Saturday, April 18, 2015

पत्नी की नौकरी और ……वे !
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उनकी पत्नी से मैं कभी मिली नहीं तो यूँ ही पूछ दिया -"तुम्हारी पत्नी नौकरी करती हैं क्या ?"
"हम करने ही नहीं देंगे नौकरी उन्हें?"
"क्यों ?"
"क्या जरुरत है ?"
"नहीं ,वे शायद चाहती नहीं होंगी नौकरी करना ,जिस दिन चाह लेंगीं ,उस दिन करेंगी। कौन रोक सकेगा तब ?
बात तो सारी चाह लेने से होती है।"
"चाह लें ,हम तब भी नहीं करने देंंगे। .... औरतों की नौकरी होती है परिवार की कीमत पर। बच्चों की कीमत पर।
हम अपना परिवार डिस्टर्ब करके नौकरी नहीं करवायेंगे। "
"लेकिन अगर उन्होंने फिर भी करना चाहा तो.… ?"
"तो फिर इसका मतलब वे घर परिवार छोड़कर नौकरी करना चाहती हैं ,तो करें नौकरी ,फिर उन्हें घर परिवार छोड़ना होगा। "
"क्या वे परिवार में रहते हुए नौकरी नहीं कर सकतीं "
"कैसे कर सकती हैं ,बच्चे,मेरे माता- पिता और घर ,
यह सब कौन देखेगा ?"
"लेकिन अगर वे यह सब बच्चों के साथ कर लें तो। … "
तो मुझे कोई परेशानी नहीं ,लेकिन नौकरानी का बनाया खाना हम नहीं खायेंगे ,न ही मेरे बच्चे नौकरानी पालेगी।"
"अच्छा अगर यह सब कुछ करते हुए वह नौकरी करना चाहे तो। … ''
"तो मुझे क्या ऐतराज ,लेकिन ऐसा हो नहीं पायेगा। इससे बच्चों की परवरिश और बुजुर्गों की सेवा पर जरूर असर पड़ेगा। जब बच्चे बड़े हो जाएँ तब कर लें नौकरी ,लेकिन तब तक उनकी चाह,जोश,ज्ञान सब ठंडा पड़ जायेगा। .... "
"लेकिन अगर वे तब भी करना चाहे तो। ……?"
"तो जरुरत क्या है पैसे उन्हें (पत्नी को )मिलते तो हैं ही ,पैसों की कमी है क्या ? भई ,हमने उनसे कह दिया है कि हमसे पैसे लो ,घर चलाओ,टीवी सीरियल देखो और जब मायके जाना हो बता देना हम छोड़ आएंगे ,घूमकर फिर लौट आना।
इस व्यवस्था में सब तो खुश हैं। फिर नौकरी करके घर की पूरी व्यवस्था को खतरे में क्यों डालना जरुरी है ???

(चालीस वर्षीय ,तीन विषयों में एम. ए. ,दो विषयों में पीएचडी ,सात वर्षों से शिक्षा विभाग में कार्यरत असिस्टेंट प्रोफ़ेसर जो बालिका सशक्तिकरण जैसे विषयों पर शोध करवा चुके हों के साथ एक सामान्य काल्पनिक संवाद )
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कंचन

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