फैशन डिजाइनिंग छोड़कर सखी ने खेती चुनी। __________________________________________________
सखी से बहुत वर्षों बाद मिलना हुआ। पता चला कि इन दिनों वह रोज गाँव जाती है और अपनी पुश्तैनी खेती का काम देखती है। मैंने सुना था कि उसने अच्छे इंस्टिट्यूट से फैशन डिजायनिंग कोर्स किया है। सही सुना था मैंने। लेकिन उसने बताया कि उसके छोटे से शहर में वह सीखा हुआ फैशन नहीं चल पाया। उसने अपना खोला हुआ फैशन बुटीक बंद कर दिया और अपनी पुश्तैनी खेती का काम देखने लगी। बता रही थी कि इस बार सरकारी रेट पर गल्ला कम दाम में बिका ,जबकि प्राइवेट में ज्यादा पैसे मिल रहे थे। लेकिन उसने सरकारी को ही दिया। मगर तब भी उसे पेमेंट दो महीने बाद ही हुयी। जबकि उसके चाचा की जान पहचान रहती है तब भी माल के मंडी पहुंचने के बाद भी तीन दिन बाद तौल होती है। कह रही थी कि तीन दिन हवा में रहने से अनाज़ के वज़न में काफी फर्क आ जाता है जिसका नुकसान किसान को होता है। जिनकी जान पहचान नहीं उनका तो बहुत बहुत दिन तक पड़ा रहता है। खूब नुक्सान होता है लेकिन कोई बोलता नहीं ,सब पता नहीं क्यों डरते हैं ? वह डरती नहीं किसी से। खुद मंडी जाती है और गड़बड़ होने पर अधिकारी के सामने खड़ी हो जाती है। लोग हैरान होते हैं। .... लेकिन चाचा ने सिखा दिया है उसे कि "किसी की परवाह मत करना। जब धूप में खड़ी होकर खेती करवा सकती हो तो मंडी जाकर बेचने में कोई बुराई नहीं। तुम कोई ग़लत काम तो कर नहीं रही हो। " शुरू-शुरू में गांव में लोगों ने कहा कि बिटिया यहाँ धूप में कैसे खड़ी ? फिर जान गए कि खेती करने आती है तो फिर कोई कुछ नहीं कहता। उसने गांव की औरतों को अपने खेत में काम भी दिया जिन्हें निम्न जाति के कारण कोई काम नहीं देता था। शहर में लोग बोलते हैं कि यह शादी करने और बच्चे पलने की उम्र में सब कुछ के होते हुए तुम गांव में खेती कर रही हो। कह रही थी कि गांव में औरत ज्यादा स्वतंत्र है ,शहर में ताने ज्यादा मिलते हैं। गांव में कोई कुछ नहीं कहता।
वह कहती जा रही थी और मैं मन ही मन उसे सैल्यूट कर रही थी। कि जिस देश में लाखों किसान आत्महत्या कर रहे हों और कोई सुध न हो उनकी ओर। जहाँ कई एकड़ खेती वाले परिवारों में भी युवा नौकरी के लिए दर- दर ठोकरे खाते बेरोज़गार भटक रहे हों। … वहीं तुम खेती को रोज़गार बनाकर रोज शहर से गांव जाती हो। और गल्ला मंडी में अपना अनाज गाड़ी में लेकर पहुंच जाती हो। यह चलन चल निकले और खेती में लड़कियों को भी भाइयों के बराबर हिस्सा मिलने लगे। खेती वाले घर में यानि गांव में औरत सशक्त हो जाये तो देश के अच्छे दिन जरूर आ जायेंगे। चाहती हूँ तुम सबकी प्रेरणा बन जाओ। देश की धरती युवा हाथों की मेहनत और इरादों से लहलहा उठे।
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सखी से बहुत वर्षों बाद मिलना हुआ। पता चला कि इन दिनों वह रोज गाँव जाती है और अपनी पुश्तैनी खेती का काम देखती है। मैंने सुना था कि उसने अच्छे इंस्टिट्यूट से फैशन डिजायनिंग कोर्स किया है। सही सुना था मैंने। लेकिन उसने बताया कि उसके छोटे से शहर में वह सीखा हुआ फैशन नहीं चल पाया। उसने अपना खोला हुआ फैशन बुटीक बंद कर दिया और अपनी पुश्तैनी खेती का काम देखने लगी। बता रही थी कि इस बार सरकारी रेट पर गल्ला कम दाम में बिका ,जबकि प्राइवेट में ज्यादा पैसे मिल रहे थे। लेकिन उसने सरकारी को ही दिया। मगर तब भी उसे पेमेंट दो महीने बाद ही हुयी। जबकि उसके चाचा की जान पहचान रहती है तब भी माल के मंडी पहुंचने के बाद भी तीन दिन बाद तौल होती है। कह रही थी कि तीन दिन हवा में रहने से अनाज़ के वज़न में काफी फर्क आ जाता है जिसका नुकसान किसान को होता है। जिनकी जान पहचान नहीं उनका तो बहुत बहुत दिन तक पड़ा रहता है। खूब नुक्सान होता है लेकिन कोई बोलता नहीं ,सब पता नहीं क्यों डरते हैं ? वह डरती नहीं किसी से। खुद मंडी जाती है और गड़बड़ होने पर अधिकारी के सामने खड़ी हो जाती है। लोग हैरान होते हैं। .... लेकिन चाचा ने सिखा दिया है उसे कि "किसी की परवाह मत करना। जब धूप में खड़ी होकर खेती करवा सकती हो तो मंडी जाकर बेचने में कोई बुराई नहीं। तुम कोई ग़लत काम तो कर नहीं रही हो। " शुरू-शुरू में गांव में लोगों ने कहा कि बिटिया यहाँ धूप में कैसे खड़ी ? फिर जान गए कि खेती करने आती है तो फिर कोई कुछ नहीं कहता। उसने गांव की औरतों को अपने खेत में काम भी दिया जिन्हें निम्न जाति के कारण कोई काम नहीं देता था। शहर में लोग बोलते हैं कि यह शादी करने और बच्चे पलने की उम्र में सब कुछ के होते हुए तुम गांव में खेती कर रही हो। कह रही थी कि गांव में औरत ज्यादा स्वतंत्र है ,शहर में ताने ज्यादा मिलते हैं। गांव में कोई कुछ नहीं कहता।
वह कहती जा रही थी और मैं मन ही मन उसे सैल्यूट कर रही थी। कि जिस देश में लाखों किसान आत्महत्या कर रहे हों और कोई सुध न हो उनकी ओर। जहाँ कई एकड़ खेती वाले परिवारों में भी युवा नौकरी के लिए दर- दर ठोकरे खाते बेरोज़गार भटक रहे हों। … वहीं तुम खेती को रोज़गार बनाकर रोज शहर से गांव जाती हो। और गल्ला मंडी में अपना अनाज गाड़ी में लेकर पहुंच जाती हो। यह चलन चल निकले और खेती में लड़कियों को भी भाइयों के बराबर हिस्सा मिलने लगे। खेती वाले घर में यानि गांव में औरत सशक्त हो जाये तो देश के अच्छे दिन जरूर आ जायेंगे। चाहती हूँ तुम सबकी प्रेरणा बन जाओ। देश की धरती युवा हाथों की मेहनत और इरादों से लहलहा उठे।
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