Thursday, February 6, 2014

डोर या उड़ान----------------------------- !
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जो उड़ा नहीं सकते
आसमान में अपनी पतंग ...................

वे कटी रंगीन पतंग को
अपनी छत पर
लूट लेने के इंतज़ार में
दिन भर अपनी नज़रों से उड़ान भरते हैं.…… 

उनकी नज़रों की पतंग
किसी के हाथ में नहीं होती
वह अपनी रौ में उड़ती आती
बिना डोर की रंगीन पतंग
किसी बसन्त के दिन …………

पतंग की ख़ूबसूरती
उसके रंग में है
उसकी डोर में ……

या खुले आसमान में
उसकी उड़ान में !

पतंग जो उड़ते उड़ते
पेड़ में अटके
फट जाए !

कश्ती जो बहते बहते गल जाए!

और दिल
उसका क्या ……………

(पतंग और कश्ती काग़ज़ की
और दिल सीसे का क्यों बनाया )

बसंत ,बरसात और
बरस दर बरस की ये बातें

उनकी बातें !!

या कटी पतंग को देखती
उड़ान भरती नज़र ------------------------
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कंचन

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