Saturday, April 18, 2015

तारीखें किस तरह से ज़िंदगी में शामिल हैं। साल दर साल गुजरते जाते हैं लेकिन तारीख़े वही एहसास दे जाती हैं। दिसंबर का महीना कितना कुछ नया आने की आहट देता है। पूरी दुनिया में नए के लिए नई तैयारी चलती है।बहुत कुछ गुज़र जाता है। कहानी बन जाता है। हमारे यहाँ दिसम्बर कई रंग एक साथ लेकर आता है। दिसंबर की दस तारीख़ तीर सी चुभी रहती है दिल में। चाहे महीना कोई भी हो । नौ साल गुज़र गए पापा के बिना। दस तारीख़ दोस्त मीनू की शादी की सालगिरह की ख़ुशी भी है। अगले दिन ग्यारह तारीख़ को बेटी का जन्मदिन मनाना है। तैयारी करो आज दस को ही। सात दिन बाद हमसफ़र का जन्मों-जन्मों साथ वाला उनका जन्मदिन। अठ्ठाईस को इकलौती बची बहन का जन्मदिन है। इस बार दिसम्बर बाईस तारीख़ भी लाया उसे ख़ास बनाकर। बाईस को उसका जन्मदिन है जो अब मेरे घर की हँसी ,घर का गीत बनने जा रही हैं। मेरे छोटे भाई की होने वाली पत्नी। मेरी ढेरों दुआएं इन सबके लिए। भूलती नहीं कि दिसंबर में नानी भी चली गयी थीं। माँ के बिना माँ के एहसास का अंदाज़ा नहीं। उनका कोई भाई बहन नहीं। सिवा बच्चों के। दिसम्बर में माँ ने पति भी खोया और माँ भी। दिसम्बर ने ही माँ को बहू दी ,एक बेटी दी , दामाद दिया ,नातिन दी। मुझे दिसंबर हिला देता पूरी तरह। कभी हँसकर तो कभी रुलाकर ,कभी मुस्कुराकर।

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