Saturday, April 18, 2015

आस पास की खबरें-1
____________________
आस पास की खबरें
आदत बनकर उत्तेजना में
किसी की भी जान ले सकती हैं। ....

चालीस फोटो के साथ चार पृष्ठों में
पति की तारीफ़ से भरा पत्र
जब एक पत्नी से शेयर कर दिया
तो ईर्ष्या से भरी उत्तेजना में
कई पतियों ने उसके पति को
दिन दहाड़े पीट -पीटकर मार डाला
इन सब पतियों ने जज के सामने बयान दिया कि
हमें लगातार पिछले कई वर्षों से
यह अपडेट दिया गया है कि
स्त्रियों की चेतना उन्हें
पति के ख़िलाफ़ खड़ा करती है
और हम इस प्रताड़ना के शिकार हैं
वैसे हमें इस आदमी से कोई निजी दुश्मनी नहीं थी
कक्षा में साथ बैठने वाला लड़का
सहपाठी लड़की को कह रहा है -
''अपनी औकात में रह ''
लड़की सुनकर भभक पड़ती है
टीचर ने समझाया कि
इसमें गुस्सा होने जैसी कोई बात नहीं
औरत को पूरी ज़िंदगी यह जुमला सुनना पड़ता है

चौदह वर्षीय लड़की आँखों में आंसू लिए मूक संवाद करती है
तो क्या हमें सिर्फ़ सुनकर ,सहते हुए मुस्कुराना चाहिए
लड़का दूर खड़ा मुस्कुराता है और
लड़की आंसू भरी आँखें लिए घर चली जाती है ....
संवाद के लिए ' भाषा ' की जगह
'आँसू ' और ' मुस्कान ' हमारी
शिक्षा और संस्कार का मूल क्यों है ?
--' संवाद ' और 'औकात 'का अभिप्राय कैसे स्पष्ट होगा ?
संवाद /भाषा
1. "पुरुषों से बहस नहीं करनी चाहिए
बाकि जो करना है स्त्री खूब जी भर करे "- मूलमंत्र...
2. फिर स्त्री की अपनी भाषा कैसे बनेगी ?
संवाद कैसे होगा ?
3. संवादहीन आज़ादी में सुख है क्या !!
यह संवादरहित कैसा लोकतंत्र !
एक औरत ने अपने घर में
रोटी बनाने से
मना कर दिया
लोग हैरान हो गए …।
होटल में रोटी बनाने वाला आदमी
अपने घर में रोटी बनाने से
मना कर देता है
कोई हैरान नहीं होता। …
( रोटी बनाने के लिए
माँ ,बहन घर में हैं और
पत्नी भी लायी गयी है
रोटियाँ बनाने की खातिर। )…
औरत के मौजूद रहते
आदमी का रोटियाँ बनाना शर्म है
और आदमी के होते
औरत का रोटियां न बनाना जुर्म है। …
सुबह से काम पर गयी
वापस लौटी भूखी औरत
लौटकर रोटी बनाते- बनाते
एक रोटी खुद खा लेती है
दूसरों को देने से पहले …
अन्नपूर्णा का यह अपराध
उसकी जान जाने का कारण बना
कोई भी हैरान नहीं हुआ …।
एक औरत ने रोटी माँगने पर
पति को पत्थर फेंककर मार दिया
लहूलुहान पति जब अलग हो गया
तो अपनी रोटी खुद बनाने लगा।
कुछ भी हैरान नहीं हुआ । ....
एक औरत ने तंग आकर देवर और
पति को रोटी में ज़हर दे दिया
दोनों उससे रोटियां बनवाते और
उसे मारते हुए रात को इज्ज़त लूटते थे
लोग हैरान होकर औरत को हत्यारी कहते।
हैरान घबराये लोगों ने
रोटी मेकर मशीन खरीदना शुरू कर दिया
शादी ,पत्नी और रोटी का सम्बन्ध बदल चुका है।
औरतें कर सकती हैं मना रोटी बनाने से
आदमियों ने सीख ली है रोटी बनाना।
रोटियाँ अब पैकेट बंद डिब्बे में मिलती हैं
कक्षा तीन के लड़के / लड़कियों को
दस दिनों तक दो रोटी रोज़ बनाने का होम वर्क मिला है। …
ग्याहरवें दिन की दो रोटियां स्कूल ले जाना है। ....
स्कूल और बाज़ार नहीं चाहते
रोटी को किसी की जान का
गुनाहगार बनाना। …
'' औरत के लिए रोटी का मतलब है
पूरे परिवार के लिए 'रोटी पकाना'
पुरुष के लिए रोटी का मतलब है 'रोटी कमाना।' '
यह मुहावरा बदल निकला है
औरत भी रोटी कमा लेती है
और पुरुष भी सेंकता है रोटियाँ …
रोटी बनाने वाली औरत
अब गर्म तवे के सामने रोती नहीं
रोटी ही खुद को खाने में
शामिल किये जाने को रोया करती है
लोग पिज़्ज़ा ,बर्गर ,मैग्गी ,डोसा जो परोस देते हैं।
रोटी मेकर अब एक मशीन है
रोटी के लिए नहीं चाहिए औरत या पुरुष ....
रोटी अब किसी पार्टी का चुनाव चिह्न है
'रोटी बनाना' सबके पाठ्यक्रम में है
''अगर बिना वेतन के काम करना हो तो खाना बनाना, कपड़े धोना, सिलना, मेंहदी लगाना, साफ-सफाई करना सब काम औरतें करती हैं और पुरुष उस काम को करने में अपनी हेठी समझते हैं... लेकिन इन्हीं सभी काम को वे घर से बाहर पैसे लेकर बड़े सम्मान से कर डालते हैं... दफ्तर के लिए निकलती हूं तो चौराहे पर रोज देखती हूं... एक अधेड़ व्यक्ति को आलू छीलते, सब्जियां काटते, साफ सफाई करते...मगर यदि घर हो तो इसी काम को वो देखेगा तक नहीं...''
यह टिप्पणी Swarn Kanta की वॉल से ले ली है इस उम्मीद में कि कुछ पुरुष अपने -अपने उन घरेलू कामों की सूची अपने नाम लिखेंगें जो वे अपने घर में करते हैं.. (बिना शरमाये कि कोई जानेगा तो मर्दानगी पर हँसेगा ) यहां बैचलर किचन जैसी कोई बात न लिखें -----
स्त्री-धर्म /स्त्री का धर्म !!
बेलपत्र (1987 ) , पहली कहानी गीतांजली श्री, किसी को याद है तो स्त्री और उसकी जाति /धर्म पर की गयीं गर्मागर्म बहसें भी याद होंगी।
आज फिर एक ख़बर पेज ग्यारह पर है , सीमित है डिटेल न्यूज़ देखने के लिए लॉग इन कर लेने का पता है …
विस्तार से देखने पर पूरा किस्सा सामने है कि अपने धर्म से अलग विवाह करने से स्त्री का धर्म बदलेगा ? .......
स्त्री ने सुप्रीम कोर्ट को चुनौती दे डाली है कि विवाह दूसरे धर्म में होने के बाबजूद स्त्री को अपने धर्म में बने रहने का अधिकार रहना चाहिए।
यह उसका संवैधानिक अधिकार है।
' स्त्री विमर्श ' की दशा अंधों के हाथी जैसी हुयी है। जिसने जितना जैसा देखा वैसा समझ लिया !
-किसी के लिए यह पुरुषों से दुश्मनी है तो
-किसी के लिए यह परिवार तोडू और तलाक का जिम्मेदार है
-कोई इसे 'देह विमर्श' कहकर किसी के भी साथ सोने की आज़ादी से जोड़कर हिक़ारत से देख रहा है
-किसी के लिए यह अविवाहित रहने या लिव इन रिलेशनशिप की आज़ादी भर है
-कोई इसे बलात्कारों का जिम्मेदार भी मान रहा है
-कोई इसे चूड़ी, बिंदी, बिछिये के प्रतीकात्मक प्रतिरोध में समेट रहा है
-और भी बहुत कुछ है/होगा …

अपनी भ्रांतियां दूर कीजिये पहले और सबसे पहले जिन स्त्रियों से आप बात या बहस कर रहे हैं उनसे इज्ज़त से पेश आइये। सम्मानजनक भाषा का प्रयोग करें। चाहें यह फेसबुक की बहस हो या साक्षात्कार हो या अपनी बेटी ,पत्नी ,बहन,प्रेमिका से जुड़ा कोई मामला हो।
क्यों नहीं मानते कि यह सम्मान और समान नागरिकता के साथ आपकी जागरूकता का मामला है?
यह स्त्री और पुरुष विमर्श से पहले मानवीयता का मामला है..
स्त्रियाँ एक-एक ईंट जोड़कर अपने खून को पसीने की तरह बहाकर अपनी आने वाली पीढ़ियों लिए घर बनाने की कोशिश में हैं....
बारह से सोलह साल की लड़कियाँ अगर अपनी पीरियड्स की तारीख याद न रख पाएँ और अपनी यूनिफार्म के खून से लाल रंगे होने पर शर्मिंदा हों और इस बात के लिए उन्हें टीचर से भी डाट पड़ रही हो। यह सहने के बाद स्कूल की छुट्टी होने तक उन्हें उसी रंगी सनी यूनिफार्म में चुपचाप गुनहगार की तरह एक कुर्सी पर बैठे रहना पड़े। और फिर किस तरह स्कूल बैग से पीछे दाग को छुपाते -छुपाते आँखों में आँसू भरे घर जाना पड़े तो इस तकलीफ़ को वे नहीं समझ पाएंगे जो जागरूक और सुविधा संपन्न परिवारों और विद्यालयों में पढ़े या पढ़ रहे हैं या लड़के हैं। स्कूल ऐसे विषयों पर कॉउंसलिंग में भी हिचकता है। आखिर तहज़ीब भी कोई चीज़ है कि नहीं। दरअसल अनपढ़ माएँ सलीका नहीं सीखा पायी होंगी या फिर अल्हड़ लड़कियाँ ही बेखुदी में तारीख भूल जाती होंगी। और सुविधा भी नहीं होती कोई । शौचालय तक नहीं होते और होते तो गंदे। ऐसी तहज़ीब को गोली मारकर जादवपुर विश्वविद्यालय की लड़कियाँ खुद ही आगे निकल पड़ी टैबू तोड़ने। शायद कोई राह लड़कियाँ खुद ही निकालने को तुली हैं। ndtv चैनल पर बरखा दत्त का कार्यक्रम नहीं देखा क्या ?
कल ही तो अखबार में पढ़ा था कि मशहूर लेखक कैलाश बाजपेयी को मुखाग्नि उनकी बेटी अनन्या ने दी। और आज यह ख़बर कि माँ को मुखाग्नि देने के कारण भाई ने बहन की हत्या कर दी। जबकि बहन गाँव में सरपंच थी। यह साहस करने और मौत से गुज़र जाती स्त्रियों को सलाम करने का समय है। स्त्रियों के लिए यह बेहद मुश्किल दौर है। … केवल स्त्रियों की जागृति और चेतना से समस्या हल नहीं होगी ,चेतना और जागृति समाज की आवश्यकता हैं। जो हत्या करता है वह केवल एक दिन में हत्यारा नहीं बनता उसकी मानसिक बुनावट सदियों पुरानी है। जिसका एक भी धागा खोलने की कल्पना तक से लोग हिचकिचाते हैं। लोगों से बातचीत और निजी स्तर पर हर एक की शुरुआत के साथ यह प्रशासन का भी मामला है। कोई डर नहीं किसी को कानून का। सरेआम दिनदहाड़े कोई भी हत्या कर देता है ? कितना शर्मनाक है !… उफ़्फ़ ! मरती रहेंगी औरतें जब तक धरती खाली न हो जाये या मारने वाले थक न जाएं।
    लड़का लड़की से बात करना चाहता है!
    तो कैसे करे ?
    समाज में जो तरीके फिल्मों और
    किताबों से सीखे वे तो आज के समाज में
    पिटे हुए और भद्दे माने हैं !
    फिर भी लड़का एक तरीका चुन लेता है
    लड़की के सौंदर्य की प्रशंसा करने का अभ्यास करके आता है
    उम्दा लफ़्फ़ाज़ी और बेहतरीन अदायगी की पुरजोर कोशिश करके
    जैसे ही एक खूबसूरत मुस्कान की उम्मीद करता है कि
    लड़की उसकी कलाई मोड़ती और
    बेल्ट निकालकर पीटती नज़र आती है
    जागरूक समाज की बहादुर पब्लिक
    उस लड़की का साथ देने लगती है
    पिटते -पिटते लड़का बेहोश हो जाता है
    पुलिस और डॉक्टर के मुताबिक लड़के को जब भी होश आता है
    वह एक ही बात बोलता है -
    ''तुम्हारा खूबसूरत चेहरा मेरी आँखों को बहुत हसीं लगता है ''।
    उसके मरने पर
    उसकी माँ की बोली गयी बात
    कई बार टी.वी. पर दिखाई गयी-
    '' वह पिछले कई दिनों से अक्सर पूछता था कि
    माँ तुम्हे बहुत अच्छा लगता है न जब कोई
    तुम्हे खूबसूरत कहता है ....
    और मुन्ना कई बार कहता था फिर
    ''माँ तुम बहुत सुन्दर हो "…
    फिर मैं आइने के सामने खड़ी होती ,
    उससे नज़रें चुराकर मुस्कुराती और
    वह फिर खूब हँसता था। .... ''
    हंसी की बातें करती माँ
    अपने मुन्ने को याद करके खूब जोर से रोने लगती।
    मीडिया अब उस लड़की की तस्वीर
    दिखाने में मशगूल हो जाता जो
    अज़नबी से सुन्दरता की बात को
    छेड़ना मानकर सबक सिखाती है।
    बहसें गर्म हो रही थीं अपने -अपने अंदाज़ में ……
    लड़की कहाँ से सुन्दर है ?
    सुन्दर को सुन्दर कहने में क्या बुराई हो गयी ?
    लड़की को सुन्दर क्यों नहीं होना चाहिए ?
    पाँच से पचहत्तर उम्र की औरत भी
    सुन्दर कहने से खुश हो जाती है
    भला लड़के की जान ले ली
    'सुंदरता' के मानदंड ने।
    चूड़ी ,बिंदी,लिपिस्टिक ,क्रीम
    न जाने कितने विज्ञापनों से
    होर्डिंग्स और अख़बार भरे रहते हैं
    साहित्य और कला की दुकानें
    नखशिख रूप वर्णन से लकदक हैं
    पहले 'ब्यूटी' था फिर
    'ब्यूटी विद ब्रेन' हो गया
    इतना काफी नहीं क्या ?
    क्या सिर्फ़ * ब्रेन * लिख दें ?
    तो सब सेल्फ़ी तस्वीरें हटाओ पहले
    तो पहले रीतिकाल के सौंदर्य को निकालो मुख्यधारा से
    तो तमाम हुस्न की शायरी पर मुक़दमा चलाओ
    तो चित्रकार की कला क्या करेगी ?
    भाषा पर जान लेने वालों ने
    डेली वेळी का क्या कर लिया या
    क्या कर लेंगे उस नए शो का
    जिसमें सेलिब्रिटीज हदें पार कर रहे हैं
    हद क्या है
    कौन बताएगा
    डॉक्टर का हुनर क्या इससे खूबसूरत होगा कि
    लेडी डॉक्टर खुद कितनी खूबसूरत है ?
    लेकिन अनुभवी कहते हैं कि
    खूबसूरत लेडी डॉक्टर की दुकान ज्यादा चलती है !
    खूबसूरत अध्यापिका पॉपुलर होती है
    स्टाइलिश अध्यापक भी ....
    क्या सचमुच … ???
    पाँच साल की बच्ची से मुख़ातिब होते ही
    उसकी ड्रेस और हेयर क्लिप की बात लोग शुरू कर देते हैं
    बच्चे का ध्यान उधर जाने लगता है
    जिन बातों का उसे माहौल दिया जाता है।
    सब कुछ फ्रेम बनाकर सेट है
    लड़का भी बने हुए फ्रेम में से एक चुन लेता है
    और मारा जाता है
    पचपन का आदमी भी रिकॉर्डिंग में इसी का शिकार बन गया
    पचास की माँ भी रोती है बेटे को याद करके ....
    बेल्ट वाली लड़की ने अपने फ्रेम
    खुद रचने शुरू कर दिए हैं
    चेतावनी !
    बने बनाये परंपरा से चुने फ्रेम उठा लेने पर
    जान जोखिम में पड़ सकती है
    अब लड़कियाँ बेल्ट निकल लेती हैं
    पब्लिक भी साथ दे देती है
    कैमरा रिकॉर्डिंग कर लेता है
    परम्परा कूड़े में डाली जा सकती है
    लड़के जान नहीं गँवाना चाहते हैं
    वे नई परम्परा में नई लड़कियों का साथ दे रहे हैं
    छोटी बच्ची गाती है
    नन्ही मुन्नी राही मैं भी
    देश की सिपाही मैं भी !!
    होर्डिंग्स पर चेहरे बदलने लगे
    कभी मदर टेरेसा का चेहरा आता
    तो कभी सुनीता विलियम्स का
    तो कभी सेना की यूनिफार्म पहने परेड करती लड़की का।
    उनका कर्म उनका सौंदर्य है।
    अपनी नज़र का चश्मा नहीं नज़र बदलो
    लड़कियाँ शर्मिंदा होने की जगह
    बेल्ट और कैमरा निकल लेती हैं।
    नज़रिया बदल रहा है
    परम्परा नई बन रही है।
    ____________________________
    KANCHAN
  • Richa Singh Sahi hai di... kai bar sach mein ye antar karna mushkil ho jata hai ki kaun aapki prashansha karna chah raha hai aur kaun aapko parensha karna chah raha hai. Sab kuch babut complex hota ja raha hai.
  • Meera Gupta Han sahi hai kanchan lekin yeh samaj aur khastor se bhartiya samaj hamesha do chehare wala hai proressive bhi aur prampara se labalab bhi. Pragatisheel hona fashion hai aur conventional hona hamari sanskritic virasat. Donon mein koi talmale nahin hai.
  • Kanchan Bhardwaj मैं उनकी तरफ देख रही हूँ जो सृजन और कला से सरोकार रखते हैं
    जो नए फ्रेम रच देने की जिम्मेदारी से जूझते रहने का गर्व /दम्भ रखते हैं
    लेकिन मारा जाता है वह जो परम्परा को निभाता है
    ...See More
  • Meera Gupta Srijan hamare desh main parampara ka hissa hai. Aur yahi baat hamain star to bana deti hai kalakar nahin.
इसी समय में किसी दूसरे देश में लोग इस लड़ाई में कामयाब हो जाते हैं कि कॉफी हाउस में भी अगर बच्चों का डाइपर बदलना हो तो उसके लिए डाइपर चेंजिंग स्टेशन की सुविधा होनी चाहिए और यह न केवल फीमेल रेस्ट रूम में हो ,इसे पुरुषों के रेस्ट रूम में भी होना चाहिए ,क्योंकि पिता भी अगर अकेले छोटे बच्चे को लेकर बाहर आउटिंग पर गया हो तो उसे वाश बेसिन में बच्चे को टाँगे टाँगे डाइपर न बदलना पड़े। और हमारे देश में वर्किंग लेडी इस गिल्ट में घुट जाती है कि मेरे काम करने के कारण बच्चा कितना कुछ सहता है। ईश्वर ने जिन बच्चों को पढ़े लिखे माँ बाप दिए, उन बच्चों की परवरिश एक अनपढ़ नौकरानी करती है डस्टिंग के कपडे से नाक पोछते हुए। फिर इसे सही करते हुए माँ अपनी नौकरी छोड़ देती है। क्योंकि सरकार की तरफ से कोई ध्यान नहीं। और कॉरपोरेट के लोग ध्यान क्यों नहीं दे रहे कि आधी आबादी महिलाओं की काम करेगी तो देश की अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव होगा। यह मैं नहीं कह रही बल्कि दूसरे देश की आर्थिक नीतियों में इसका ख्याल रहता है। दिल्ली में ही एक ब्यूटी पार्लर है जो यह ख्याल रखता है कि अगर बच्चों वाली महिलाएं आएँगी तो उन्हें कोई असुविधा नहीं होगी। छोटे बच्चों की देखभाल के लिए वहाँ सुविधा है। लेकिन मैंने किसी लाइब्रेरी के साथ जुडी ऐसी सुविधा नहीं देखी कि बच्चों वाली माँ जाये तो बाहर उसके छोटे बच्चों के लिए भी कुछ देर के लिए कोई व्यवस्था हो। जबकि कुछ देशों में यह है। हमारे यहाँ मातृत्व की गरिमा पाते ही सब टैलेंट ख़त्म ! नन्हा सा मासूम बच्चा अपनी माँ का अपराधी हो गया। क्या सचमुच दोष बच्चे का है या मातृत्व का है या फिर पिता दोषी हो गया या हमे अपने सिस्टम से मांग करनी चाहिए। यह टैबू से बाहर आने का समय है ..... अपने और अपने मासूमों के अधिकार के लिए आवाज़ दीजिये एक साथ। माँ /पिता बनना कोई अपराध है क्या कि आप घुटें या खुद को सजा दें या बच्चा सजा भुगते।
Kanchan Bhardwaj क्या देश नहीं चाहता कि बच्चे अपनी माँ को काम पर जाते और आते देखें और अपना बचपन भी जियें। अगर उनका बचपन कभी नहीं लौटेगा तो उनकी माँ जो कुछ कर सकती है वह भी तो नहीं कर पायेगी। बच्चे कोई एक दिन में बड़े नहीं होते। कम से कम बीस साल का प्रोजेक्ट है ही। ।तो क्यों माँ को काम छोड़ना पड़ता है। किसी संगीतकार को वाद्ययंत्र के सामने बैठाकर बजाने न दें। या कोई काबिल माँ सब काम छोड़ दे.. एक ही बात है।
अगर मैं अपने समय के असह्य काले धब्बों को
अपने चेहरे पर स्वीकार न करूँ ; तो
यह मेरे लिए आत्मघाती कदम होगा ?
या एक तरह से आत्महत्या का प्रयास !!
यक़ीनन कोई न कोई ,कहीं न कहीं से
मुझे मार डालने की योजना बना रहा होगा
मेरे मारे जाने की जगह कोई एक तय नहीं
यह कोई भी एक देश ,कोई एक शहर
यहां तक कि अपना घर भी हो सकता है।
सिर्फ़ मेरे विचारों के कारण
कोई भी मुझे ब्लॉक कर सकता है
मेरी सांसों को रोक सकता है
मेरे खुले मन की उन्मुक्त अस्वीकृति ही
मेरा आत्मघाती कदम है या आत्महत्या !
अपनी -अपनी किताबों के खूबसूरत कवर को
निहारे जाने का समय नहीं है अब ,
अगर लाल ख़ून ,नीली स्याही और काले समय को
चीन्हे जाने का समय नही है यह ?
तो क्या अपनी मृत्यु के जश्न का संगीत है यह
जो चारों ओर से एक गूँज बनकर मुझे ढक रहा है !
मैं अपने चेहरे की ख़ातिर
लहूलुहान हूँ
एक बेदाग आईने की तलाश में।
_____________________
अगर मैं अपने समय के असह्य काले धब्बों को
अपने चेहरे पर स्वीकार न करूँ ; तो
यह मेरे लिए आत्मघाती कदम होगा ?
या एक तरह से आत्महत्या का प्रयास !!
यक़ीनन कोई न कोई ,कहीं न कहीं से
मुझे मार डालने की योजना बना रहा होगा
मेरे मारे जाने की जगह कोई एक तय नहीं
यह कोई भी एक देश ,कोई एक शहर
यहां तक कि अपना घर भी हो सकता है।
सिर्फ़ मेरे विचारों के कारण
कोई भी मुझे ब्लॉक कर सकता है
मेरी सांसों को रोक सकता है
मेरे खुले मन की उन्मुक्त अस्वीकृति ही
मेरा आत्मघाती कदम है या आत्महत्या !
अपनी -अपनी किताबों के खूबसूरत कवर को
निहारे जाने का समय नहीं है अब ,
अगर लाल ख़ून ,नीली स्याही और काले समय को
चीन्हे जाने का समय नही है यह ?
तो क्या अपनी मृत्यु के जश्न का संगीत है यह
जो चारों ओर से एक गूँज बनकर मुझे ढक रहा है !
मैं अपने चेहरे की ख़ातिर
लहूलुहान हूँ
एक बेदाग आईने की तलाश में।
_____________________
लो चली मैं
अपने भाई की बारात लेकर। ....
भाई, जिसे आता है ज़िंदगी की आग में से भी जीवन बचा लेना।
उसने गार्टन कैसल,(शिमला) में लगी भयानक आग के मलबे से भी बचा लिए थें कीमती सरकारी कागज़ात
सरकार ने सम्मानित किया इसके लिए वीरता पुरस्कार से …

भाई , जिसने इक्कीस बरस की उम्र में पापा के न होने से घर की जिम्मेदारियाँ निभायी
बड़ी बहन के ब्याह की जिम्मेदारी निभायी ,उसे ससुराल भेजा ,फिर
ससुराल में जब उसे मार दिया गया तो बहनोई को जेल भेजा और सजा दिलवाई …
भाई, जिसने माँ की ख़ातिर पहाड़ की नौकरी छोड़ दी क्योंकि
अस्थमा के कारण उन्हें पहाड़ पर दिक्कत रहती, और
अकेले वह उन्हें छोड़ना नहीं चाहता। ....
भाई ,जब नहीं था तब दस बरस की उम्र तक
राखी के दिन बाबा बनखण्डीनाथ के मंदिर के सामने दुआ करती थी
एक भाई देने के लिए। ....
अब उसी की बारात है तो इस बार किताब के मेले नहीं जा रही
बारात लेकर जाना है। …
अगर मुझे अपने बच्चे के लिए किताब लिखनी है तो उसमें कुछ पाठ हटाने और कुछ नए जोड़ने होंगे। …
जैसे :- - वज़ीफ़े के लिए प्रार्थना- पत्र लिखना नहीं सिखाया जायेगा यह तो सरकार और समाज की जिम्मेदारी है बच्चा क्यों प्रार्थना करे ?
-विद्यालय में खेल का सामान नहीं है इसके मंगाने के लिए बच्चा क्यों प्रार्थना करे ? यह तो खेल शिक्षक और प्रिंसिपल की नैतिक जिम्मेदारी है कि फण्ड कहाँ गया ?
-अपनी बीमारी के लिए दो दिन के प्रार्थना पत्र की जगह अपनी माँ की बीमारी में सेवा के लिए अवकाश प्रार्थना -पत्र होगा
-मदर टेरेसा की तरह कोई ऐसा ही फादर नाम हो तो वह होगा जिसने मनुष्य की रोग सेवा तन से की हो ,कोई सुझाव दें।

ऐसा ही और भी बहुत कुछ जोड़ने और घटाने के लिए ……
कुछ आप भी जोड़ें इसमें अपने बच्चे के लिए.…जो आप पुस्तक में जोड़ना और हटाना चाहते हों उनकी किताबों से। ....
भाषा के गंभीर विमर्श के बरक़्स
रोज़मर्रा के जीवन की हक़ीकत : भाषा में क्या रखा है ?
______________________________________________
"जो तुम कुछ कहो तो मैं ध्यान न दूँ
और मैं कुछ कहूँ तो तुम इग्नोर करो"

आपसी समझदारी से
गृहस्थी ,सरकार ,और दुनिया
चलती रहती है.…
…चला लेने का यह गूढ़ मन्त्र
प्रौढ़ अक्सर दिया करते हैं। …
"हमारे सम्बन्ध की ईमानदारी महत्वपूर्ण बात है
भाषा में क्या रखा है .....?"
न जाने कितने प्रेम करने वालों ने
अपने अल्फ़ाज़ कभी मुखर ही नहीं किये
या प्रेम की बात आते ही
उलटबांसी शुरू करके निकल लिए.……
भाषा में क्या रखा है ......?
_______________________
(एक किस्सा कई लोगों से सुना -
एक पति पत्नी कभी लड़ते दिखाई नहीं दिए। पड़ोसियों ,सम्बन्धियों को फिक्र हुयी।
पूछने पर पति ने ईमानदारी से बता दिया कि
''सुबह जब ऑफिस जाते समय मेरे मोज़े,चाबी, नहीं मिलते या किसी और बात पर चिल्लाता ,चीखता हूँ
तो पत्नी आराम से चुपचाप किचन में खाना/टिफ़िन बनाती रहती और चुपचाप सब सुन लेती है.।
शाम को जब मैं घर लौटता हूँ तब पत्नी बच्चों की शिकायत करती है और मेरी लापरवाही और काम गिनवाती रहती है
मैं चुपचाप सब सुनता राजनीति की ख़बरें सुनता रहता हूँ। …इस तरह हमेशा मेरा गृहस्थ फलीभूत रहता है।'' )
'जैसे बहुरे इनका गृहस्थ वैसे सबका हो ' की तर्ज़ पर अक्सर लोग इस फॉर्मूले पर भी सफल गृहस्थ निभा लेते हैं।
इनका भी सार यही - भाषा में क्या रखा है ?
_______________________________________
(भाषा ,साहित्य ,विमर्श और शोध से जुड़े लोगों को इन बातों पर समय क्यों बर्बाद करना चाहिए ?)
लड़का लड़की से बात करना चाहता है!
तो कैसे करे ?
समाज में जो तरीके फिल्मों और
किताबों से सीखे वे तो आज के समाज में
पिटे हुए और भद्दे माने हैं !
फिर भी लड़का एक तरीका चुन लेता है
लड़की के सौंदर्य की प्रशंसा करने का अभ्यास करके आता है
उम्दा लफ़्फ़ाज़ी और बेहतरीन अदायगी की पुरजोर कोशिश करके
जैसे ही एक खूबसूरत मुस्कान की उम्मीद करता है कि
लड़की उसकी कलाई मोड़ती और
बेल्ट निकालकर पीटती नज़र आती है
जागरूक समाज की बहादुर पब्लिक
उस लड़की का साथ देने लगती है
पिटते -पिटते लड़का बेहोश हो जाता है
पुलिस और डॉक्टर के मुताबिक लड़के को जब भी होश आता है
वह एक ही बात बोलता है -
''तुम्हारा खूबसूरत चेहरा मेरी आँखों को बहुत हसीं लगता है ''।
उसके मरने पर
उसकी माँ की बोली गयी बात
कई बार टी.वी. पर दिखाई गयी-
'' वह पिछले कई दिनों से अक्सर पूछता था कि
माँ तुम्हे बहुत अच्छा लगता है न जब कोई
तुम्हे खूबसूरत कहता है ....
और मुन्ना कई बार कहता था फिर
''माँ तुम बहुत सुन्दर हो "…
फिर मैं आइने के सामने खड़ी होती ,
उससे नज़रें चुराकर मुस्कुराती और
वह फिर खूब हँसता था। .... ''
हंसी की बातें करती माँ
अपने मुन्ने को याद करके खूब जोर से रोने लगती।
मीडिया अब उस लड़की की तस्वीर
दिखाने में मशगूल हो जाता जो
अज़नबी से सुन्दरता की बात को
छेड़ना मानकर सबक सिखाती है।
बहसें गर्म हो रही थीं अपने -अपने अंदाज़ में ……
लड़की कहाँ से सुन्दर है ?
सुन्दर को सुन्दर कहने में क्या बुराई हो गयी ?
लड़की को सुन्दर क्यों नहीं होना चाहिए ?
पाँच से पचहत्तर उम्र की औरत भी
सुन्दर कहने से खुश हो जाती है
भला लड़के की जान ले ली
'सुंदरता' के मानदंड ने।
चूड़ी ,बिंदी,लिपिस्टिक ,क्रीम
न जाने कितने विज्ञापनों से
होर्डिंग्स और अख़बार भरे रहते हैं
साहित्य और कला की दुकानें
नखशिख रूप वर्णन से लकदक हैं
पहले 'ब्यूटी' था फिर
'ब्यूटी विद ब्रेन' हो गया
इतना काफी नहीं क्या ?
क्या सिर्फ़ * ब्रेन * लिख दें ?
तो सब सेल्फ़ी तस्वीरें हटाओ पहले
तो पहले रीतिकाल के सौंदर्य को निकालो मुख्यधारा से
तो तमाम हुस्न की शायरी पर मुक़दमा चलाओ
तो चित्रकार की कला क्या करेगी ?
भाषा पर जान लेने वालों ने
डेली वेळी का क्या कर लिया या
क्या कर लेंगे उस नए शो का
जिसमें सेलिब्रिटीज हदें पार कर रहे हैं
हद क्या है
कौन बताएगा
डॉक्टर का हुनर क्या इससे खूबसूरत होगा कि
लेडी डॉक्टर खुद कितनी खूबसूरत है ?
लेकिन अनुभवी कहते हैं कि
खूबसूरत लेडी डॉक्टर की दुकान ज्यादा चलती है !
खूबसूरत अध्यापिका पॉपुलर होती है
स्टाइलिश अध्यापक भी ....
क्या सचमुच … ???
पाँच साल की बच्ची से मुख़ातिब होते ही
उसकी ड्रेस और हेयर क्लिप की बात लोग शुरू कर देते हैं
बच्चे का ध्यान उधर जाने लगता है
जिन बातों का उसे माहौल दिया जाता है।
सब कुछ फ्रेम बनाकर सेट है
लड़का भी बने हुए फ्रेम में से एक चुन लेता है
और मारा जाता है
पचपन का आदमी भी रिकॉर्डिंग में इसी का शिकार बन गया
पचास की माँ भी रोती है बेटे को याद करके ....
बेल्ट वाली लड़की ने अपने फ्रेम
खुद रचने शुरू कर दिए हैं
चेतावनी !
बने बनाये परंपरा से चुने फ्रेम उठा लेने पर
जान जोखिम में पड़ सकती है
अब लड़कियाँ बेल्ट निकल लेती हैं
पब्लिक भी साथ दे देती है
कैमरा रिकॉर्डिंग कर लेता है
परम्परा कूड़े में डाली जा सकती है
लड़के जान नहीं गँवाना चाहते हैं
वे नई परम्परा में नई लड़कियों का साथ दे रहे हैं
छोटी बच्ची गाती है
नन्ही मुन्नी राही मैं भी
देश की सिपाही मैं भी !!
होर्डिंग्स पर चेहरे बदलने लगे
कभी मदर टेरेसा का चेहरा आता
तो कभी सुनीता विलियम्स का
तो कभी सेना की यूनिफार्म पहने परेड करती लड़की का।
उनका कर्म उनका सौंदर्य है।
अपनी नज़र का चश्मा नहीं नज़र बदलो
लड़कियाँ शर्मिंदा होने की जगह
बेल्ट और कैमरा निकल लेती हैं।
नज़रिया बदल रहा है
परम्परा नई बन रही है।
दुनिया भर में स्त्रियाँ दुआ ,व्रत करके
खुद को और समाज को धन्य करतीं कि
मरने के बाद भी मेरे कफ़न का रंग लाल हो…
देखा मैंने, आमहत्या से मरी औरत की मांग को भी
उसका पति सिन्दूर से सजा रहा था
रोज जिसे नीला किया करता था।
जो हत्या से मरी थी
उसके तन को भी लाल दुपट्टा में लपेटा गया
औरतों ने पहनवा दीं हाथों में लाल चूड़ियाँ।

आज देखी एक स्त्री,
जो अनोखी जिद में मरी थी ..
जिद यह कि मरने के बाद देह पर लपेटे गए कपड़े पर
तुम्हारी और मेरी आलिंगनबद्ध तस्वीर प्रिंट हो।
यही उसके वज़ूद के लिए शहादत की सलामी होगी।
देह पर लाल या सफ़ेद कफ़न का नकार था यह
या अपने वज़ूद की कोई अनोखी जिद।
शहर में कर्फ्यू लगा था
प्रेम के मारे जाने के खिलाफ जल उठा था शहर
कफ़न पर तस्वीर का प्रिंट होना मुश्किल था
सभी दुकाने और रास्ते बंद थे
इंतज़ार में थी मृत देह
देह को सड़ने से बचाने का रास्ता क्या हो ?
तस्वीर की जगह लड़का खुद ही लेट गया
उसकी मरी देह का ज़िंदा अरमां बनकर। …
सवाल उसके वज़ूद को बचाने का था
मरी थी जो ज़िंदा देह।
दोनों को अपने फूल गिरा गिराकर
ढकने लगा था वह पेड़
जिसके नीचे रखी गयी थी देह
कर्फ्यू खुलने लगा था जब
देह पूरी ढक चुकी थी हरसिंगार के फूलों से
शहर धुएं से ढका नहीं था
हरसिंगार की खूशबू से महक उठी थी सुबह। …
( कफ़न की दुकानों पर सिर्फ़ सफ़ेद और लाल रंग अब नहीं थे। … )
हथेलियाँ चुन रहीं थी हरसिंगार के फूल।
__________________________________
फिल्म ' हाइवे ' का ड्राईवर किडनैप की गयी लड़की के प्रति सहानुभूति का ऐसा ऐसा व्यवहार करता कि लड़की अपने घर से ज्यादा उसके साथ सुरक्षित समझती खुद को। घर में किसी ने सुनी नहीं उसकी आवाज़। जब घर में आने वाला एक अंकल उसके साथ ग़लत कर रहा था। ड्राईवर संवेदनशील क्यों था ? एक दृश्य में उसकी माँ दिखाई गयी। जिसके साथ उसका पिता दुर्व्यवहार करता था। पिता खुद अपनी पत्नी को अफसरान के पास ले जाता और बाहर उनके फ़ारिग़ होने का इंतज़ार करता। सात आठ साल का था तब वह ड्राइवर। वह समझता था सब। शायद ड्राईवर के भीतर माँ की पीड़ा उसे स्त्री के प्रति संवेदनशील बना रही थी।
कल एक चैनल पर युवा ऊर्जा ऋत्विक अग्रवाल Ritwik Agrawal को देखा जो लड़कियों के पक्ष में साहस के साथ राजनीति के ख़िलाफ़ खड़े होने का हौसला रखे हुए अपनी बात कह रहा था। स्त्री के प्रति संवेदनशील उसका मानस कैसे बना ? उसने परिवार में पिता को स्त्री का सम्मान करते देखा होगा । माँ का सम्मान करते देखा। जब माँ विदेश गयीं दो साल के लिए शिक्षा के लिए। तब पिता ने माँ की इच्छा का सम्मान किया। उन्हें जाने दिया। बच्चों की जिम्मेदारी निभायी। पिता की संवेदनशीलता बेटे तक विरासत में पहुँची। ऐसे पिता Purushottam Agrawal के प्रति हृदय से सम्मान।
एक टैक्सी ड्राईवर वह भी है जिसकी माँ कह रही है कि उसकी गलती है। उसे सजा मिलनी चाहिए।
तो यह कह देना कि संवेदनशीलता घर से शुरू होगी। इतनी मुश्किल क्यों लगती है ? अपने घर की स्त्री का सम्मान सबसे मुश्किल बात है ?जबकि हुस्न वाली प्रेमिका के लिए तो न जाने क्या-क्या लुटाए जाने का इतिहास है। चाँद तारे तोड़ने से ज्यादा मुश्किल बात है अपने घर की स्त्री का सम्मान करना।
तारीखें किस तरह से ज़िंदगी में शामिल हैं। साल दर साल गुजरते जाते हैं लेकिन तारीख़े वही एहसास दे जाती हैं। दिसंबर का महीना कितना कुछ नया आने की आहट देता है। पूरी दुनिया में नए के लिए नई तैयारी चलती है।बहुत कुछ गुज़र जाता है। कहानी बन जाता है। हमारे यहाँ दिसम्बर कई रंग एक साथ लेकर आता है। दिसंबर की दस तारीख़ तीर सी चुभी रहती है दिल में। चाहे महीना कोई भी हो । नौ साल गुज़र गए पापा के बिना। दस तारीख़ दोस्त मीनू की शादी की सालगिरह की ख़ुशी भी है। अगले दिन ग्यारह तारीख़ को बेटी का जन्मदिन मनाना है। तैयारी करो आज दस को ही। सात दिन बाद हमसफ़र का जन्मों-जन्मों साथ वाला उनका जन्मदिन। अठ्ठाईस को इकलौती बची बहन का जन्मदिन है। इस बार दिसम्बर बाईस तारीख़ भी लाया उसे ख़ास बनाकर। बाईस को उसका जन्मदिन है जो अब मेरे घर की हँसी ,घर का गीत बनने जा रही हैं। मेरे छोटे भाई की होने वाली पत्नी। मेरी ढेरों दुआएं इन सबके लिए। भूलती नहीं कि दिसंबर में नानी भी चली गयी थीं। माँ के बिना माँ के एहसास का अंदाज़ा नहीं। उनका कोई भाई बहन नहीं। सिवा बच्चों के। दिसम्बर में माँ ने पति भी खोया और माँ भी। दिसम्बर ने ही माँ को बहू दी ,एक बेटी दी , दामाद दिया ,नातिन दी। मुझे दिसंबर हिला देता पूरी तरह। कभी हँसकर तो कभी रुलाकर ,कभी मुस्कुराकर।
प्रेम करते हुए लड़की को सड़क पर
चीर दिया जाता है
प्रेम के कारण घर में
गला घोंट कर मार दिया जाता है
विद्वानों ने कहा -
''लड़कियों तुम डरो नहीं ,
उठो और प्रेम करो। ''
लड़कियाँ अकेले प्रेम कर रहीं थीं।
लड़कियाँ अकेले जान दे रहीं थीं।
लड़के ,जो उन लड़कियों के साथ थे
उनकी जान भी खतरे में थी ;
लेकिन
प्रेम करती लड़कियाँ बिना डरे
अकेले अपनी जान दे रहीं थीं।
विद्वानों ने विकास किया
लड़कियों की भाषा बदलकर।
उनकी योजना में शामिल नहीं
समाज की भाषा को बदल पाना।।
समाज लड़के हैं,
और लड़के
अपनी भाषा नहीं बदलते।
लड़के कहते हैं -
लड़कियों तुम्हें जीना है अगर
तो तुम आगे बढ़कर जान दो।
जीना है अगर तो
जान की कीमत पर प्रेम करो
लड़कियाँ जीने की उम्मीद में
बार -बार जान देती जाती हैं।
समाज का विकास हो रहा है, और
लड़कियाँ बिना डरे प्रेम करते हुए
अकेले अपनी जान दे रहीं हैं।
_________________________
आसमानी कुर्ता और
धानी चप्पलें पहन लेने पर भी
आसमान और धरती को
अपना मान लेने की गलती
लड़कियां नहीं करतीं। …
सड़कों पर जुलूस,
झंडे और नारे का शोर
लड़कियों को सुरक्षित करेंगे
आँखों देखकर भी लड़कियाँ
इसे सच मान नहीं पातीं। …
'किस ऑफ लव' आंदोलन हो या
'कृष्ण रास लीला' का मंचन हो
लड़कियां खूब जानती हैं
खजुराहो संस्कृति के नेपथ्य का सच। …
मास्टर जी की स्कूली कक्षा हो या
बड़े विश्वविद्यालय का पुस्तकालय हो
लड़कियां जानती हैं
पढ़ाई जा रहीं किताबें रच नहीं पा रहीं
सुरक्षित एहसास का मानस। ....
दहशत को भैरवी के आलाप में
डुबो लेने वाली लड़कियां
अपनी सुरक्षा की घोषणा पर
तत्परता से रच लेतीं हैं अपने लिए
एक नई ताल अपने पांवों तले। …
लड़कियां सीखतीं हैं हर रोज़
लय बदलते ही ताल बदल लेने का हुनर
किताबों और विश्वविद्यालयों के बाबजूद
क्यों शर्मिंदा हो रहे हैं प्रबुद्ध पुरुष ?
आसमान में जड़ी खिड़कियाँ क्यों
जकड़न के श्राप से मुक्त नहीं होतीं ?
और कितने विश्वविद्यालय ?
और कितने पुस्तकालय ?
और कितने बरस लगेंगे तुम्हें
अपनी केंचुल को उतारने में ?
मेरी कक्षा में मेरे साथ बैठने वाले
मेरे साथी , तुम मेरा पहला आश्चर्य !
_______________________________
सड़क -सड़क !!
_____________________
ज्ञान की खातिर
एक लड़की ने सिर पे गोली खायी
बुलंद हौसलों की खातिर
एक लड़की को गँवानी पड़ी अपनी टाँगे
पढ़ने की खातिर
एक लड़की सह लेती है देह पर जुल्म
स्कूल जाने की खातिर
एक लड़की चुपचाप पी जाती अपने आँसू
किताबों की खातिर
इंतज़ार करती एक लड़की अपनी दोस्त का
कुछ कर गुज़रने की खातिर
गुज़र जाती लड़की बलात्कार के भय से आगे
लायब्रेरी पहुँचने की खातिर
चौड़ी सड़क पर लड़कियाँ निकल जातीं नंगे पाँव
अपने सपनों की खातिर
लड़कियाँ अब घर-घर नहीं खेलतीं
जीने के हौसले की खातिर
लड़कियाँ अब सड़क-सड़क चल देती हैं।
गौरव !
एक बड़े जुलूस ने
शक्तिरूपा प्रतीक में समेट दिया
एक बड़े हुज़ूम ने
कोख और अन्नपूर्णा के गौरव में लपेटा
एक कलम ने
समेट दिया सफ़ेद स्याह अल्फ़ाज़ में
फ्रेम में जड़ी गयी एक अंतरात्मा
अपने इंसान होने पर आमादा है.
मलाला यूसुफजई और कैलाश सत्यार्थी को सम्मान मिलने का मतलब है - हर बच्चे को उसका अधिकार , सम्मान और शिक्षा मिलना।(चाहे बच्चा मेरे घर का हो, आपके अपने घर का हो या बाहर का )…
मैं हैरान हूँ कि कुछ ऐसे लोग जो ताली बजा रहे हैं, गौरव प्रदर्शित कर रहे हैं। वे अपने घर के भीतर बच्चों के अधिकारों और सम्मान के प्रति सजगता तनिक भी नहीं दिखा पाते। किसी भी माता -पिता को यह सहज हक़ है कि वह कभी भी अपने बच्चे को पीट सकता है।कोई भी सस्ते होने के कारण कम उम्र के लड़के लड़की को घरेलू नौकर बना लेता है। कोई भी ताकतवर आदमी किसी भी बच्चे का यौन शोषण कर सकता है। न जाने कितने बच्चों की शिक्षा कभी शुरू ही नहीं होती और न जाने कितनों की बंद हो जाती है ? ....
बेहद अफ़सोस है और हैरानी है कि जो अपने घर के बच्चों के लिए ही संवेदनशील नहीं ,वे लोग भी ताली बजाकर अपना गौरव प्रदर्शित कर रहे हैं। जिनके पास अपने बच्चों के साथ संवाद के लिए तनिक समय नहीं और न ही उनकी सुरक्षा की फ़िक्र। फ़िक्र है तो पैसा और प्रसिद्धि पाने की। बाहर के बच्चे ग़रीबी और मज़बूरी के शिकार हैं तो घर के बच्चे भी अकेलेपन और शोषण के शिकार हैं।
मेरी अपील है कि मलाला और कैलाश सत्यार्थी को मिले सम्मान पर ताली बजाते-बजाते अपने घर के बच्चे पर भी एक नज़र डालिये।
मेला हमारा अरमान है ,अज्ञान नहीं !…
___________________________
धर्म है तो मेला है,
…… तो अरमान है,
बच्चों को मेला दिखाना है ,
महिलाओं को मेला देखना है ,
बच्चे गए ,महिलाएं गयीं।

मेले में भगदड़ हुयी ,
बच्चे गिरे ,महिलाएं गिरीं ,
बच्चे मरे,महिलाएं मरीं।
क्यों गिरीं महिलाएं ?
क्यों संभाले नहीं बच्चे ?
गयी ही क्यों मेले में ?
अच्छे कपड़े पहने हुए महिलाएं
ऊँची ऐड़ी की हील चप्पलें जो
खास मेले वगैरह जाने के लिए खरीदी थीं
जिन्हें पहनकर चलने की आदत भी नहीं
न ही महिलाओं को भीड़ में चलने की आदत
मेले की भीड़ में चलने वाली औरतें
कभी मेले ठेले ही तो बस घर से निकली होती हैं
उन्हें कहाँ आदत भीड़ में जाने की/चलने की .....
मेले में जाने वाली औरतों को
कहाँ होती है कहीं जाने की छूट
घर के आदमी ने मना किया होगा तो
कई पड़ोसिन के नाम निकाल लिए होंगे
घर का आदमी भी तो बस
रोज़ काम पर ही जाता है
तनिक मेले में ही तो
मन बहलाने जाते हैं अरमान
नए गमकते कपड़े पहने हुए,
बच्ची के गुब्बारे और सीटी के साथ।
मेला, मतलब बहुत सारे लोग
रोज़ की बदरंग ज़िंदगी से अलग
अच्छे कपड़े पहने हुये
कुछ देर अरमान जी सकें,
फिर से खटने की तैयारी के लिये।
रोज़ जूझते लोगों को मेले का अरमान
भुला देता है हर बार की हुयी भगदड़ और मौतों को।
व्यवस्था तो थी बस 'अँधेरे ' का शिकार हो गयी
अरमान जनता के फिर भी अँधेरे में ज़िंदा रहते हैं
धर्म है तो फिर होगा मेला ,फिर होगी भीड़ ,
फिर जायेंगी औरतें बच्चों को लेकर मेले में।
खुले आसमान में जाने और मिलने जुलने का अरमान
हर ख़ूनी त्रासदी को भगवान की माया में बदल देता है
अरमान ज़िंदा रहेंगे हर मेले के लिए फिर
अँधेरा और अव्यवस्था कितनी भी हो ?
मेले में बिछड़े भाईयों की तो कितनी पुरानी कहानियाँ हैं
भगदड़ की भयानक तस्वीरें हालिया ज़िंदा हैं स्मृति में
तो क्या व्यवस्थापकों का मुँह देखकर बंद हो जायेगा मेला ?
व्यवस्थापकों!
तुम देख लो तुम्हें कितना ख़ून चाहिए हमारा ?
गमकती साड़ी और ऊँची ऐड़ी के सैंडिल और
बच्चे की सीटी का अरमान जब तक है ,मेला रहेगा !
हम छोटे- छोटे अरमानों पर ज़िंदा रहने वाले लोग हैं
मेले में जाते हैं,'मेला' हमें विरासत में मिला अरमान है।...
______________________________________________________

गुरुवार, अक्तूबर 02, 2014
कंचन भारद्वाज
कंचन भारद्वाज जामिया मीलिया इस्लामिया वि वि ,दिल्ली, में पढ़ाती हैं. संपर्क :kanchanbhardwaz@gmail.com
( कंचन भारद्वाज की ये कवितायें अभिव्यक्ति , अर्थ और कहन के साथ बड़ी     कविताओं में शामिल होंगी .)

1. लड़कियाँ 

लड़कियों की किताबें कवर चढ़ी होती हैं
किताबों के कवर के भीतर वे रख लेती हैं प्यार

लड़कियों के बालों से लट निकली होती है
बालों से निकली लट को चिपका लेती हैं गाल से
उनके गाल से चिपका होता है उनका प्यार

लड़कियां अपनी चाय का रंग तय करती हैं
अपनी चाय के रंग में घोलकर पी लेती हैं प्यार
लड़कियां अपने हर रंग को ख़ास बनाती हैं

लड़कियों के पर्स में कई डिब्बियां होती हैं
अपने पर्स की डिब्बियों में न जाने
कितनी बार खोलती बंद करती हैं प्यार

प्रेम पर लिखने वालो तुम्हें पता भी है क्या
लड़कियां कहां कहां छुपा लेती हैं अपना प्रेम

तुम उन्हें गुलाब और गुलाबी गालों में तकते हो
किताब के सूखे फूलों में चुनते हो
तुम्हें क्या पता लड़कियां प्रेम में
कहां कहां होती हैं तुम्हारे भीतर

तुम्हारी चाय के कप में
तुम्हारे बालों की लट में
तुम्हारे कंधे की छांव में
तुम्हारी उंगली के पोर में
तुम्हारे क़दमों की आहट में

लड़कियां नहीं होती सिर्फ
सुर्ख गुलाब और गुलाबी गालों या
न किताबों के पन्नों के बीच रखे सूखे हुए फूलों में

जैसे रख लेती हैं अपने कानों के संगीत में अपना प्यार
तुम उन्हें अपने कैनवस के रंगों में उतार लो

प्रेम की क़लम को थामने से पहले
प्रेमिका के दिल की झन्कार से पहले
ज़रा जान लेना दिल थामकर
लड़कियां कहां कहां छुपा लेती हैं अपना प्रेम
तुम्हें कुछ पता भी है!

2. आहटों का तांडव 

तीन पग में पूरी धरती
नापने का सपना देखने वाली औरत
असल ज़िंदगी में एक सड़क तक
अकेले पार नहीं करती !…

जब आदेश मिलता है
तो अकेली होने पर ज़हरीले जंगल में भी
पाल पोसकर तैयार कर देती है
दो वीर योद्धा …

फिर जब आदेश मिलता है
अग्नि -परीक्षा देने का
तो धरती फोड़ उसमें समा जाने का
हौसला रखती है

हौसले के कारण तो
टांग काट दिए जाने पर भी
एक औरत एवरेस्ट पर चढ़ गयी
एक औरत धरती में समा गयी
एक औरत ने गायब कर दीं
सारी सड़कें अपने ख़वाब में
और नाप ली सारी धरती
तीन पग में।

तीन पग में
धरती नाप लेने वाली औरत
अपनी खिड़की से
सड़क पार का चाँद नहीं ताका करती
वह भर लेती है अपनी दोनों आँखों में
चाँद और सूरज एक साथ
उसके हांथों की उँगलियों से
एक साथ झर उठते हैं
आकाश के टिमटिमाते तारे
जुगनुओं से भर गया है मेरा अहाता
किसी भैरवी की नयी बंदिश
अभी उठने को है....

हौसलों का डमरू
मेरे बादलों में गूँजता है
आहटों के तांडव से थिरक उठता है
कोई नटराज नयी मुद्रा लिए हुए.

3.   ताला , राखी , भाषा , आंखें 

 ताला -
बेबस लटका रहा
घर के बाहर
चाबी के इंतज़ार में। ....

 राखी-
 बंधी पड़ी  रही
पोस्टमैन के पास
कलाई के इंतज़ार में। …

 भाषा-
कतार में रही
उनकी जिद में
पहचान के इंतज़ार में । …

 आँखें-
 देर तक तकतीं रहीं
 सपने में आसमान
 इन्द्रधनुष के इंतज़ार में

4 . प्रतिकिया 

वह  प्रेम लिख रही थी ,
प्रतिक्रिया मिली - क्रांति लिखो

वह  क्रांति करने लगी,
प्रतिक्रिया मिली - प्रेम करो

वह बायो पढ़ने लगी ,
प्रतिक्रिया मिली -आध्यात्म जियो

वह घुँघरू की दुकान खोलकर बैठ गयी ,
 प्रतिक्रिया नहीं मिली

 इस बार कला जागी थी
 पोस्टर बनने  लगे,
 कविताएँ छपने लगीं ,
 घुंघरू की दुकान के सामने खड़ी स्त्री ने अचानक
 ब्रेकिंग न्यूज़ का बैकग्राउंड म्यूजिक बदल दिया है ,
 अब गिफ्ट में घुंघरू का चलन चल निकला है


5  . धीमी आवाज़ का शोर 

उसकी दबती धीमी आवाज़ को
तेज कर सकने की हिम्मत मुझे चाहिए

नहीं सुननी उसकी आवाज़ केवल अपने कान में
चाहती हूँ कि उसकी आवाज़ और उसकी पीड़ा से
गूँज उठे यह धरती और ब्रह्मांड्

उसे धीमे से कहने की आदत है
उसमें प्रतिष्ठित लोगों के सामने घबराहट है
वह चाहकर भी चीख नहीं पाया कभी
उसकी पीड़ा में घुट गयी उसकी आवाज़ की तेजी

उसने बच्चों को देखा तेज दौड़ते हुए
उसने बच्चों की तेज आवाज़ को भी सुना
उसने भी औरों की तरह तेज़ दौड़ना चाहा
उसने भी औरों की तरह तेज बोलना चाहा

लेकिन उसके पाँव औरों की तरह नहीं थे
उसे कोई नहीं दे सकता सामान्य पाँव
लेकिन उसकी दबी हुयी आवाज़ तो तेज हो सकती है

उसकी धीमी आवाज़ उसकी घुटी हुयी पीड़ा है
उसकी दबती आवाज़ को तेज किया जा सकता है
उसके हौसले को ऊँचा करने की कोशिश में
उसकी आवाज़ भी ऊँची उठती जायेगी क्या ?

उसकी आवाज़ को तेज चीखना सिखाना है
उसकी घुटन को उससे बाहर निकालना है
उसके बँधे हाथ कंधे से ऊपर तक खड़े करने होंगे
उसका हाथ सिर्फ़ कोहनी तक ऊपर उठता है

कितना संकोच है उसके हाथों में, उसकी आवाज़ में
उसके मन की पीड़ा में,उसके मन की जरूरतों में

वह धीमी आवाज़ में तेज़ गति से जल्दी से
अपनी बात कहकर चुप हो जाना चाहता है
लेकिन अपनी आँखों के सपनों में वह चुपचाप
ख़ुद को किसी ऊंचाई पर अकेले देखता है

सपने देखने वाली उम्र में बच्चे तो
"शोर वाली जेनरेशन" का ताना सुनते हैं
लेकिन वह तो तेज आवाज़ निकालने के संकोच में
धीमे से ही कुछ कहकर जल्दी से शांत हो जाना चाहता है

मैं उसकी धीमी आवाज़ से उठती
किसी आक्रामक बैचेनी में हूँ

उसकी दबती धीमी आवाज़ को तेज़ करने की हिम्मत चाहिए

6  . लाल ग़ुलाब ....!!

मुझे चाँद नहीं चाहिए तुमसे
न ही कोई लाल ग़ुलाब !
गुलाब की खेती मैंने कर ली है और
चाँद की ओर मैंने कदम बढ़ा दिए हैं
न मेरे होंठों को गुलाबी पंखुड़ियाँ कहो और
न अपनी उँगली से मुझे चाँद का ख्वाब दिखाओ
मेरे होंठों में सवालों के काँटे हैं और
मेरे ख़वाब में मेरा पूरा आसमान
मैं सिर्फ़ ग़ुलाबी और लाल रंग कब तक पहनूं
तुम मेरे लिबास का रंग तय न करो
स्त्री !! तो तुमने रच ली नयी
जो खुले आम तुमसे प्रेम करे
तुम मेरी आँखों में न देखो, न रंग भरो मुझमें
एक अपना नया चित्र खींचो, कोई नयी बात बोलो
नहीं चाहिए मुझे तुमसे कोई ग़ुलाब न कोई चाँद
न रंग, न कोई ख़वाब , न कोई स्वप्निल प्रेमकथा
न अपने लिए चाहिए तुम्हारी रची कोई नयी भाषा
मैं एक नयी भाषा के साथ तुमसे संवाद करना चाहती हूँ

7. अभी तो उसे पैदा होने दो !

हाँ ,उस माँ को मालूम है
बेटी के होने का मतलब
कितना समझाया उसे कि
बेटी भी पढ़ -लिखकर आगे
तुम्हारा सहारा बन सकती है
नहीं माना उसने एक बार भी
आँसू भी नहीं थम सके उसके
न ही उसने मुझे कहने दिया -
अभी तो उसे पैदा होने दो !
वह खुद ही लगातार
एक के बाद एक ,
कई-कई किस्से
सुनाये जा रही थी लगातार
जीने की कोशिश में मरती हुई
मारी जाती ,जलाई जाती हुई
जलती हुयी ,घुटती हुयी ,तड़पती हुई
लड़कियों के किस्से-दर-किस्से
उन्हें घर में ही मारा और
जला दिया जाता
बिना किसी डर के।
वह माँ थी
आज ही बेटी के
पैदा होने से पहले ही
उसे जवान होकर मरता हुआ देख रही थी
"जल्लादों ने बहुत तड़पाकर मारा उसे
उनकी माँगों का मुँह बंद ही नहीं होता था"
अपनी अजन्मी बेटी की
जवानी की मौत पर
ज़ार-ज़ार रोये जा रही थी.।
उसके आँसुओं ने
जबड़ा थाम लिया था मेरा ,
और शब्द बहे जा रहे थे
उसके आँसुओं से मिलकर।
मैं अपनी धुन में
किसी नदी की राह में
उन अनवरत आँसुओं को
मिला देना चाहती हूँ
जो सींच सके उस धरती को
जो लड़कियों की लाशों के मलबे से
हर तरफ बंजर हुयी जाती है
एक हरा भरा उद्यान जहाँ
लड़कियाँ चिड़ियों सी हँसे
और इन्द्रधनुष सी चमके
उनके उन्मुक्त आकाश को
कोई धुआं काला न कर सके
कोई चहक घुटन न बन सके
बस करो !
अभी उसे पैदा तो होने दो।
उसे जिन्दा रहने की लड़ाई आती है
उसके साथ पूरी नई फसल का भरोसा है।
वह मार दिए जाने वाले
इन आंकड़ों से नहीं डरेगी
यू .पी और बिहार में सबसे ज्यादा होती हैं
दहेज़ हत्याएं और
कन्या भ्रूण हत्या के आंकड़ों को तो
आँसू पोंछती माएँ रास्ता दिखा देंगी।

8 . बादलों के सफ़ेद फाये !

बंजर ज़मीन से टकराकर
बदहवास लौट आती है
दबी हुयी कोई चीख़
थके पांवों से बेहाल
छोड़कर अपनी चप्पलें
अपनी क़ैद में वापस !
फिर चढ़ जाती हैं नंगे पांव
ऊँचे ख़ूबसूरत पहाड़ों पर
लिपट-लिपट जाती है
हवा के किसी झोंखे से
उड़ जाती बादलों के फाये पर
बहने लगती है बेलगाम
तेज़ बहते पानी की लहरों संग
खिलखिला उठती है !
पानी की लहरों के बीच
किसी पत्थर पर बैठ
वह दबी हुयी चीख़
जो बरसों बाद
घर से बाहर भागती है.…
सुना नहीं गया उसे कभी भी !
न आज जब वह खिलखिला उठी
न तब जब उसे दबा दिया था जोर से
बहरे और गूँगे होने का चलन
अब हमारी चमकदार पहचान है
हम आबाद शहर के चौराहे पर हैं
जिसकी हर राह की मंज़िल
किसी वीरान बस्ती से मिलती है
जहाँ चीखें बेख़ौफ़ खिलखिलाती हैं
वीरान बस्ती का पता सबकी ज़ेब में है
ज़ेब में नन्हीं पाज़ेब खनकती है
ज़ेब में कोई लोरी सिसकती है
ज़ेब से जब निकल भागता है कोई मिल्खा
तब दुनिया के हाथों से ताली बज उठती है
वीरान बस्ती में हर रात
किसी थियेटर के मंच पर
यही रंगीन जश्न होता है
फ़िर कोई चीख बेख़ौफ़
खिलखिलाकर
बदहवास लौट आती है
किसी बंज़र ज़मीन से टकराकर
थके पांवों बेहाल
छोड़कर अपनी चप्पलें
अपनी कैद में वापस !
उसकी गोद में गिर पड़ते हैं
नीले बादलों के सफ़ेद फाये









  • हमारी मासूम लड़कियाँ क्या जाने ,
    कौन मलाला ?
    _________________________
    उसकी उम्र 17 साल है । वह दिखने में बहुत सुन्दर मासूम है ।
    बालों को सजाने का तरीका और
    मुस्कुराने का हसीन अंदाज़ उसे खूब पता है।
    वह जब जी चाहे घर पर भरपूर नींद सोती है।
    वह खूब जी भरकर कार्टून देखती है।
    उसे मैग्गी पकाना खाना खूब आता है।

    उसे कहाँ मालुम किसी मलाला (16 ) के बारे में ?
    उसे किसने बताया दुनिया भर की लड़कियों के किसी अधिकार के बारे में ?
    उसे कहाँ पता कि उसे क्या-क्या नहीं पता अपने बारे में ?
    उसके भीतर क्यों उठे कोई आग
    कि उसे मरने से पहले बोलना है
    भले ही उसने वज़ूद के बंकरों पर
    आग बरसाते बम फटते देखे हों
    कि उसे मरने से पहले बोलना है
    भले ही उसकी आवाज़ कोई न सुने
    उसने जाना है कि बोलने वाली लड़कियाँ
    बुरी और बदनाम मानी जाती हैं और
    ज्यादा जानने पर जान को भी खतरा है
    वह नादाँ बने रहने की अदाएं जानती है
    ज़िंदा रहने की ख़ातिर नादाँ चेहरा लिए
    मासूम अदाओं के लिबास में लिपटी लड़की
    हमारी मलाला है क्या ....?
    जो पढ़ने के लिए लड़ती नहीं
    जो मरने से पहले बोलने की जिद नहीं रखती
    जो गोलियों से बहुत दूर गुड़िया और कार्टून के खेल
    और मैग्गी के स्वाद लिए सोलहवें साल की भरपूर नींद सोती है।
    न जाने कितनी मासूमाऐं हमेशा जीने की ख़ातिर
    कभी नहीं बोलती और भरपूर सोयी नींद में रहकर
    लज़ीज स्वाद और खूबसूरत अदाओं में जिन्दा हैं।
    हमारी मासूम लड़कियाँ क्या जाने
    कौन मलाला ?
    कैसे बनती मलाला ?
    जो बच्चों की खातिर लड़ती हो
    जिसने चार सौ विद्यालयों को
    खाक में जलते देखा हो
    जिसने पढ़ने जाती लड़की का
    पढ़ाई करने का हक़ छिनते देखा हो
    जो भाइयों के ख़िलाफ़ बोलने उठ खड़ी हो।
    मलाला और फूलनदेवी में फ़र्क़ पर बातचीत किन पाठों में होगी
    कौन चाहेगा इनके बारे में मासूम लड़कियों को बताना
    कौन रखना चाहता अपने घर में
    एक मलाला ,एक फूलनदेवी !
    कोई क्यों चाहेगा मलाला जैसी बहन ,बेटी
    या फूलनदेवी जैसी पत्नी या माँ !!
    (भले ही पढ़ने के हक़ बहनो के छीने गए हों भाइयों की खातिर
    और पतियों ने सालों तक घर में कैद पत्नी के किये बलात्कार)
    सब जग नौ देवियों की आस्था से जगमग है
    कानों में देवी के छंदों का संगीत रोज़ बज रहा है !
    __________________________________
    उन दिनों से पहले कहाँ थी यह समझ कि ज़िंदगी हर वक़्त इम्तहान लिया करती है.…
    1 - जून के महीने में जब राजधानी पानी की किल्लत से जूझ रही हो। ऐसे में भले ही आप पॉश कॉलोनी में रहते हों और आपने 'नये मेहमान ' एकांकी पढ़ा हो तब भी क्या फ़र्क़ पड़ेगा आपकी मुश्किल में। अगर ऐसे में कोई मेहमान आपके घर आ जाये। उनके साथ छोटा बच्चा भी हो। तो जब तक पास के मार्केट से बिसलेरी वाटर केन आएगा तब तक भले ही सामने के फ्लैट में पानी के दो टैंक भरे हों और आपके घर एक बूँद भी पानी न हो। तब भी पड़ोसी आपको एक भी बोतल पानी माँगने से भी नहीं देगा क्योंकि उसे नौकरानी से सुबह-सुबह अपने घर का फ़र्श और कपडे धुलवाने हैं। खैर। ....
    (माना कि ज़िंदगी इम्तहान लेती है )
    2 -जब आप ऑफिस जाने से पहले बच्चे को किसी प्ले स्कूल में छोड़ते हों और अचानक किसी दिन वहाँ पहुँचकर आपको पता चले कि आज वहाँ छुट्टी है। और आपके ऑफिस में आज कोई जरूरी मीटिंग है। परिवार और रिश्तेदार का कोई व्यकित शहर में नहीं है। तब कोई ऐसा दोस्त जिसका बच्चा आपके बच्चे की उम्र का हो। उस वक़्त दोस्त की शक्ल में ईश्वर नज़र आता है। आप बच्चे को दो घंटे के लिए वहाँ छोड़कर मीटिंग करके वापस बच्चे को लेने आ जाते हैं। लौटने पर बच्चा बिना पायजामे के मिलता है। क्योकि बच्चे ने पहना हुआ पायजामा गन्दा कर लिया था। बच्चा भी थोड़ा परेशान मिलता है क्योंकि गाँव में पले हुए बच्चों की तरह कभी भी उसे बिना पायजामे के रहने की उसे आदत नहीं थी। आपको परेशानी हुयी मन में कि दोस्त ने अपने बच्चे का पायजामा या दूसरा डाइपर क्यों नहीं पहना दिया। खैर …
    (माना कि ज़िन्दगी इम्तहान लेती है )
    3 - जो दिल्ली को जानते हैं उन्हें पता है कि यहाँ नर्सरी में तीन साल के बच्चे के दाखिले के सामने तीस साल के अनुभव और सारी पढ़ाई लिखाई गयी तेल लेने। आप सिर नीचे करके उल्टा नाचने को तैयार रहते हैं। मतलब यह कि स्कूल वाले केवल एक घण्टे का समय देकर कोई भी नया कागज़ लाने को कह दे , तो आप उससे बिना बहस किये सीधे कागज़ लाने की जुगाड़ में निकल जायेंगे। आपके साथ तीन साल का बच्चा गाड़ी में बैठे -बैठे सो गया हो। और आपकी घरेलू नौकरानी भी छुट्टी पर गयी हो। तब आप पुराने कटु अनुभव के बाबजूद बच्चे को किसी ऐसे दोस्त के घर एक घंटे के लिए छोड़ देंगे जो आपके बच्चे को खूब पसंद करता हो और उसे क्यूट - क्यूट कहकर उसके खूब फोटो खींचता हो। जब आपने स्कूल का माँगा कागज़ जमा करके बच्चे का नर्सरी दाखिला लेकर विजय भाव के साथ दोस्त के घर थैंकफुल पहुंचे अपने बच्चे को लेने ;तो दरवाजा खोलते ही दोस्त ने दरवाजे पर ही बच्चे को दे दिया और उसकी पॉटी शु पर आपको एहसान तले रौंद डाला। खैर.... (माना कि ज़िन्दगी इम्तहान लेती है )
    4 - किसी बोर हो रहे अकेले रहने वाले मित्र ने आपको शाम मज़े से बिताने के लिए अपने घर बुलाया हो और बात -बात में उससे कोई हल्का -फुल्का कोई छोटा सा फेवर आपने अपने लिए उससे कह दिया हो। ऐसे में मित्र उस काम के लिए मना करने की बजाय सीधे आपको अपने घर से चले जाने को कह दे। यह ख्याल भी न रखे कि उसने खुद ही तो बुलाया था शाम मज़े से गुजरने के लिए। तो आपको उठकर चले आने और पूरी स्थिति समझ पाने में कितनी भी मुश्किल हो सकती है। क्योंकि आपने तो उसको दोस्त समझकर ही कुछ उम्मीद कर ली थी। खैर…
    (माना कि ज़िन्दगी इम्तहान लेती है )
    घरों में अक्सर बच्चे स्कूल से रटाया हुआ गाना दोहराते हैं -बोली कोयल मीठे बोल
    देती कानों में रस घोल
    हम बच्चे भी मीठा बोलें
    सबके कानों में रस घोलें
    इससे कितना सुख पायेंगे
    सबके प्यारे बन जायेंगे।
    सबके प्यारे बन जाने का स्वप्न जिस ज़ुबान में बच्चे सीख रहे हैं। उनके पाठ ज़िंदगी के अनुभवों में उतरकर कहाँ फलीभूत होंगें , जब वे ज़िन्दगी के इम्तहानों से गुजरेंगे ?
    (बंद मुँह से बोलते हुए )