Friday, August 2, 2013



जब कहा था तुमने ………. !
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 जब तुमने कहा उनसे
 मैं दामाद नहीं बनना चाहता  
 बेटी के साथ आपका बेटा बनूँगा 
 आपके बुढ़ापे का सहारा बनूँगा 
 उनकी आँखें चमक उठी थीं 
 जो पहले गुस्से से लाल थीं ,
 पहले वे प्रेम के खिलाफ थे.... 

जब तुमने थोड़ा पास आकर 
कहा 'अपने लिए जियो '
उसकी घुटन को समझा और 
उसे खुली हवा में साँस लेने दिया 
वह डूबकर ,टूटकर, मरकर चाहने लगी तुम्हें ,
पहले नफरत थी उसे आशिक मिज़ाज लड़कों से। 

तुम अच्छी भाषा बोल रहे थे 
उसके कान निहाल हो रहे थे 
तुम्हारे हाथ और होंठ उसकी 
बाँहों में पिघलकर नये हो रहे थे
तुम और वह दोनों  आश्वस्त थे 
जब तुम दोनों एक साथ प्रेम में थे 
तुम्हारे रंग के कपड़े पहने उसने 
और तुम्हारी पसंद का स्वाद चखा। 

फिर यह प्रेम का खासमखास रंग 
और मस्त-मदहोश हवा बदलने लगी 
खुली हवाओं में जीती वह लड़की 
अब तुम्हारी शान के कब्जे में एक 
जानी पहचानी जकड़न से जूझ रही थी।

लड़की को मालूम हो चुका था 
ताजी हवा का रास्ता और
तुम्हारी ओढ़ी लपेटी भाषा का राज
 तुमने छला था, उसने नहीं माना था ऐसा 
उसे मालूम हो चुकीं थीं तुम्हारी खाल की परतें 

 वह अब पहचानती थी,
 ताजी हवा में बहता अपना वज़ूद
 उसे याद था तुमसे सुना जुमला "अपने लिए जियो "
 वह जी रही थी अकेले तुम्हारी भाषा के साथ ,लेकिन 
उसका परिवार अभी भी अर्थ खोजने में लगा था

वे जो प्रेम के खिलाफ थे 
उनकी आँखे गर्म और लाल नहीं ,नम थीं अब …. । 
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कंचन 
 

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