Monday, May 27, 2013

ज़ुर्म का पाठ 
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नहीं, यह बिलकुल गलत है 
छोटे-छोटे बच्चों के हाथों में बंदूकें दे देना 
औरतों का अदालत में जाकर बलात्कारी की हत्या कर देना 

नहीं, यह बिलकुल गलत है
बच्चों की नयी मासूम आँखों में नुकीली धारदार ख़बरें चुभ देना
मासूम किलकारी को चीख में बदल देना 

नहीं, यह बिलकुल ही गलत है 
शीलवती को रौंदकर बिना कपड़ों के नंगा घुमाना
गौरवमयी माँ का अपनी ही कोख उजाड़ देना 

नहीं , यह बिलकुल ग़लत है 
इंसानी रूप में पैदा होकर हैवान बनने की प्रक्रिया रोज़ देखना 
गेहूँ उगाने वाले का एक रोटी के लिए तरसकर मर जाना 

नहीं , यह बिलकुल ही गलत है 
सब गलत- गलत को बार- बार लिखना और बार- बार पढना
समाचारों में सब गलत- गलत का बार-बार छापना 

एक ऐसे पन्ने की तलाश में रुंध रही है साँस 
जिसमें सब सही-सही कहा/लिखा जायेगा 
जिसे बच्चों को रोज़ बार- बार रटाया जायेगा 
जिसमें मनुष्य की हर शक्ल को इंसान माना जायेगा ................. 
_________________________________________________kanchan
चुप रहो  तुम ..................
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जब बाहर गोलियां चल रही हों  
क्या हमें उस समय  चिड़िया और सुहावने मौसम पर 
एक सुन्दर कविता पढ़ लेनी चाहिए ....................

जब मौत ने आकस्मिक रूप से हमें हर तरफ से  घेरा हो 
क्या हमें उस समय बच्चों को आसमान का
कोई  सबसे सुन्दर तारा उन्हें देर तक दिखाना चाहिए ...........

जब मानवीयता के नये शब्दकोश पर देर तक बहस चल रही हो 
क्या हमें उस समय अपने इलाके का 
सबसे लोकप्रिय लोक संगीत सुनना चाहिए ...................

चीख की गर्द से आसमां भर गया हो जब 
क्या हमें उस समय दर्द से बिगड़े हुए अपने आइने  को 
ताजे गीले अखबार से देर तक पोंछते रहना चाहिए .............
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कंचन 

Thursday, May 23, 2013

"लिलीज़ ऑफ द फ़ील्ड्स ' जो भविष्य के बारे में कुछ नहीं सोचते .."
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एक दिन एक तेईस -चौबीस साल की लड़की अपने साथ एक सोलह -सत्रह साल की लड़की को लेकर सामने आ खड़ी हुयी .....
दोनों वर्किंग वीमेन हॉस्टल में रूममेट थीं। बड़ी लड़की अपनी ट्रेनिंग के बाद नौकरी कर रही थी और छोटी पढ़ रही थी ..दोनों में बड़ा प्यार दिख रहा था क्योंकि उनमें एक दूसरे फिक्र दिखाई दे रही थी।
 दरअसल बड़ी लड़की छोटी लड़की की चिंता कर रही थी कि इसके इम्तहान होने वाले हैं और ये हैं कि बार- बार किसी के ख्यालों में गुम हो जाती हैं ,...किसी के मोबाइल की घंटी का इंतज़ार करते करते ही सारा वक़्त गुजार देती है ......
सोलह -सत्रह साल की लड़की ने भी अपनी पलकें नीची किये हुए हामी भरी ,जैसे अपना किया गुनाह कबूला हो .....
उसका हामी भरना था कि मेरा मन  कहीं भीतर तक लबालब होने लगा।  मन के साथ आँख तक हरी भरी हो गयी। 
आँख ने देख लिया था मन की उस पहली प्रेमिल सुनहरी रंगत भरी छुअन को जिससे वह  लड़की सराबोर हो रही थी।
मैंने उस बड़ी लड़की की तरफ देखा जो छोटी लड़की की शिकायत कर रही थी .......मेरे भीतर उसके लिए दुआ में मेरे हाथ उठ रहे थे .....
मैं लौट रही थी कई साल पहले जब मेरे साथ की कई लड़कियाँ  अपने कानों में घंटियाँ सुन रहीं थीं ....
घाटियाँ बजने पर हमेशा ख़ुशी की परन बज उठती  हैं ...
स्कूल में , मंदिर में,गिरजाघर में, और मोबाइल में .......

मैंने उस छोटी लड़की  की झुकी हुयी पलकों को सुनानी चाही  वह कहन जो  निर्मल वर्मा ने ईसा के हवाले से  लिखी -  "धूप में खिले-खिले 'लिलीज ऑफ द फील्ड' ,जो भविष्य के बारे में कुछ नहीं सोचते "......
प्रेम की पहली छुअन में खोये रहना बार -बार बिलकुल ऐसा ही है -
 "लिलीज ऑफ द फील्ड ,जो भविष्य के बारे में कुछ नहीं सोचते "......
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कंचन 

Wednesday, May 22, 2013


हौसला कोई काट नहीं सकता ...............

अरुणिमा सिन्हा ,
तुम्हें गुंडों से कोई डर नहीं ...
तुमने गुंडों का विरोध किया तो उन्होंने चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया ...
तब एक्सीडेंट में पाँव कटा ...
तुमने अपने हौसले नहीं खोये ...
तुम्हारा हौसला एवरेस्ट की चोटी तक चला गया ..
तुम अंग गंवाकर एवरेस्ट पर पहुंचने वाली पहली महिला बन गयीं ...

हौसला कोई काट नहीं सकता .................................
________________________________________kanchan

ये 'मदर इंडिया ' और बछेंद्री पाल का ख्याल
मन से निकलता क्यों नहीं ?
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लड़की छेड़ने वाले अपने जवान बेटे को पीटती माँ मेरे दिलो दिमाग पर छाई क्यों रहती है ....मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यास 'गुनाह बेगुनाह ' में भी माँ अपने उस बेटे की हत्या चाकू मार मारकर कर देती है जो अपनी सौतेली बहन के साथ मना करने के बाबजूद कुकर्म कर रहा था ...

तो क्या सारी बात ट्रेंनिंग देने और हौसले की है ?????????

विरोध करने पर अरुणिमा को गुंडों ने ट्रेन से नीचे फेंक दिया ....
पैर कटा ......... पैर काटने के बाबजूद
अरुणिमा को बछेन्द्री पाल ने ट्रेंनिंग दी
अरुणिमा ने एवरेस्ट की ऊंचाई पर चढ़कर
अपने हौसले का झंडा फहराया ..............................................

अब उनकी बात
जिन्हें जिन्दा जला दिया जाता है ...
जिनकी ट्रेनिंग में डर ठूंस दिया जाता है ...
जिन्हें सारी इन्द्रियों के बाबजूद
अँधा ,गूंगा ,बहरा , अपाहिज और
अज्ञानी (शिक्षित होने के बाबजूद)
होने की ट्रेनिंग बचपन से दी जाती है ................
जो कहा जाये वही करो ,जहाँ ले जाया जाये वहीं जाओ ,
अपने मन की मत सुनो ,पढाई और डिग्रियों के बाबजूद सब कुछ पूछकर करो ..........................

यहाँ भी सब डराने /डरने की ट्रेंनिंग का मामला है ,
चुप रहने की ,डरने की ट्रेंनिंग .....................
घुप्प अँधेरे कमरे में डूबे इनके हौसले ???
इनके हौसले एवरेस्ट की ऊँचाई तक पहुँचे कैसे ,
कोई बहुत अधिक संख्या में बछेंद्री पाल का पता बाँटो ..........

मदर इंडिया तुम उनके दिलो दिमाग तक भी पहुँचो
जिनके बेटे कुकर्मों में धंसे जा रहे हैं
अक्सर नमी गिरामी शख्सियतों के
अपने बेटे अपना और उनका नाम डुबोते देखे जाते हैं
अपना नाम कमाने में लगे रहे ........
अब मदर इंडिया कैसे याद आएगी ...........

बछेंद्री पाल और मदर इंडिया तुम कहाँ हो ???
संस्कार और ट्रेंनिंग का फर्क अपने भंवर में मुझे बहा ले चला है ............
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कंचन

Wednesday, May 15, 2013

मेरी मुस्कान अब सुबकती है ,रोती नहीं ..........................
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आज उससे मिली ,तो वह तेज आवाज़ वाले वीडियो गेम देखता नहीं मिला बल्कि किसी बेबसाईट पर बच्चों के सशक्तीकरण के लिए कोई कानून ढूंढ़ रहा था। उसकी उम्र है दस साल।
मैंने मामले को जानने की कोशिश की,.... तो उसकी माँ ने पहले तो हँसते हुए कहा कि यह मेरे लिए पुलिस या जुलुस की तलाश में है ....
िर उदास और दुखी होकर बताने लगीं कि कल बॉस ने देर तक ऑफिस में रोक लिया था तो इसके पापा ने मेरे आने के बाद इसकी पिटाई कर दी जबकि उस समय इसकी ऐसी कोई गलती नहीं थी ...दरअसल वे मेरे देर तक ऑफिस में रुकने से नाराज थे , लेकिन उन्होंने पिटाई बच्चे की कर दी ...फिर किसी ने खाना नहीं खाया तो ... मैंने फिर गुस्से में इसकी पिटाई कर दी ...मैं नाराज हुयी तो गुस्सा फिर बच्चे पर ही निकला ..मैंने भी इसको मारा।
बस तभी से यह किसी बेबसाईट की तलाश में है। इसकी टीचर ने इसे कक्षा पाँच में ही यह सिखi दिया है कि बेब साईट पर हर समस्या का कोई न कोई हल निकल आता है ...बताओ जब हम कोई हल नहीं निकाल पाते तो कोई बेब साईट क्या करेगी ...
कोई हल होता तो क्या हम इसे मारते ...जब इसकी टीचर ने इसे एक हल्का थप्पड़ ही मर था तो इसके पापा तुरंत स्कूल लड़ने पहुँच गये थे।

लेकिन बच्चा अब भी चुपचाप अपने लिए सशक्तिकरण की कोई राह किसी वेब साईट पर तलाश रहा था...............................................

क्या बच्चे भी सशक्त हो सकेंगे कभी ?
क्या मासूम खिलखिलाहटों के सशक्तिकरण की कोई उम्मीद है ?
क्या बच्चे स्त्री सशक्तिकरण के साईड इफेक्ट में सुबकते दिखते हैं ?
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(पति ने पत्नी को नहीं मारा क्योंकि पत्नी सशक्त है/सक्षम ..है ...पति की स्थिति तो पहले से ही सशक्त है ...पिटता तो हर तरफ से कमजोर ही है ....

क्या सशक्तिकरण की गूँज में बचपन की चीखें हमें सुनाई नहीं देतीं ..?)
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Saturday, May 11, 2013

प्रतिकिया:
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वह  प्रेम लिख रही थी , 
प्रतिक्रिया मिली - क्रांति लिखो------ 

वह  क्रांति करने लगी, 
प्रतिक्रिया मिली - प्रेम करो ---------

वह बायो पढ़ने लगी ,
प्रतिक्रिया मिली -आध्यात्म जियो ......

वह घुँघरू की दुकान खोलकर बैठ गयी ,
 प्रतिक्रिया नहीं मिली ...............

 इस बार कला जागी थी  
 पोस्टर बनने  लगे,
 कविताएँ छपने लगीं ,
 घुंघरू की दुकान के सामने खड़ी स्त्री ने अचानक
 ब्रेकिंग न्यूज़ का बैकग्राउंड म्यूजिक बदल दिया है ,
 अब गिफ्ट में घुंघरू का चलन चल निकला है ...........................
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कंचन