Tuesday, June 18, 2013

 कदमताल बनता फोटो 
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जो सदियों तक 
कोमा में पड़ी रही अनवरत 
अचानक बुदबुदाने लगी 
बिना रुके बोलती रही लगातार .........

कान कहीं हैं नहीं 
सुन कोई नहीं रहा कुछ 
फिर भी जीभ चलती जा रही है लगातार ...... 

काट रही है अपने धागे 
ढूंढ रही है पाँव के घुँघरू 
घुँघरू की रस्सी के निशां बाकी हैं .......

कोमा में पड़ी स्त्री अचानक 
थिरक उठती है 
उसके कान गायब हैं 
संगीत उसकी आँखों में है 
जीभ अपनी चाल में है 
पाँव और जुवां कदम ताल कर रहे हैं .....

पचास की उम्र में 
अपना बीस साल पुराना फोटो 
बार -बार देखना चाहती है 
आईने से भी ज्यादा 

जवां उम्र की लड़की को 
दिखाती है अपना पच्चीस का फोटो 
चिहुँक कर बताती है अपना पूरा ब्यौरा 

खुश है कि अपने फोटो में ताज़ा और जवां है 
तेज़ी से मुद्रायें बदलती नाचती जा रही है लगातार ..................
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कंचन 
झील पर फ्लेमिंगो आते हैं
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एक सुंदर झील , 
जहाँ आते हैं फ्लेमिंगो ......

झील के नीचे
 डूब गया है एक भरा पूरा
 शहर ..........................

जो कभी खिलखिलाता था 
जहाँ बजता था संगीत 
गूँज थी घंटियों की 
थाप थी तबले की 
तीज-त्योहार की रौनक थी 
आँखों में सपने थे झिलमिल रंगीन ....

ब्याही लड़कियों की आँखों लम्हा -लम्हा 
डूब रहा होता है भीतर मायके का शहर  
खुबसूरत गृहस्थ के नीचे हर रोज़
 देखती हैं ब्याही आँखे अपने डूबते शहर को 

 किसी तेज लहर का बहाव नहीं 
लेकिन बहता है शहर उनकी रग-रग में 
कोई सड़क बहती नहीं ,
धँसता नहीं कोई मोहल्ला ,
सब साबुत जीवाश्म हैं 
सुन्दर झील के नीचे 

झील के ऊपर खिले हैं कमल -दल  
झील के उपरी तल पर आते हैं फ्लेमिंगो ........
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कंचन 

Monday, June 17, 2013

ज़मीन पक्की है ........
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न जाने कब से जमा करती रही हूँ
 ईट ,गारा ,बजरी ,रेत 
एक मकान बनाने को ,
ज़मीन कहीं थी ही नहीं ...................

अब जब तुमने दे ही दी हैं
अपनी पक्की ज़मीन
तो फिर मेरा मकान भी 
 हाज़िर है 'हमारा 'आशियाँ बनने के लिए  .................

 बारिश के सुनहरे मौसम में
कभी बह न जाये पक्की ज़मीन 
और टूट जाए हमारा ख़्वाब 
इस दुआ में हाथ ऊपर उठे हैं ................

ईंट ,गारे,सीमेंट तो मेरे अपने हैं 
ज़मीन के  पक्केपन का भरोसा  
तुम्हारी अपनी कुदाल के पैनेपन 
और नज़रों के पसीने में है ..................

तुम्हारी खमोशी में दरारें दिख रही हैं,
धीरे-धीरे  से नहीं अब 
तुम्हे जोर से कहना होगा 
ज़मीन पक्की है ...मकान हमारा है।
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कंचन 

Sunday, June 16, 2013

पिता या पितृत्व / फादर या फादरहुड .......
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फोन पर बात करती छोटी बच्ची के लिए  
पापा,माने- चाकलेट ,चिप्स और हेयर क्लिप 
आईने में  पापा की नक़ल करते बेटे के लिए
पापा, माने एक अच्छा कैच और सुपर हीरो 

पापा ,माने ससुर यानि फादर इन लॉ 
जिनकी बेटी और बेटे के साथ जीवन गुजरता है
 
पापा, जो बेटी विदा करते हैं 
पापा, जो बेटे को घर से निकल देते हैं 

पापा, जो बेटी के प्रेम करने पर ज़हर खाने की धमकी देते हैं 
पापा ,जो अपने ही बेटे बेटी का सर कलम भी करते हैं 

पापा , जो माँ के मरने पर बच्चों की परवरिश अकेले नहीं कर पाते 
पापा ,जिन्होंने शायद ही कभी अपने बच्चे को नहलाया हो /पॉटी धोयी हो 

पापा ,जो माँ को हमेशा फटकारते रहे
 पापा जो हमेशा बच्चों के बिगड़ने के लिए माँ को दोष देते रहे

पापा ,जो शादी के बाद बेटी के घर कभी नहीं गये 
पापा ,जिन्होंने शादी के बाद बेटी से कोई मतलब नहीं रखा 

पापा जिहोने हमेशा बेटों को गलियाँ दीं 
पापा जिन्होंने कभी अपनी मर्ज़ी से बच्चों को कोई काम करने नहीं दिया 

पापा जो हमेशा सबसे सवाल करते और मनमुताबिक जबाब लेते रहे  
पापा जिनसे कभी घर में किसी ने सामने सवाल नहीं किये

पापा जिनके लिए हमेशा सबकी आँखों में सवाल रहे 
पापा जिनकी आँखों का रंग लाल --- कभी गुस्से में ,कभी दुःख में ...

पापा जो बचपन में हीरो और जवानी में जीरो लगे 
पापा फिर भी अपने  बच्चों के वजूद में धँसे ही लगे 

पिताओं ,तुम्हारी संताने तुम्हारा  इतिहास लिखने को आमादा हैं 
दिन मुक़र्रर है , सजा नहीं ..................
संताने चलन बदलने का गीत गा रही हैं ..............
अरे पिता ! तुम तो नाच रहे हो ...........................
तुम नटराज लगने लगे ...
अचानक ....डमरू की आवाज़ तेज होती जा रही है ....
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कंचन   

Saturday, June 15, 2013

तार ...........
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एक तार की गूँज 
झनझनाती है अक्सर ,
उसे भेजा तार ,पहली बार ............

"जल्दी लौटो ,इंतज़ार में हूँ " 
अक्षर-अक्षर मूल्यवान ,
सिर्फ वह भावना अनमोल ------------------

बजते हुए  सितार का एक तार 
झट से टूटा, सुर बिखरे ,  
जब खबर मिली-----
उसका पता बदल जाने की .................

तबले पर कोई टुकड़ा /परन अब भी बज रही है ....द्रुत लय में
अब कोई तार कहीं नहीं जायेगा।
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कंचन 

Thursday, June 13, 2013

1 2  जून ......./......दो जून ....
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छोटे बच्चे घर के काम के लिए बहुत सही रहते हैं ...
 खासतौर से छोटी लड़कियां ...
डांट देने से चुप हो जाती हैं ..
चालाकी कम करती हैं ...
कम खाना लगता है ..
थोड़े में खुश हो जाती हैं ...
मुलायम हाथ की मालिश भी अच्छी रहती है ...
इनके प्यार व्यार का खतरा नहीं रहता ....
घर के अन्दर कुछ हो जाए तो बात दब जाती है .....
.वगैरह ....
इतनी महंगाई में घर चलाना है ...
सबको पानी हाथ में चाहिए ...
कोई घर के काम करना नहीं चाहता ...
बड़ी लडकियाँ बहुत तंग करती हैं ...
 घर तो ऐसे ही चलेगा ...............
    अब अन्तराष्ट्रीय श्रम संगठन भले ही (12 june )अपना नारा देकर विश्व दिवस मनाता रहे---
            say no to child labour in domestic work.....

वे धूल में सने , ख़ामोशी से 
कपड़ा लिए कोना - कोना चमकते रहते रहते हैं ..
घर के बच्चों के संग हँसते रहते हैं ...
सबके बदले की डांट खाकर सुबक लेते हैं ...
आने के कितने बरस बीते यह भी याद नहीं ....
कैसे जाने बारह जून या दो जून  ?
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कंचन 

Tuesday, June 11, 2013

 मस्ती की पाठशाला / प्रेम
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                                       ( 1 )

हम तेरे बिन जी नहीं सकते ../
ना  जी  / खाओ , पियो , खिसको ...     : आशिक़ी 


 कई बॉय फ्रेंड्स .. नो,नो ,आइ एम लॉयल ..../

 अरे! अपन तो क्रिशन कन्हैया हैं .. एक नहीं कई गर्ल फ्रेंड्स ..
 आइ एम नॉट सीरियस ..बस यूँ ही ज़िन्दगी के मज़े हैं, यार./

 अरे !मैं तो प्रेम पुजारिन, तुम्हारे  बिना जान दे दूंगी।/


(कितने लड़के प्रेम दीवाने बनकर जान देते हैं ....
 अलबत्ता ...बेवफाई गर दिखे तो जान ले लेते हैं ..) 
                                             
                                              
                                     (2 )

"अकेलेपन और यादों में जीने से अच्छा है मर जाना " - मानकर ही जान देती हैं लडकियाँ 
कुछ महीनों /सालों का प्रेम और अब जीवन का भविष्य समाप्त ..फिर कौन  साथ देगा ....
प्रेम समाप्त तो जीवन समाप्त ..................................

नहीं , यह ग़लत ट्रेनिंग का नतीज़ा है ....
प्रेम में जान की कीमत चुकाना ..क्यों ???
 
 
बीस -पच्चीस साल तक जिस परिवार से जुड़ी रहती हैं लडकियाँ 
उससे अलग हो जाती हैं ...तब तो खुद मरती नहीं ...कोई दिल की टूटन कहता  तक  नहीं ...
क्योंकि बचपन से इसकी ट्रेनिंग दी जाती है कि यह कोई ट्रॉमा नहीं ,
यह धर्म है ..यह सुख है ...सेवा धर्म है ....यह भाग्य है ...

अपनी एक-एक नस से खून देकर अतिशय पीड़ा ख़ुशी- ख़ुशी सह लेती हैं लड़कियां 
एक नया जन्म देती हैं ..नयी सर्जना का गौरव धारण करके फूली नहीं समातीं ...
क्योंकि बचपन से ट्रेनिंग मिलती है ..मातृत्व गौरव है ....

अपने लिए प्रेम की तलाश में जो कोई एक मिल गया तो उसी के लिए जीना ..
उसे ही अपनी ज़िन्दगी बना लिया ..और फिर  मरना भी उसी के लिए ...
क्योंकि बचपन से ट्रेनिंग है  किसी एक के प्रति ही पूर्ण  समर्पण ही प्रेम है ...(यही देखा ...और सीखा ..)
अब वह प्रेमी / पति जीवन नियंता बन गया ...मारे -पीटे ..अपमान करे ....इग्नोर मारो ...

ट्रेनिंग है ..सब ठीक हो जाएगा ...उसकी कमियां भी तुम्हारी ..तुम्हारा प्यार भी उसका ...
ट्रेनिंग है वह जिस हाल में रखे रहो ...उसके बिना अब अपने जीवन का भी मोल कुछ नहीं ....
ट्रेनिंग है सहने की ...सब ठीक हो जाने के भरोसे की ...
ट्रेनिंग है दूसरों के लिए जीने की ....
ट्रेनिंग है दूसरों से सम्मान में मिलने वाली ज़िन्दगी की ....

अपने जीवन का सम्मान करने की कोई ट्रेनिंग क्यों नहीं ...?
अपने जीवन और अपने सम्मान के लिए दूसरों का मुंह देखते रहना ज़रूरी क्यों ? ....
जब दूसरों की देखभाल आती है तो अपनी क्यों नहीं ?
माँ अपनी देखभाल और अपना सम्मान सिखाती क्यों नहीं ?

                                               
एकांत और अकेलेपन  के सुख और अपनी जिंदगी के आनंद /सम्मान की कोई ट्रेनिंग नहीं होती ..???

(अगर होती तो प्रेम में निराशा के कारण आत्महत्यायें / हत्याएँ शायद रुक सकतीं ,
प्रीती राठी की एसिड डालकर हत्या न होती और शायद  जिया खान भी मनमस्त होकर जिन्दा होती )

यह ज़िंदा रहने की लड़ाई है ....
मौत  के बाद कुछ नहीं ...
जीवन प्रेम हैं ....

जीवन के लिए प्रेम करो ...
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कंचन