Friday, February 21, 2014

बेगाने शहर में ....!
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क्यों बेगाने शहर में आकर 
अपने भी बेगानी रंगत की
चकाचौंध में खो जाते हैं ? 

शहर को यूँ ही बदनाम न करो !

इसने अजनबियों को पनाह दी 
गुमनामों को कोई पहचान दी
और अजनबियत भी कुर्बान की …

किसी नये शहर की गोद में
मन खरगोश सा क्यों है ?
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कंचन

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