Tuesday, June 11, 2013

 मस्ती की पाठशाला / प्रेम
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                                       ( 1 )

हम तेरे बिन जी नहीं सकते ../
ना  जी  / खाओ , पियो , खिसको ...     : आशिक़ी 


 कई बॉय फ्रेंड्स .. नो,नो ,आइ एम लॉयल ..../

 अरे! अपन तो क्रिशन कन्हैया हैं .. एक नहीं कई गर्ल फ्रेंड्स ..
 आइ एम नॉट सीरियस ..बस यूँ ही ज़िन्दगी के मज़े हैं, यार./

 अरे !मैं तो प्रेम पुजारिन, तुम्हारे  बिना जान दे दूंगी।/


(कितने लड़के प्रेम दीवाने बनकर जान देते हैं ....
 अलबत्ता ...बेवफाई गर दिखे तो जान ले लेते हैं ..) 
                                             
                                              
                                     (2 )

"अकेलेपन और यादों में जीने से अच्छा है मर जाना " - मानकर ही जान देती हैं लडकियाँ 
कुछ महीनों /सालों का प्रेम और अब जीवन का भविष्य समाप्त ..फिर कौन  साथ देगा ....
प्रेम समाप्त तो जीवन समाप्त ..................................

नहीं , यह ग़लत ट्रेनिंग का नतीज़ा है ....
प्रेम में जान की कीमत चुकाना ..क्यों ???
 
 
बीस -पच्चीस साल तक जिस परिवार से जुड़ी रहती हैं लडकियाँ 
उससे अलग हो जाती हैं ...तब तो खुद मरती नहीं ...कोई दिल की टूटन कहता  तक  नहीं ...
क्योंकि बचपन से इसकी ट्रेनिंग दी जाती है कि यह कोई ट्रॉमा नहीं ,
यह धर्म है ..यह सुख है ...सेवा धर्म है ....यह भाग्य है ...

अपनी एक-एक नस से खून देकर अतिशय पीड़ा ख़ुशी- ख़ुशी सह लेती हैं लड़कियां 
एक नया जन्म देती हैं ..नयी सर्जना का गौरव धारण करके फूली नहीं समातीं ...
क्योंकि बचपन से ट्रेनिंग मिलती है ..मातृत्व गौरव है ....

अपने लिए प्रेम की तलाश में जो कोई एक मिल गया तो उसी के लिए जीना ..
उसे ही अपनी ज़िन्दगी बना लिया ..और फिर  मरना भी उसी के लिए ...
क्योंकि बचपन से ट्रेनिंग है  किसी एक के प्रति ही पूर्ण  समर्पण ही प्रेम है ...(यही देखा ...और सीखा ..)
अब वह प्रेमी / पति जीवन नियंता बन गया ...मारे -पीटे ..अपमान करे ....इग्नोर मारो ...

ट्रेनिंग है ..सब ठीक हो जाएगा ...उसकी कमियां भी तुम्हारी ..तुम्हारा प्यार भी उसका ...
ट्रेनिंग है वह जिस हाल में रखे रहो ...उसके बिना अब अपने जीवन का भी मोल कुछ नहीं ....
ट्रेनिंग है सहने की ...सब ठीक हो जाने के भरोसे की ...
ट्रेनिंग है दूसरों के लिए जीने की ....
ट्रेनिंग है दूसरों से सम्मान में मिलने वाली ज़िन्दगी की ....

अपने जीवन का सम्मान करने की कोई ट्रेनिंग क्यों नहीं ...?
अपने जीवन और अपने सम्मान के लिए दूसरों का मुंह देखते रहना ज़रूरी क्यों ? ....
जब दूसरों की देखभाल आती है तो अपनी क्यों नहीं ?
माँ अपनी देखभाल और अपना सम्मान सिखाती क्यों नहीं ?

                                               
एकांत और अकेलेपन  के सुख और अपनी जिंदगी के आनंद /सम्मान की कोई ट्रेनिंग नहीं होती ..???

(अगर होती तो प्रेम में निराशा के कारण आत्महत्यायें / हत्याएँ शायद रुक सकतीं ,
प्रीती राठी की एसिड डालकर हत्या न होती और शायद  जिया खान भी मनमस्त होकर जिन्दा होती )

यह ज़िंदा रहने की लड़ाई है ....
मौत  के बाद कुछ नहीं ...
जीवन प्रेम हैं ....

जीवन के लिए प्रेम करो ...
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कंचन 

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