Wednesday, May 22, 2013


ये 'मदर इंडिया ' और बछेंद्री पाल का ख्याल
मन से निकलता क्यों नहीं ?
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लड़की छेड़ने वाले अपने जवान बेटे को पीटती माँ मेरे दिलो दिमाग पर छाई क्यों रहती है ....मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यास 'गुनाह बेगुनाह ' में भी माँ अपने उस बेटे की हत्या चाकू मार मारकर कर देती है जो अपनी सौतेली बहन के साथ मना करने के बाबजूद कुकर्म कर रहा था ...

तो क्या सारी बात ट्रेंनिंग देने और हौसले की है ?????????

विरोध करने पर अरुणिमा को गुंडों ने ट्रेन से नीचे फेंक दिया ....
पैर कटा ......... पैर काटने के बाबजूद
अरुणिमा को बछेन्द्री पाल ने ट्रेंनिंग दी
अरुणिमा ने एवरेस्ट की ऊंचाई पर चढ़कर
अपने हौसले का झंडा फहराया ..............................................

अब उनकी बात
जिन्हें जिन्दा जला दिया जाता है ...
जिनकी ट्रेनिंग में डर ठूंस दिया जाता है ...
जिन्हें सारी इन्द्रियों के बाबजूद
अँधा ,गूंगा ,बहरा , अपाहिज और
अज्ञानी (शिक्षित होने के बाबजूद)
होने की ट्रेनिंग बचपन से दी जाती है ................
जो कहा जाये वही करो ,जहाँ ले जाया जाये वहीं जाओ ,
अपने मन की मत सुनो ,पढाई और डिग्रियों के बाबजूद सब कुछ पूछकर करो ..........................

यहाँ भी सब डराने /डरने की ट्रेंनिंग का मामला है ,
चुप रहने की ,डरने की ट्रेंनिंग .....................
घुप्प अँधेरे कमरे में डूबे इनके हौसले ???
इनके हौसले एवरेस्ट की ऊँचाई तक पहुँचे कैसे ,
कोई बहुत अधिक संख्या में बछेंद्री पाल का पता बाँटो ..........

मदर इंडिया तुम उनके दिलो दिमाग तक भी पहुँचो
जिनके बेटे कुकर्मों में धंसे जा रहे हैं
अक्सर नमी गिरामी शख्सियतों के
अपने बेटे अपना और उनका नाम डुबोते देखे जाते हैं
अपना नाम कमाने में लगे रहे ........
अब मदर इंडिया कैसे याद आएगी ...........

बछेंद्री पाल और मदर इंडिया तुम कहाँ हो ???
संस्कार और ट्रेंनिंग का फर्क अपने भंवर में मुझे बहा ले चला है ............
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कंचन

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