बादलों के सफ़ेद फाये !
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बंजर ज़मीन से टकराकर
बदहवास लौट आती है
दबी हुयी कोई चीख़
थके पांवों से बेहाल
छोड़कर अपनी चप्पलें
अपनी क़ैद में वापस !
फिर चढ़ जाती हैं नंगे पांव
ऊँचे ख़ूबसूरत पहाड़ों पर
लिपट-लिपट जाती है
हवा के किसी झोंखे से
उड़ जाती बादलों के फाये पर
बहने लगती है बेलगाम
तेज़ बहते पानी की लहरों संग
खिलखिला उठती है !
पानी की लहरों के बीच
किसी पत्थर पर बैठ
वह दबी हुयी चीख़
जो बरसों बाद
घर से बाहर भागती है.…
सुना नहीं गया उसे कभी भी !
न आज जब वह खिलखिला उठी
न तब जब उसे दबा दिया था जोर से
बहरे और गूँगे होने का चलन
अब हमारी चमकदार पहचान है
हम आबाद शहर के चौराहे पर हैं
जिसकी हर राह की मंज़िल
किसी वीरान बस्ती से मिलती है
जहाँ चीखें बेख़ौफ़ खिलखिलाती हैं
वीरान बस्ती का पता सबकी ज़ेब में है
ज़ेब में नन्हीं पाज़ेब खनकती है
ज़ेब में कोई लोरी सिसकती है
ज़ेब से जब निकल भागता है कोई मिल्खा
तब दुनिया के हाथों से ताली बज उठती है
वीरान बस्ती में हर रात
किसी थियेटर के मंच पर
यही रंगीन जश्न होता है
फ़िर कोई चीख बेख़ौफ़
खिलखिलाकर
बदहवास लौट आती है
किसी बंज़र ज़मीन से टकराकर
थके पांवों बेहाल
छोड़कर अपनी चप्पलें
अपनी कैद में वापस !
उसकी गोद में गिर पड़ते हैं
नीले बादलों के सफ़ेद फाये ....
______________________________ ________
कंचन
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बंजर ज़मीन से टकराकर
बदहवास लौट आती है
दबी हुयी कोई चीख़
थके पांवों से बेहाल
छोड़कर अपनी चप्पलें
अपनी क़ैद में वापस !
फिर चढ़ जाती हैं नंगे पांव
ऊँचे ख़ूबसूरत पहाड़ों पर
लिपट-लिपट जाती है
हवा के किसी झोंखे से
उड़ जाती बादलों के फाये पर
बहने लगती है बेलगाम
तेज़ बहते पानी की लहरों संग
खिलखिला उठती है !
पानी की लहरों के बीच
किसी पत्थर पर बैठ
वह दबी हुयी चीख़
जो बरसों बाद
घर से बाहर भागती है.…
सुना नहीं गया उसे कभी भी !
न आज जब वह खिलखिला उठी
न तब जब उसे दबा दिया था जोर से
बहरे और गूँगे होने का चलन
अब हमारी चमकदार पहचान है
हम आबाद शहर के चौराहे पर हैं
जिसकी हर राह की मंज़िल
किसी वीरान बस्ती से मिलती है
जहाँ चीखें बेख़ौफ़ खिलखिलाती हैं
वीरान बस्ती का पता सबकी ज़ेब में है
ज़ेब में नन्हीं पाज़ेब खनकती है
ज़ेब में कोई लोरी सिसकती है
ज़ेब से जब निकल भागता है कोई मिल्खा
तब दुनिया के हाथों से ताली बज उठती है
वीरान बस्ती में हर रात
किसी थियेटर के मंच पर
यही रंगीन जश्न होता है
फ़िर कोई चीख बेख़ौफ़
खिलखिलाकर
बदहवास लौट आती है
किसी बंज़र ज़मीन से टकराकर
थके पांवों बेहाल
छोड़कर अपनी चप्पलें
अपनी कैद में वापस !
उसकी गोद में गिर पड़ते हैं
नीले बादलों के सफ़ेद फाये ....
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कंचन
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