Saturday, August 24, 2013

काल / महाकाल या न्यूज़ काल …… !!!
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हम न्यूज़ काल में जीते हुए मर रहे हैं
हम कारतूस काल को पहचान रहे हैं
हम मर्दानगी के आनंद से लहुलुहान हैं

हमारी भीतरी दीवारों में घुटन है
हमारी भीतरी दीवारें घायल हैं
हमारा ऑपरेशन किया जा रहा है 

हम जिन्दा हैं सिर्फ
चिड़ियों की आवाजों में
मोमबत्तियों की जलती लौ में
चीखते नारों और कलात्मक तस्वीरों में।

आम लड़की ,
छात्रा ,
पत्रकार ,
पुलिस कॉन्स्टेबल ,
…… ………
……………………
…………………………

है कोई नया काल ?
वीरता काल ?
क्या छाया काल ?
रीति काल ? या
न्याय काल ??

या फिर हमारे लिए
सिर्फ काल
महाकाल / न्यूज़ काल
पीड़ा काल !!
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कंचन
मर्द की उम्र ………. क्या है…?
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मर्द की उम्र क्या है ?

छह साल 
सोलह साल 
बाईस साल 
चालीस साल 
चौसठ साल 

कैसे बना मर्द 
किसने बनाया 
कहाँ सीखी मर्दानगी 
किसने सिखाया यह सब 

 मैं भी जानता हूँ मर्द की उम्र 
 मैं छह साल का हूँ 
 मुझे पता है कि
 लड़के-लड़कियों से 
 ज्यादा अच्छे होते हैं 
 लड़के बहादुर होते है 
 इंटेलिजेंट होते हैं 

'कक्षा एक ' की कहानी में सुना है 
चिड़ी मूर्ख है,चिड़ा बुद्धिमान है 
'कक्षा दो ' की कविता में पढ़ा है 
माँ का काम खाना बनाना है 

मैं नन्हा मुन्ना राही हूँ 
देश का सिपाही हूँ 
मैं बॉय हूँ , ब्रेव बॉय। 

मैं पहचानता हूँ इसे 
मैं सोलह साल का हूँ 
मैं जानता हूँ कि लड़की 
के सामने कैसे हीरो बनते हैं
गाने,फ़िल्में और दोस्त सब बताते हैं  
 दोस्तों को वैसा सब कुछ करते देखा हैं  
जो न साथ दे अगर तो उस पर हँसते हैं  

मैं बाईस साल का हूँ 
जानता हूँ कि 
लड़की सेक्स सिम्बल है 
एन्जॉय मटेरियल है 
कानून कुछ नहीं कर पाता 
जानने वाले चुप रहते हैं और
 मर्द की खासियत को पहचानते हैं
दबी चुप्पी में इसे मर्दानी जरूरत मानते हैं 

मैं नहीं हम सब जानते हैं 
उसकी उम्र को …………. 

 काफी कुछ पहचान तो 
 उसे भी है इसकी जिसकी उम्र
 मात्र साढ़े तीन साल की है 
 वह जानती हूँ कि 
 सुन्दर कैसे बनते हैं 
चूड़ी ,लिपस्टिक और 
बाल खुले रखकर 
जैसे मेरी मैम आती हैं 
जैसे मेरी माँ डरती है पिता से 
वैसे ही मैं डर जाती हूँ भाई से।  
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कंचन

Friday, August 16, 2013

टूटन ,…उसकी ! 
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आज वह अपने आँसू पोंछती 
मेरे पास जमानत के रुपयों का 
इंतजाम करने रात के अँधेरे में 
भरोसा किये चली आई थी 

हर सुबह हँसती आती थी वह 
आज देर रात तक ज़ार-ज़ार 
रोये जा रही थी बिना रुके 

पति खून से लथपथ 
 पड़ा था हॉस्पिटल में 
बेटे ने  पीटा था उसे 
लोहे की रॉड से सबके सामने 

 दिन भर काम करती ,थकती 
 और रात को पीकर आया नशेड़ी पति
 जवान बेटे के सामने ही माँ को 
अपना माल समझ उसकी टांगो से लिपटा
 उसके कपड़े खींचे,नोचे और फाड़े जा रहा था 

"इतना तो साथ चलने वाला
 ग्यारह वर्षीय भाई भी समझता था 
 उसने चाचा के सिर पर 
 सड़क पर पड़े पत्थर को दे मारा था 
 जब वह उसकी आठ साल की बहन 
 की सलवार उसी के सामने खींच रहा था 
 तब गाँव की बात थी तो थाना पुलिस नहीं हुआ था 
 आज पड़ोसी ने पुलिस को फोन कर दिया था 
 जब नासपीटा रोज हड्डियाँ तोड़ता था मेरी 
 तब कोई नहीं बुला के बचाता था मुझे 
 आज बेटे ने माँ की लुटती आबरू बचायी 
 तो पुलिस उठा ले गयी उसे "

जवान लड़का भूल गया उस वक्त रिश्ता 
मर्द की हवस को पहचान रहा था 
पूरी ताकत से माँ का क़र्ज़ और 
भाई के फ़र्ज़ को निभा गया 

आज उसकी बारी थी तो 
अब तक निभाती आयी अपने 
हाड़-तोड़ पत्नी फ़र्ज़ को भूलने चली 
वह सिर्फ़ माँ होकर सामने खड़ी थी 
अपने बेटे की ज़मानत के रुपयों के लिए 

भूल चुकी थी अपना औरत होना 
जितना पिटती थी हर रात 
उतनी ही तेजी से घिसती थी
 हर सुबह सबके बर्तन और फ़र्श 

उसकी हँसी से गूँज उठता मेरा फ़र्श !!!
 किसको भनक थी कि यह उसकी  
 फ़र्श से अर्श तक की 
 हर रोज़ की गूँजती टूटन थी 

आज अगर कहूँ कि आदमी 
अक्सर कुत्ता बनकर ही 
अपनी असलियत दिखाता है 
तो न जाने क्या -क्या 
स्त्रियों के लिए कहा गया 
मेरे सामने रख दिया जाएगा ……

हमेशा टांगों पर ही टूटते है दोनों 
एक मांस खींचता ,एक सलवार 
शायद दोनों ही मांस नोचते !!

 वह आज सिमटी पड़ी थी मेरी बाहों में 
 जो हर रोज़ बिखरी थी अपने आस-पास। 
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कंचन 

Friday, August 9, 2013

तुम बोलकर देखो जरा !……………… 
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 मेहँदी लगे हाथों की सुन्दरता पर
 रीझ जाने वाले प्यारे सलीम !

 हैरान हूँ , कभी खिले बदन को
 देखता था जो देर तक, नज़र पार 
 आज अनारकली के कुर्ते के 
 टूटे बटन और सहमे बदन को 
 नज़रंदाज़ करता जाता लगातार
 वही कोरमा, बिरियानी के स्वाद पर
 नंबर देता उसे आठ छह पाँच चार

 जो दुनिया से नज़रे मिलाने में 
 कभी अकेले हिचकिचाई नहीं 
 आज तुम्हारी माँ की उंगलियों 
 के स्वाद के सामने सहमी खड़ी है

 अपनी माँ का स्वाद उसने 
 तुम्हारी मोहब्बत में भुला दिया  
 अपनी हासिल डिग्रियों का इम्तहान 
 दोबारा परीक्षा की कसौटी पर रख दिया 
 तुम्हारी पसंद के स्वाद पर कसते हुए
 बार -बार, लगातार …… प्यारे सलीम। 

  तुम्हारी जीभ के स्वाद का इम्तहान,
  दिन-रात उसके वजूद को हल्दी के रंग में
  मसाले की गंध से लपेटे हुए बहकाता है
 
   जिन हाथों में किताबें खुलती थीं 
   वहाँ अब करछुल धँसकर सजता है 
   ईद,तीज की हँसती मेहँदी को मिटाते हुए 
   सिर्फ एक कसम का सिक्का रंग जमाता है 
   
     जाना कि तुम्हारी जीभ की लम्बाई तो 
     उसके वजूद से कहीं ज्यादा लम्बी है  
     तुम्हारे वालिद को दी गयी कसम 
     के हवाले से वह तुम्हारी जीभ में 
     धँसती है दिन में तीन बार हर रोज़।
     
     तुम बोलकर देखो जरा !
     उसकी आवाज गमकती है 
     तुम्हारे शब्दों के धागों पर 
     वह मोती बनकर लटकती है।   
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    कंचन  


 

Friday, August 2, 2013



जब कहा था तुमने ………. !
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 जब तुमने कहा उनसे
 मैं दामाद नहीं बनना चाहता  
 बेटी के साथ आपका बेटा बनूँगा 
 आपके बुढ़ापे का सहारा बनूँगा 
 उनकी आँखें चमक उठी थीं 
 जो पहले गुस्से से लाल थीं ,
 पहले वे प्रेम के खिलाफ थे.... 

जब तुमने थोड़ा पास आकर 
कहा 'अपने लिए जियो '
उसकी घुटन को समझा और 
उसे खुली हवा में साँस लेने दिया 
वह डूबकर ,टूटकर, मरकर चाहने लगी तुम्हें ,
पहले नफरत थी उसे आशिक मिज़ाज लड़कों से। 

तुम अच्छी भाषा बोल रहे थे 
उसके कान निहाल हो रहे थे 
तुम्हारे हाथ और होंठ उसकी 
बाँहों में पिघलकर नये हो रहे थे
तुम और वह दोनों  आश्वस्त थे 
जब तुम दोनों एक साथ प्रेम में थे 
तुम्हारे रंग के कपड़े पहने उसने 
और तुम्हारी पसंद का स्वाद चखा। 

फिर यह प्रेम का खासमखास रंग 
और मस्त-मदहोश हवा बदलने लगी 
खुली हवाओं में जीती वह लड़की 
अब तुम्हारी शान के कब्जे में एक 
जानी पहचानी जकड़न से जूझ रही थी।

लड़की को मालूम हो चुका था 
ताजी हवा का रास्ता और
तुम्हारी ओढ़ी लपेटी भाषा का राज
 तुमने छला था, उसने नहीं माना था ऐसा 
उसे मालूम हो चुकीं थीं तुम्हारी खाल की परतें 

 वह अब पहचानती थी,
 ताजी हवा में बहता अपना वज़ूद
 उसे याद था तुमसे सुना जुमला "अपने लिए जियो "
 वह जी रही थी अकेले तुम्हारी भाषा के साथ ,लेकिन 
उसका परिवार अभी भी अर्थ खोजने में लगा था

वे जो प्रेम के खिलाफ थे 
उनकी आँखे गर्म और लाल नहीं ,नम थीं अब …. । 
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कंचन 
 

Thursday, August 1, 2013

नहीं , तुम ना नहीं कह सकती , लड़की !
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तुम ना नहीं कह सकती , लड़की !
अगर कहा ,तो.………………. 

तुम्हारे सिर के टुकड़े-टुकड़े किये जायेंगे 
तुम्हें एसिड से जलाया,गलाया जायेगा ,
तुम्हारे हाथ की नसें काट दी जायेंगी,
तुम्हें जलती लपटों में झोंका जायेगा,
तुम्हें बेल्ट से पीटा जायेगा , 
तुम्हें जबरदस्ती पकड़कर 
मुँह में सल्फास खिलाया जायेगा 

तुम्हें सोलह दिसंबर की रात की 
दिल्ली की सड़क की चलती बस 
बार -बार याद रखनी होगी ,
तुम्हें जुलाई के आखिरी दिन की
जे एन यू के क्लास -रूम में बहते खून 
और पीछे बैठे सहपाठी को याद रखना होगा 
तुम्हें खूबसूरत लॉन में फूल को नहीं 
खून में सनी लाल कुल्हाड़ी को याद रखना होगा 

लड़की ! 
अगर तुम्हें जिन्दा रहना है तो 
यह सब याद रखना होगा ……।
  
लड़के ने हमेशा याद रखा है यह सब
अपने भीतर और बाहर की दुनिया में 
मर्दानगी और काबिज सत्ता के लिए।
उसने हमेशा पिता को और अन्य पुरुषों 
की शान स्त्री की "हाँ "में देखी है.….…

पुरुष और स्त्री दोनों का जीवन
स्त्री की "हाँ "में है 
लड़के/लड़की  ने हमेशा देखा और सीखा है -
स्त्री की "ना " का अर्थ -उसकी मौत.…….  !!!

मैंने कहीं पढ़ा है कि  बच्चे कान से नहीं आँख से सुनते हैं….
यही देखती हूँ आस -पास के बच्चों में ,
बच्चे पढ़कर नहीं देखकर जानते हैं 
व्यवहार और कहन का अंतर।  

बच्चे कैसे देखें कि परिवार में ,समाज में ,
साथ पढ़ने वाली लड़कियों से,
सड़क पर चलने वाली लड़कियों से  
कैसे बदलाव का, मनुष्य होने का व्यवहार किया जाए ???

आखिर लडकियों से कैसे अच्छा व्यवहार करें 
सड़क पर चलें और उन्हें देखें नहीं 
राह चलते किसी को छेड़े नहीं 
फिकरे कसें , पटायें नहीं 
तो जवानी कैसे जियें ,लड़के …?
कोई और तरीका देखा नहीं उस उम्र में व्यवहार का…

लड़की की "हाँ"  पर अपने अधिकार का 
जन्मसिद्ध अधिकार देखता ,सीखता और जीता है लड़का 
लड़की की 'हाँ ' के बिना मरने और मारने का संस्कार है लड़का 

घर में, बाहर सड़क पर ,रिसेप्शन पर , और कक्षा में 
अगर कोई पुरुष ,लड़का 'ना  ' सुनकर चुप रहेगा तो 
वह मर्द नहीं माना जायेगा , लतियाया और लताड़ा जायेगा 
 
लड़की की 'हाँ' और पटाने का नुस्खा नया लड़का 
अपने आस-पास और अगली फिल्म में पा लेता है
लेकिन लड़की की 'ना ' पर 
लड़की के सिर के टुकड़े -टुकड़े करने का
पुराना आदिम रिवाज़ गाँव ,नगर हर  जगह 
घर और सड़क पर मौजूद है।  

लड़की ,तुम्हारे हाथ -पांव तोड़ दिए जायेंगे 
ट्रेन से नीचे फेंक दिया जायेगा 
मुँह पर एसिड फेंका जायेगा 
हर वक्त जानलेवा धमकी और 
माँ की हिदायत का फोन आयेगा

लेकिन लड़के /लड़कियों तुम्हें 
इस ना और हा के फेर से
निकलना होगा साथ -साथ 
जीना होगा साथ -साथ ….…
 
कहो ! कि तुम इंसान हो। 
जल्लादों को शर्मसार करो 
उनके संस्कारों को ,व्यवस्था को 
एक साथ मिलकर "ना " कहो 
उन्हें अपने नये होने का अर्थ बता दो 
तुम आदिम नहीं ,तुम पढ़े लिखे हो 

तुम इंसान हो
इंसान रहो 
तुम प्रेम करो 
तुम नये होकर 
तुम साथ -साथ जियो 

आओ! हम साथ-साथ मरने
की कसम को पुराना करें 
सावन के महीने में खून से लाल नहीं 
मन के हरे होने के दस्तूर को जियें 

हमें जीता हुआ देखो 
मरते हुए जल्लादों !!!

मेरे बच्चों !
तुम्हें हमेशा जिन्दा प्रेम कथाएँ मिलेंगी 
मेरा वादा है.……. 
तुम भी ट्रेजिक नहीं 
जीता हुआ प्रेम लिखना   
यह मरने और मारने का
पुराना आशिकाना आदर्श  
बदलना होगा ………

तुम्हारा आसमान साफ़ और सतरंगी रहेगा 
सावन के महीने में हरी रहेगी तुम्हारी धरती।  
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कंचन