि सुरक्षित माहौल और मजबूत महिला जिस तरह बनेगी उसके लिए कानून ,पुलिस और शिक्षा व्यवस्था में सुधार की जरुरत है ,और इसके लिए जिस राजनैतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है वह राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाकर ही संभव हो सकता है। कम से कम इस समय हर महिला महसूस कर रही है शरीर का रौंदा जाना ..तो शायद वह महिलाओं के लिए ताकत से लड़ सकेंगी।।

हम इस हेल्पलाइन को डायल करने के लिए पहले शरीर मन और आत्मे को रौंदे जाने से बचाना चाहते हैं ...
मुसीबत में जहाँ ताकतवर आदमी राक्षस बना कभी अपना, कभी सपना बनकर रौंद रहा हो तो फोन डायल करे का मौका हमे मिलेगा क्या या पहले मिल पाया है क्या 
क्या होगा उन नुक्कड़ों पर अब जिन पर छेड़ी जाती थीं लड़कियां ?
क्या उन पर रोज शोक सभाएँ होंगी ?
बलात्कारी मानसिकता तो हर नुक्कड़ पर टहल रही है !
?




स्कूल में साथ पढने वाला सोलह वर्षीय सहपाठी लड़का यह जानता है कि अगर सहपाठी लड़की के पिता और बड़े भाई को यह पता चल जाए कि लड़की की रूचि पढाई में कम और लड़कों से बात करने में ज्यादा है तो वे लड़की का स्कूल जाना बंद कर देंगे।चूंकि साथ पढने वाली लड़की किसी दूसरे लड़के से बात करती है।इस खुन्नस में उसे सबक सिखाने की मंशा से उसके बड़े भाई तक यह बात सहपाठी लड़का पहुँचा देता है और उम्मीद के मुताबिक लड़की के पिता और भाई उसका स्कूल जाना बंद कर देते हैं।नये जमाने के पढ़े लिखे लोगों ने लड़की के पिता की पिछड़ी मानसिकता पर लानत मलामत जताई।पिता की उम्र पचास की है और जिस सहपाठी लड़के ने शिकायत की वह सोलह साल का स्कूली छात्र है , लेकिन दोनों की मानसिकता ,मंशा एक ही है।क्या शिक्षा प्राप्त करने वाले सोलह वर्षीय लड़के की मानसिकता में पढाई लिखाई से किसी बदलाव की उम्मीद संभव नहीं ? स्कूली शिक्षा पुरुषत्व के पुश्तैनी संस्कारों में कब बदलाव लाएगी कि सहपाठी लड़के साथ पढने वाली लड़कियों पर कब्जे की मानसिकता में ढलने से बच जाएँ और सहयोगी साथी की भावना रखें। या फिर सोलह वर्षीय किशोर और पचास के पिता की संस्कारी मानसिकता में शिक्षा के द्वारा बदलाव की कोई उम्मीद संभव नहीं ?




बोल ही डालो मेरे तथाकथित सुपर हीरो
बता ही डालो अब खुद ही

आखिर किस तरह होती है
लड़कियां देखकर आँखे सेंकने वालों की ट्रेनिंग
कहाँ होतीं हैं ऐसी कक्षाएँ
कौन हैं इनके टीचर

क्या यह वही लोग इस समय आंसू बहा रहे हैं
शांत और संतुलित रहने की अपील कर रहे हैं

तेरह दिनों से विरोध चल रहा है
कोई सड़क पर चीख रहा है
कोई घर में आंसू बहा रहा है
साहस जीने की कोशिश में दम तोड़ रहा है

सवाल परवरिश पर
सवाल शिक्षा पर
सवाल समाज पर

निर्भयता दिवस मना ही लो किरण वेदी की अपील पर
क्या सोच रहे होंगे अपराधी स्वभाव के लोग भी यही, इस समय!

उबलता हुआ दूध बह निकला
भगौना जल जल कर धू धू करने लगा
बदबू से भर गया घर और पड़ोस
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