Monday, June 17, 2013

ज़मीन पक्की है ........
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न जाने कब से जमा करती रही हूँ
 ईट ,गारा ,बजरी ,रेत 
एक मकान बनाने को ,
ज़मीन कहीं थी ही नहीं ...................

अब जब तुमने दे ही दी हैं
अपनी पक्की ज़मीन
तो फिर मेरा मकान भी 
 हाज़िर है 'हमारा 'आशियाँ बनने के लिए  .................

 बारिश के सुनहरे मौसम में
कभी बह न जाये पक्की ज़मीन 
और टूट जाए हमारा ख़्वाब 
इस दुआ में हाथ ऊपर उठे हैं ................

ईंट ,गारे,सीमेंट तो मेरे अपने हैं 
ज़मीन के  पक्केपन का भरोसा  
तुम्हारी अपनी कुदाल के पैनेपन 
और नज़रों के पसीने में है ..................

तुम्हारी खमोशी में दरारें दिख रही हैं,
धीरे-धीरे  से नहीं अब 
तुम्हे जोर से कहना होगा 
ज़मीन पक्की है ...मकान हमारा है।
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कंचन 

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