Wednesday, May 15, 2013

मेरी मुस्कान अब सुबकती है ,रोती नहीं ..........................
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आज उससे मिली ,तो वह तेज आवाज़ वाले वीडियो गेम देखता नहीं मिला बल्कि किसी बेबसाईट पर बच्चों के सशक्तीकरण के लिए कोई कानून ढूंढ़ रहा था। उसकी उम्र है दस साल।
मैंने मामले को जानने की कोशिश की,.... तो उसकी माँ ने पहले तो हँसते हुए कहा कि यह मेरे लिए पुलिस या जुलुस की तलाश में है ....
िर उदास और दुखी होकर बताने लगीं कि कल बॉस ने देर तक ऑफिस में रोक लिया था तो इसके पापा ने मेरे आने के बाद इसकी पिटाई कर दी जबकि उस समय इसकी ऐसी कोई गलती नहीं थी ...दरअसल वे मेरे देर तक ऑफिस में रुकने से नाराज थे , लेकिन उन्होंने पिटाई बच्चे की कर दी ...फिर किसी ने खाना नहीं खाया तो ... मैंने फिर गुस्से में इसकी पिटाई कर दी ...मैं नाराज हुयी तो गुस्सा फिर बच्चे पर ही निकला ..मैंने भी इसको मारा।
बस तभी से यह किसी बेबसाईट की तलाश में है। इसकी टीचर ने इसे कक्षा पाँच में ही यह सिखi दिया है कि बेब साईट पर हर समस्या का कोई न कोई हल निकल आता है ...बताओ जब हम कोई हल नहीं निकाल पाते तो कोई बेब साईट क्या करेगी ...
कोई हल होता तो क्या हम इसे मारते ...जब इसकी टीचर ने इसे एक हल्का थप्पड़ ही मर था तो इसके पापा तुरंत स्कूल लड़ने पहुँच गये थे।

लेकिन बच्चा अब भी चुपचाप अपने लिए सशक्तिकरण की कोई राह किसी वेब साईट पर तलाश रहा था...............................................

क्या बच्चे भी सशक्त हो सकेंगे कभी ?
क्या मासूम खिलखिलाहटों के सशक्तिकरण की कोई उम्मीद है ?
क्या बच्चे स्त्री सशक्तिकरण के साईड इफेक्ट में सुबकते दिखते हैं ?
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(पति ने पत्नी को नहीं मारा क्योंकि पत्नी सशक्त है/सक्षम ..है ...पति की स्थिति तो पहले से ही सशक्त है ...पिटता तो हर तरफ से कमजोर ही है ....

क्या सशक्तिकरण की गूँज में बचपन की चीखें हमें सुनाई नहीं देतीं ..?)
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