Sunday, June 15, 2014

फिर ढहा एक खूबसूरत शहर
सवालों के ज़लज़ले उठान पर हैं ……
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जलजला आया जब केदारनाथ के पहाड़ों पर
तब ऊपर की खूबसूरत झील ने ऐसा कहर ढाया
कि मन खुद कह उठा मुझसे -
पहाड़ अब सुन्दर नहीं लगते !

अभी खूबसूरत स्मार्ट सिटी पर 
रवीश कुमार की रिपोर्टिंग देख ली
अब कैसे कहूँ कि कुछ शहर खूबसूरत होते हैं !

क्लीन सिटी में पढ़ने और
गन्दी बस्ती में रहने वाला बच्चा
साफ़ बस्ती और सुन्दर पार्क का मतलब जानता है
बड़े होकर सफ़ाई और विकास करना चाहता है
पत्रकार ! उस वक़्त आपके भीतर वैसा ही कोई
बरसों पहले का बच्चा मुझे क्यों दिखायी दिया ?
हिम्मत तो है भई आप मर्द होकर
औरतों के सामने खड़े दूसरे मर्द से कह देते हो कि
अपनी औरतों से क्यों पानी भरवा रहे हो?
आप खुद पानी क्यों नहीं भरते ?

एक और बात हर क्षेत्र में जाकर
एक जानकार सहयोगी लड़की खोज लेते हो
जबकि मर्दानगी ताल ठोकती है कि
सारा कुछ हमी तो दुनिया को बताते हैं

जियो रवीश कुमार …जी भर के जियो
सुंदर शहर के खूबसूरत नक़्शे को
अपनी नज़र से क्या खूब नोचा
किरचें अब तक चुभ रही होंगी
सुन्दर आँखों में झाँककर गाना गाते
युवा की आँख में !

कैसे कहेंगे अब सुन्दर शहर के पीछे के
ढलान वाले शहर को देखे बिना कभी
किसी स्मार्ट सिटी को सुन्दर शहर
तुम सवाल की शक्ल में जलजले उठा रहे हो
खूबसूरत शहर को आइना दिखा रहे हो

बच्चे की आँख में अपनी आँख को डालने का हुनर
और अपनी आवाज़ को दिल में उतार देने का जादू
एक कप चाय में मिट जाता है तुम्हें इतना भी मालुम है ?
अलबत्ता दिल खट्टा हो तो खट्टा रायता खाने में गुरेज़ नहीं।
क्यों है न.… ?
अच्छा जो भी हो
आप खूब जी भर के जियें अपना काम
इस देश के बच्चों को आपके कैमरे की अभी बहुत जरुरत है
उनका जनरल नॉलिज अभी बहुत बढ़ाना है। ……
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कंचन
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