Friday, August 9, 2013

तुम बोलकर देखो जरा !……………… 
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 मेहँदी लगे हाथों की सुन्दरता पर
 रीझ जाने वाले प्यारे सलीम !

 हैरान हूँ , कभी खिले बदन को
 देखता था जो देर तक, नज़र पार 
 आज अनारकली के कुर्ते के 
 टूटे बटन और सहमे बदन को 
 नज़रंदाज़ करता जाता लगातार
 वही कोरमा, बिरियानी के स्वाद पर
 नंबर देता उसे आठ छह पाँच चार

 जो दुनिया से नज़रे मिलाने में 
 कभी अकेले हिचकिचाई नहीं 
 आज तुम्हारी माँ की उंगलियों 
 के स्वाद के सामने सहमी खड़ी है

 अपनी माँ का स्वाद उसने 
 तुम्हारी मोहब्बत में भुला दिया  
 अपनी हासिल डिग्रियों का इम्तहान 
 दोबारा परीक्षा की कसौटी पर रख दिया 
 तुम्हारी पसंद के स्वाद पर कसते हुए
 बार -बार, लगातार …… प्यारे सलीम। 

  तुम्हारी जीभ के स्वाद का इम्तहान,
  दिन-रात उसके वजूद को हल्दी के रंग में
  मसाले की गंध से लपेटे हुए बहकाता है
 
   जिन हाथों में किताबें खुलती थीं 
   वहाँ अब करछुल धँसकर सजता है 
   ईद,तीज की हँसती मेहँदी को मिटाते हुए 
   सिर्फ एक कसम का सिक्का रंग जमाता है 
   
     जाना कि तुम्हारी जीभ की लम्बाई तो 
     उसके वजूद से कहीं ज्यादा लम्बी है  
     तुम्हारे वालिद को दी गयी कसम 
     के हवाले से वह तुम्हारी जीभ में 
     धँसती है दिन में तीन बार हर रोज़।
     
     तुम बोलकर देखो जरा !
     उसकी आवाज गमकती है 
     तुम्हारे शब्दों के धागों पर 
     वह मोती बनकर लटकती है।   
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    कंचन  


 

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