Wednesday, July 31, 2013

मेरी आँख का सपना ,जो jnu से मिला … 
___________________________
            जिसने भी बचपन से ही यह देखा है कि लड़कियों ,स्त्रियों को किसी भी  बात पर मारा या जान से मारा जा सकता है और लड़की पर पुरुष का पूर्ण अधिकार होता ही है। साथ पढ़ते हुए भी ,प्रेम करते हुए भी …….. । परिवार में ,सड़क पर ,और फिल्मों में सब जगह जिसने वोईलेंस अगेंस्ट वीमेन देखा हो , वह अठारह बीस साल की उम्र के बाद एक डेमोक्रेटिक माहौल के कैंपस में जाकर क्या अचानक जादू की हवा से बदल जायेगा। हाँ यह होगा कि वह खुले आम उस माहौल के खिलाफ नहीं जा पायेगा और चोला ओढ़ेगा। लड़के जानते होंगे कि जब शुरुआत में वे जे एन यू में आते हैं तो उन्हें कई बार अपनी आदतन मानसिकता को मारने के लिए जूझना पड़ता है.। कईयों ने सुना होगा कि  … अगर यह जे एन यू न होता तो इस लड़की को अभी सबक सिखा देता या कई बार तो उन्हें अपनी जुबान पर काबू करने में भी मुश्किल होती है। धीरे -धीरे  उन्हें अपने पुराने संस्कार जेब में ठूँसकर कैंपस की भाषा बोलने की आदत पड़ने लगती है और वे संवेदनशील बौद्धिक बन जाते हैं। य़ह बनने की पूरी प्रक्रिया है। कोई इसमें फेल हो जाता है तो उसका संस्कार जेब से निकलकर हावी हो जाता है। और इस हद तक हावी  हो जाता है कि लड़का ,लड़की की हत्या तक कर देता है। यह जे एन यू में पहले कभी हुआ नहीं लेकिन gscash तो पहले से है और है तो शिकायतें भी होंगी।  
       अत्यंत दुखद है आज की यह घटना कि जे एन यू में बी.ए तृतीय वर्ष का एक छात्र अपने ही साथ पढने वाली एक लड़की के ऊपर कुल्हाड़ी से जानलेवा हमला कर देता है और फिर खुद भी नशीला पदार्थ खाकर और कुल्हाड़ी से अपने भी गले पर वार करके अपनी भी जान ले लेता है। लड़का मर गया है लड़की गंभीर हालत में भर्ती है।
                यह विस्मयकारी है लोगों के लिए कि जो जे एन यू लोगों को राह दिखाने वाला अनूठा कैंपस है आज वहीं ऐसी भयावह घटना हुयी है। शिक्षा के सबसे उच्च शिखर पर गिना जाने वाला जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के क्लास रूम की गरिमा पर कुठाराघात हुआ है। जिस जगह पर संवेदनशीलता का पाठ पढ़ाया जाता है वहीं पर एक लड़के के हाथों से एक लड़की का खून बहा। 
           यह उस कैम्पस में दिनदहाड़े घटा जहाँ रात में भी लड़की अकेले लैब और लायब्रेरी से वापस अपने हॉस्टल बिना डरे लौट आती है। कैंपस में लडकियों में कोई खौफ़ नहीं होता। लेकिन एक बात तो वह कैंपस भी जानता है कि यहाँ जो लोग पढने आते हैं वे भी समाज से ही बनकर आये हुए लोग हैं। ज़ो ग्रेजुएशन में आता है वह भी पास करके अठारह साल का बालिग होकर अपने भीतर समाज का पुरुष लेकर आया है। जे एन यू इस बात को खूब जानता है.। इसे नोटिस करते हुए ही सबसे पहले इसी विश्वविद्यालय ने अपने यहाँ 'जेंडर सेन्स्ताइजेश्न कमेटी अगेंस्ट सेक्सुअल हरेस्मेंट ' (gscash) को लागू किया था 1999 में। जब अन्य विश्वविद्यालयों/कॉलेजों उसे लागू करने से मना कर दिया था। 
     यू जी सी ने अब जाकर 16 दिसम्बर के बाद इसे अनिवार्य किये जाने पर एक समिति बनाई है और सुझाव माँगे हैं। इस बात की गंभीरता को देखते हुए सीबीएसई ने भी इस ओर कुछ ध्यान दिया है। और बिलकुल अभी- अभी ही सी एस आर ने भी स्कूल में 'जेंडर ट्रेनिंग' देना शुरू किया है। यह ट्रेंनिंग अनिवार्य होनी चाहिए सभी शैक्षिक संस्थाओं के लिए और इसके लिए पर्याप्त फंड होना चाहिए।        
             यह सोचना कि जे एन यू में ऐसा हुआ तो यह अब अनूठा कैंपस नहीं रहा या अब गर्व करने की बात नहीं रही ,यह ठीक नहीं है। यह कैंपस तो बिगड़ी हुयी कुप्रवृत्तियों और सड़ी-गली बलात्कारी मानसिकता का उपचार करके उन्हें सर्वोत्क्रष्ट (best ) बनाता है.. जो पूरे समाज को राह देने के काबिल बन सके। 
       आज हमें अपने पास के हर स्कूल और कॉलेज में जाकर 'जेंडर ट्रेनिंग ' और gscash की माँग करने की जरुरत है। 
जिससे कॉलेज और विश्वविद्यालय पहुंचने से पहले ही हम लड़के ,लड़कियों को जेंडर के प्रति संवेदनशील बना सकें और उन्हें स्त्री /पुरुष की बजाय इंसान बनने के संस्कार मिल सकें। 
    निस्संदेह जे एन यू यह सिखाता है कि किस तरह एक इंसान को दूसरे इंसान के साथ एक मनुष्य की तरह का बर्ताव करना चाहिए। जे एन यू में आने से पहले जो सीखा उसे छोड़ना कितना मुश्किल है यह जे एन यू में पढ़े किसी पुरुष से तब पूछना जब वह अपने परिवार में डेमोक्रेटिक हो। … यह आसान नहीं है लेकिन नामुमकिन भी नहीं है। ऐसा होता भी है और कई बार नहीं भी। 
इस केस में नहीं हुआ लड़का जे एन यू का डेमोक्रेटिक कल्चर की उपरी खाल का चोला उतार गया और स्त्री के प्रति अपने पुराने voilence के संस्कार को जीते हुए मर गया। 
           साथ पढ़ने वाला सहपाठी स्कूल में भी यह चाहता है कि सहपाठी लड़की उससे दोस्ती करे तो किसी और से बात न करे और अगर करेगी तो वह लड़की के पिता या भाई से शिकायत करेगा।प्ले स्कूल और नर्सरी में लड़कों को पैर खोलकर बैठना मना नहीं होता और लड़कियों को मना किया जाता है। …..तो यह संस्कार क्या  जे एन यू में आकर अचानक बदल जाएगा ?

       हर स्कूल को जे एन यू  का डेमोक्रेटिक संस्कार देना होगा और हर शैक्षिक स्तर पर इसकी सायास ट्रेनिंग देने की बात अपने आस -पास करनी होगी।
    हमें इस पर गर्व करना होगा कि हमारी आँख में एक ऐसा सपना है जो हमें जे एन यू  से मिला। 
___________________________________________
कंचन 









2 comments:

  1. सही बात... कंचन.. आज हमें अपने पास के हर स्कूल और कॉलेज में जाकर 'जेंडर ट्रेनिंग ' और gscash की माँग करने की जरुरत है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया आपका....
      मैं जानती हूँ कि बहुत से स्कूल कॉलेज में gscash है और बहुत जगहों पर इसकी ट्रेनिंग भी करवायी जा रही है। लेकिन शिकायतों को रफ़ा दफ़ा कर दिया जाता है। तर्क है कि उसका भविष्य खराब होगा। …
      दूसरी बात कि पढ़ाई के दौरान इसकी ट्रेनिंग नहीं होती। …
      और भी बहुत है जो कहना और करना है।
      मसलन गृह विज्ञान जैसा विषय सबके लिए अनिवार्य हो
      किसी को घर के काम करते हुए छोटापन न लगे
      लड़कियों को सब तरह के खेल और नौकरी के अवसर मिलें
      जिससे उन्हें कमतर न समझा जाए
      अभी भी लोग कहेंगे कि सभी क्षेत्रों में तो लड़कियां हैं
      लेकिन कितनी ? जो हैं वे किन मुश्किलों से गुज़रकर।
      लड़कियों के लिए सजना और सुन्दर होने कि अनिवार्यता पर सवाल उठने चाहिए
      ताकि यह उनके भी सोच के केंद्र में न हो और वे काम करें
      अपनी रोटी खुद कमाने की अनिवार्यता सिखायी जाये ताकि
      लड़की सिर्फ़ बैठकर न खाये और परिवार सिर्फ लड़का न चलाये
      बहुत कुछ जब टूटेगा एक साथ तभी व्यक्ति के रूप में सम्मान होगा लड़की का
      और भी कहना है बहुत कुछ.…।

      Delete