Saturday, April 18, 2015

आस पास की खबरें-1
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आस पास की खबरें
आदत बनकर उत्तेजना में
किसी की भी जान ले सकती हैं। ....

चालीस फोटो के साथ चार पृष्ठों में
पति की तारीफ़ से भरा पत्र
जब एक पत्नी से शेयर कर दिया
तो ईर्ष्या से भरी उत्तेजना में
कई पतियों ने उसके पति को
दिन दहाड़े पीट -पीटकर मार डाला
इन सब पतियों ने जज के सामने बयान दिया कि
हमें लगातार पिछले कई वर्षों से
यह अपडेट दिया गया है कि
स्त्रियों की चेतना उन्हें
पति के ख़िलाफ़ खड़ा करती है
और हम इस प्रताड़ना के शिकार हैं
वैसे हमें इस आदमी से कोई निजी दुश्मनी नहीं थी
कक्षा में साथ बैठने वाला लड़का
सहपाठी लड़की को कह रहा है -
''अपनी औकात में रह ''
लड़की सुनकर भभक पड़ती है
टीचर ने समझाया कि
इसमें गुस्सा होने जैसी कोई बात नहीं
औरत को पूरी ज़िंदगी यह जुमला सुनना पड़ता है

चौदह वर्षीय लड़की आँखों में आंसू लिए मूक संवाद करती है
तो क्या हमें सिर्फ़ सुनकर ,सहते हुए मुस्कुराना चाहिए
लड़का दूर खड़ा मुस्कुराता है और
लड़की आंसू भरी आँखें लिए घर चली जाती है ....
संवाद के लिए ' भाषा ' की जगह
'आँसू ' और ' मुस्कान ' हमारी
शिक्षा और संस्कार का मूल क्यों है ?
--' संवाद ' और 'औकात 'का अभिप्राय कैसे स्पष्ट होगा ?
संवाद /भाषा
1. "पुरुषों से बहस नहीं करनी चाहिए
बाकि जो करना है स्त्री खूब जी भर करे "- मूलमंत्र...
2. फिर स्त्री की अपनी भाषा कैसे बनेगी ?
संवाद कैसे होगा ?
3. संवादहीन आज़ादी में सुख है क्या !!
यह संवादरहित कैसा लोकतंत्र !
एक औरत ने अपने घर में
रोटी बनाने से
मना कर दिया
लोग हैरान हो गए …।
होटल में रोटी बनाने वाला आदमी
अपने घर में रोटी बनाने से
मना कर देता है
कोई हैरान नहीं होता। …
( रोटी बनाने के लिए
माँ ,बहन घर में हैं और
पत्नी भी लायी गयी है
रोटियाँ बनाने की खातिर। )…
औरत के मौजूद रहते
आदमी का रोटियाँ बनाना शर्म है
और आदमी के होते
औरत का रोटियां न बनाना जुर्म है। …
सुबह से काम पर गयी
वापस लौटी भूखी औरत
लौटकर रोटी बनाते- बनाते
एक रोटी खुद खा लेती है
दूसरों को देने से पहले …
अन्नपूर्णा का यह अपराध
उसकी जान जाने का कारण बना
कोई भी हैरान नहीं हुआ …।
एक औरत ने रोटी माँगने पर
पति को पत्थर फेंककर मार दिया
लहूलुहान पति जब अलग हो गया
तो अपनी रोटी खुद बनाने लगा।
कुछ भी हैरान नहीं हुआ । ....
एक औरत ने तंग आकर देवर और
पति को रोटी में ज़हर दे दिया
दोनों उससे रोटियां बनवाते और
उसे मारते हुए रात को इज्ज़त लूटते थे
लोग हैरान होकर औरत को हत्यारी कहते।
हैरान घबराये लोगों ने
रोटी मेकर मशीन खरीदना शुरू कर दिया
शादी ,पत्नी और रोटी का सम्बन्ध बदल चुका है।
औरतें कर सकती हैं मना रोटी बनाने से
आदमियों ने सीख ली है रोटी बनाना।
रोटियाँ अब पैकेट बंद डिब्बे में मिलती हैं
कक्षा तीन के लड़के / लड़कियों को
दस दिनों तक दो रोटी रोज़ बनाने का होम वर्क मिला है। …
ग्याहरवें दिन की दो रोटियां स्कूल ले जाना है। ....
स्कूल और बाज़ार नहीं चाहते
रोटी को किसी की जान का
गुनाहगार बनाना। …
'' औरत के लिए रोटी का मतलब है
पूरे परिवार के लिए 'रोटी पकाना'
पुरुष के लिए रोटी का मतलब है 'रोटी कमाना।' '
यह मुहावरा बदल निकला है
औरत भी रोटी कमा लेती है
और पुरुष भी सेंकता है रोटियाँ …
रोटी बनाने वाली औरत
अब गर्म तवे के सामने रोती नहीं
रोटी ही खुद को खाने में
शामिल किये जाने को रोया करती है
लोग पिज़्ज़ा ,बर्गर ,मैग्गी ,डोसा जो परोस देते हैं।
रोटी मेकर अब एक मशीन है
रोटी के लिए नहीं चाहिए औरत या पुरुष ....
रोटी अब किसी पार्टी का चुनाव चिह्न है
'रोटी बनाना' सबके पाठ्यक्रम में है
''अगर बिना वेतन के काम करना हो तो खाना बनाना, कपड़े धोना, सिलना, मेंहदी लगाना, साफ-सफाई करना सब काम औरतें करती हैं और पुरुष उस काम को करने में अपनी हेठी समझते हैं... लेकिन इन्हीं सभी काम को वे घर से बाहर पैसे लेकर बड़े सम्मान से कर डालते हैं... दफ्तर के लिए निकलती हूं तो चौराहे पर रोज देखती हूं... एक अधेड़ व्यक्ति को आलू छीलते, सब्जियां काटते, साफ सफाई करते...मगर यदि घर हो तो इसी काम को वो देखेगा तक नहीं...''
यह टिप्पणी Swarn Kanta की वॉल से ले ली है इस उम्मीद में कि कुछ पुरुष अपने -अपने उन घरेलू कामों की सूची अपने नाम लिखेंगें जो वे अपने घर में करते हैं.. (बिना शरमाये कि कोई जानेगा तो मर्दानगी पर हँसेगा ) यहां बैचलर किचन जैसी कोई बात न लिखें -----
स्त्री-धर्म /स्त्री का धर्म !!
बेलपत्र (1987 ) , पहली कहानी गीतांजली श्री, किसी को याद है तो स्त्री और उसकी जाति /धर्म पर की गयीं गर्मागर्म बहसें भी याद होंगी।
आज फिर एक ख़बर पेज ग्यारह पर है , सीमित है डिटेल न्यूज़ देखने के लिए लॉग इन कर लेने का पता है …
विस्तार से देखने पर पूरा किस्सा सामने है कि अपने धर्म से अलग विवाह करने से स्त्री का धर्म बदलेगा ? .......
स्त्री ने सुप्रीम कोर्ट को चुनौती दे डाली है कि विवाह दूसरे धर्म में होने के बाबजूद स्त्री को अपने धर्म में बने रहने का अधिकार रहना चाहिए।
यह उसका संवैधानिक अधिकार है।
' स्त्री विमर्श ' की दशा अंधों के हाथी जैसी हुयी है। जिसने जितना जैसा देखा वैसा समझ लिया !
-किसी के लिए यह पुरुषों से दुश्मनी है तो
-किसी के लिए यह परिवार तोडू और तलाक का जिम्मेदार है
-कोई इसे 'देह विमर्श' कहकर किसी के भी साथ सोने की आज़ादी से जोड़कर हिक़ारत से देख रहा है
-किसी के लिए यह अविवाहित रहने या लिव इन रिलेशनशिप की आज़ादी भर है
-कोई इसे बलात्कारों का जिम्मेदार भी मान रहा है
-कोई इसे चूड़ी, बिंदी, बिछिये के प्रतीकात्मक प्रतिरोध में समेट रहा है
-और भी बहुत कुछ है/होगा …

अपनी भ्रांतियां दूर कीजिये पहले और सबसे पहले जिन स्त्रियों से आप बात या बहस कर रहे हैं उनसे इज्ज़त से पेश आइये। सम्मानजनक भाषा का प्रयोग करें। चाहें यह फेसबुक की बहस हो या साक्षात्कार हो या अपनी बेटी ,पत्नी ,बहन,प्रेमिका से जुड़ा कोई मामला हो।
क्यों नहीं मानते कि यह सम्मान और समान नागरिकता के साथ आपकी जागरूकता का मामला है?
यह स्त्री और पुरुष विमर्श से पहले मानवीयता का मामला है..
स्त्रियाँ एक-एक ईंट जोड़कर अपने खून को पसीने की तरह बहाकर अपनी आने वाली पीढ़ियों लिए घर बनाने की कोशिश में हैं....