दुनिया भर में स्त्रियाँ दुआ ,व्रत करके
खुद को और समाज को धन्य करतीं कि
मरने के बाद भी मेरे कफ़न का रंग लाल हो…
देखा मैंने, आमहत्या से मरी औरत की मांग को भी
उसका पति सिन्दूर से सजा रहा था
रोज जिसे नीला किया करता था।
जो हत्या से मरी थी
उसके तन को भी लाल दुपट्टा में लपेटा गया
औरतों ने पहनवा दीं हाथों में लाल चूड़ियाँ।
आज देखी एक स्त्री,
जो अनोखी जिद में मरी थी ..
जिद यह कि मरने के बाद देह पर लपेटे गए कपड़े पर
तुम्हारी और मेरी आलिंगनबद्ध तस्वीर प्रिंट हो।
यही उसके वज़ूद के लिए शहादत की सलामी होगी।
देह पर लाल या सफ़ेद कफ़न का नकार था यह
या अपने वज़ूद की कोई अनोखी जिद।
शहर में कर्फ्यू लगा था
प्रेम के मारे जाने के खिलाफ जल उठा था शहर
कफ़न पर तस्वीर का प्रिंट होना मुश्किल था
सभी दुकाने और रास्ते बंद थे
इंतज़ार में थी मृत देह
देह को सड़ने से बचाने का रास्ता क्या हो ?
तस्वीर की जगह लड़का खुद ही लेट गया
उसकी मरी देह का ज़िंदा अरमां बनकर। …
सवाल उसके वज़ूद को बचाने का था
मरी थी जो ज़िंदा देह।
दोनों को अपने फूल गिरा गिराकर
ढकने लगा था वह पेड़
जिसके नीचे रखी गयी थी देह
कर्फ्यू खुलने लगा था जब
देह पूरी ढक चुकी थी हरसिंगार के फूलों से
शहर धुएं से ढका नहीं था
हरसिंगार की खूशबू से महक उठी थी सुबह। …
( कफ़न की दुकानों पर सिर्फ़ सफ़ेद और लाल रंग अब नहीं थे। … )
हथेलियाँ चुन रहीं थी हरसिंगार के फूल।
__________________________________
खुद को और समाज को धन्य करतीं कि
मरने के बाद भी मेरे कफ़न का रंग लाल हो…
देखा मैंने, आमहत्या से मरी औरत की मांग को भी
उसका पति सिन्दूर से सजा रहा था
रोज जिसे नीला किया करता था।
जो हत्या से मरी थी
उसके तन को भी लाल दुपट्टा में लपेटा गया
औरतों ने पहनवा दीं हाथों में लाल चूड़ियाँ।
आज देखी एक स्त्री,
जो अनोखी जिद में मरी थी ..
जिद यह कि मरने के बाद देह पर लपेटे गए कपड़े पर
तुम्हारी और मेरी आलिंगनबद्ध तस्वीर प्रिंट हो।
यही उसके वज़ूद के लिए शहादत की सलामी होगी।
देह पर लाल या सफ़ेद कफ़न का नकार था यह
या अपने वज़ूद की कोई अनोखी जिद।
शहर में कर्फ्यू लगा था
प्रेम के मारे जाने के खिलाफ जल उठा था शहर
कफ़न पर तस्वीर का प्रिंट होना मुश्किल था
सभी दुकाने और रास्ते बंद थे
इंतज़ार में थी मृत देह
देह को सड़ने से बचाने का रास्ता क्या हो ?
तस्वीर की जगह लड़का खुद ही लेट गया
उसकी मरी देह का ज़िंदा अरमां बनकर। …
सवाल उसके वज़ूद को बचाने का था
मरी थी जो ज़िंदा देह।
दोनों को अपने फूल गिरा गिराकर
ढकने लगा था वह पेड़
जिसके नीचे रखी गयी थी देह
कर्फ्यू खुलने लगा था जब
देह पूरी ढक चुकी थी हरसिंगार के फूलों से
शहर धुएं से ढका नहीं था
हरसिंगार की खूशबू से महक उठी थी सुबह। …
( कफ़न की दुकानों पर सिर्फ़ सफ़ेद और लाल रंग अब नहीं थे। … )
हथेलियाँ चुन रहीं थी हरसिंगार के फूल।
__________________________________
No comments:
Post a Comment