Saturday, April 18, 2015

इसी समय में किसी दूसरे देश में लोग इस लड़ाई में कामयाब हो जाते हैं कि कॉफी हाउस में भी अगर बच्चों का डाइपर बदलना हो तो उसके लिए डाइपर चेंजिंग स्टेशन की सुविधा होनी चाहिए और यह न केवल फीमेल रेस्ट रूम में हो ,इसे पुरुषों के रेस्ट रूम में भी होना चाहिए ,क्योंकि पिता भी अगर अकेले छोटे बच्चे को लेकर बाहर आउटिंग पर गया हो तो उसे वाश बेसिन में बच्चे को टाँगे टाँगे डाइपर न बदलना पड़े। और हमारे देश में वर्किंग लेडी इस गिल्ट में घुट जाती है कि मेरे काम करने के कारण बच्चा कितना कुछ सहता है। ईश्वर ने जिन बच्चों को पढ़े लिखे माँ बाप दिए, उन बच्चों की परवरिश एक अनपढ़ नौकरानी करती है डस्टिंग के कपडे से नाक पोछते हुए। फिर इसे सही करते हुए माँ अपनी नौकरी छोड़ देती है। क्योंकि सरकार की तरफ से कोई ध्यान नहीं। और कॉरपोरेट के लोग ध्यान क्यों नहीं दे रहे कि आधी आबादी महिलाओं की काम करेगी तो देश की अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव होगा। यह मैं नहीं कह रही बल्कि दूसरे देश की आर्थिक नीतियों में इसका ख्याल रहता है। दिल्ली में ही एक ब्यूटी पार्लर है जो यह ख्याल रखता है कि अगर बच्चों वाली महिलाएं आएँगी तो उन्हें कोई असुविधा नहीं होगी। छोटे बच्चों की देखभाल के लिए वहाँ सुविधा है। लेकिन मैंने किसी लाइब्रेरी के साथ जुडी ऐसी सुविधा नहीं देखी कि बच्चों वाली माँ जाये तो बाहर उसके छोटे बच्चों के लिए भी कुछ देर के लिए कोई व्यवस्था हो। जबकि कुछ देशों में यह है। हमारे यहाँ मातृत्व की गरिमा पाते ही सब टैलेंट ख़त्म ! नन्हा सा मासूम बच्चा अपनी माँ का अपराधी हो गया। क्या सचमुच दोष बच्चे का है या मातृत्व का है या फिर पिता दोषी हो गया या हमे अपने सिस्टम से मांग करनी चाहिए। यह टैबू से बाहर आने का समय है ..... अपने और अपने मासूमों के अधिकार के लिए आवाज़ दीजिये एक साथ। माँ /पिता बनना कोई अपराध है क्या कि आप घुटें या खुद को सजा दें या बच्चा सजा भुगते।
Kanchan Bhardwaj क्या देश नहीं चाहता कि बच्चे अपनी माँ को काम पर जाते और आते देखें और अपना बचपन भी जियें। अगर उनका बचपन कभी नहीं लौटेगा तो उनकी माँ जो कुछ कर सकती है वह भी तो नहीं कर पायेगी। बच्चे कोई एक दिन में बड़े नहीं होते। कम से कम बीस साल का प्रोजेक्ट है ही। ।तो क्यों माँ को काम छोड़ना पड़ता है। किसी संगीतकार को वाद्ययंत्र के सामने बैठाकर बजाने न दें। या कोई काबिल माँ सब काम छोड़ दे.. एक ही बात है।

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