Saturday, April 18, 2015

' स्त्री विमर्श ' की दशा अंधों के हाथी जैसी हुयी है। जिसने जितना जैसा देखा वैसा समझ लिया !
-किसी के लिए यह पुरुषों से दुश्मनी है तो
-किसी के लिए यह परिवार तोडू और तलाक का जिम्मेदार है
-कोई इसे 'देह विमर्श' कहकर किसी के भी साथ सोने की आज़ादी से जोड़कर हिक़ारत से देख रहा है
-किसी के लिए यह अविवाहित रहने या लिव इन रिलेशनशिप की आज़ादी भर है
-कोई इसे बलात्कारों का जिम्मेदार भी मान रहा है
-कोई इसे चूड़ी, बिंदी, बिछिये के प्रतीकात्मक प्रतिरोध में समेट रहा है
-और भी बहुत कुछ है/होगा …

अपनी भ्रांतियां दूर कीजिये पहले और सबसे पहले जिन स्त्रियों से आप बात या बहस कर रहे हैं उनसे इज्ज़त से पेश आइये। सम्मानजनक भाषा का प्रयोग करें। चाहें यह फेसबुक की बहस हो या साक्षात्कार हो या अपनी बेटी ,पत्नी ,बहन,प्रेमिका से जुड़ा कोई मामला हो।
क्यों नहीं मानते कि यह सम्मान और समान नागरिकता के साथ आपकी जागरूकता का मामला है?
यह स्त्री और पुरुष विमर्श से पहले मानवीयता का मामला है..
स्त्रियाँ एक-एक ईंट जोड़कर अपने खून को पसीने की तरह बहाकर अपनी आने वाली पीढ़ियों लिए घर बनाने की कोशिश में हैं....

No comments:

Post a Comment