Saturday, April 18, 2015

मेला हमारा अरमान है ,अज्ञान नहीं !…
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धर्म है तो मेला है,
…… तो अरमान है,
बच्चों को मेला दिखाना है ,
महिलाओं को मेला देखना है ,
बच्चे गए ,महिलाएं गयीं।

मेले में भगदड़ हुयी ,
बच्चे गिरे ,महिलाएं गिरीं ,
बच्चे मरे,महिलाएं मरीं।
क्यों गिरीं महिलाएं ?
क्यों संभाले नहीं बच्चे ?
गयी ही क्यों मेले में ?
अच्छे कपड़े पहने हुए महिलाएं
ऊँची ऐड़ी की हील चप्पलें जो
खास मेले वगैरह जाने के लिए खरीदी थीं
जिन्हें पहनकर चलने की आदत भी नहीं
न ही महिलाओं को भीड़ में चलने की आदत
मेले की भीड़ में चलने वाली औरतें
कभी मेले ठेले ही तो बस घर से निकली होती हैं
उन्हें कहाँ आदत भीड़ में जाने की/चलने की .....
मेले में जाने वाली औरतों को
कहाँ होती है कहीं जाने की छूट
घर के आदमी ने मना किया होगा तो
कई पड़ोसिन के नाम निकाल लिए होंगे
घर का आदमी भी तो बस
रोज़ काम पर ही जाता है
तनिक मेले में ही तो
मन बहलाने जाते हैं अरमान
नए गमकते कपड़े पहने हुए,
बच्ची के गुब्बारे और सीटी के साथ।
मेला, मतलब बहुत सारे लोग
रोज़ की बदरंग ज़िंदगी से अलग
अच्छे कपड़े पहने हुये
कुछ देर अरमान जी सकें,
फिर से खटने की तैयारी के लिये।
रोज़ जूझते लोगों को मेले का अरमान
भुला देता है हर बार की हुयी भगदड़ और मौतों को।
व्यवस्था तो थी बस 'अँधेरे ' का शिकार हो गयी
अरमान जनता के फिर भी अँधेरे में ज़िंदा रहते हैं
धर्म है तो फिर होगा मेला ,फिर होगी भीड़ ,
फिर जायेंगी औरतें बच्चों को लेकर मेले में।
खुले आसमान में जाने और मिलने जुलने का अरमान
हर ख़ूनी त्रासदी को भगवान की माया में बदल देता है
अरमान ज़िंदा रहेंगे हर मेले के लिए फिर
अँधेरा और अव्यवस्था कितनी भी हो ?
मेले में बिछड़े भाईयों की तो कितनी पुरानी कहानियाँ हैं
भगदड़ की भयानक तस्वीरें हालिया ज़िंदा हैं स्मृति में
तो क्या व्यवस्थापकों का मुँह देखकर बंद हो जायेगा मेला ?
व्यवस्थापकों!
तुम देख लो तुम्हें कितना ख़ून चाहिए हमारा ?
गमकती साड़ी और ऊँची ऐड़ी के सैंडिल और
बच्चे की सीटी का अरमान जब तक है ,मेला रहेगा !
हम छोटे- छोटे अरमानों पर ज़िंदा रहने वाले लोग हैं
मेले में जाते हैं,'मेला' हमें विरासत में मिला अरमान है।...
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गुरुवार, अक्तूबर 02, 2014
कंचन भारद्वाज
कंचन भारद्वाज जामिया मीलिया इस्लामिया वि वि ,दिल्ली, में पढ़ाती हैं. संपर्क :kanchanbhardwaz@gmail.com
( कंचन भारद्वाज की ये कवितायें अभिव्यक्ति , अर्थ और कहन के साथ बड़ी     कविताओं में शामिल होंगी .)

1. लड़कियाँ 

लड़कियों की किताबें कवर चढ़ी होती हैं
किताबों के कवर के भीतर वे रख लेती हैं प्यार

लड़कियों के बालों से लट निकली होती है
बालों से निकली लट को चिपका लेती हैं गाल से
उनके गाल से चिपका होता है उनका प्यार

लड़कियां अपनी चाय का रंग तय करती हैं
अपनी चाय के रंग में घोलकर पी लेती हैं प्यार
लड़कियां अपने हर रंग को ख़ास बनाती हैं

लड़कियों के पर्स में कई डिब्बियां होती हैं
अपने पर्स की डिब्बियों में न जाने
कितनी बार खोलती बंद करती हैं प्यार

प्रेम पर लिखने वालो तुम्हें पता भी है क्या
लड़कियां कहां कहां छुपा लेती हैं अपना प्रेम

तुम उन्हें गुलाब और गुलाबी गालों में तकते हो
किताब के सूखे फूलों में चुनते हो
तुम्हें क्या पता लड़कियां प्रेम में
कहां कहां होती हैं तुम्हारे भीतर

तुम्हारी चाय के कप में
तुम्हारे बालों की लट में
तुम्हारे कंधे की छांव में
तुम्हारी उंगली के पोर में
तुम्हारे क़दमों की आहट में

लड़कियां नहीं होती सिर्फ
सुर्ख गुलाब और गुलाबी गालों या
न किताबों के पन्नों के बीच रखे सूखे हुए फूलों में

जैसे रख लेती हैं अपने कानों के संगीत में अपना प्यार
तुम उन्हें अपने कैनवस के रंगों में उतार लो

प्रेम की क़लम को थामने से पहले
प्रेमिका के दिल की झन्कार से पहले
ज़रा जान लेना दिल थामकर
लड़कियां कहां कहां छुपा लेती हैं अपना प्रेम
तुम्हें कुछ पता भी है!

2. आहटों का तांडव 

तीन पग में पूरी धरती
नापने का सपना देखने वाली औरत
असल ज़िंदगी में एक सड़क तक
अकेले पार नहीं करती !…

जब आदेश मिलता है
तो अकेली होने पर ज़हरीले जंगल में भी
पाल पोसकर तैयार कर देती है
दो वीर योद्धा …

फिर जब आदेश मिलता है
अग्नि -परीक्षा देने का
तो धरती फोड़ उसमें समा जाने का
हौसला रखती है

हौसले के कारण तो
टांग काट दिए जाने पर भी
एक औरत एवरेस्ट पर चढ़ गयी
एक औरत धरती में समा गयी
एक औरत ने गायब कर दीं
सारी सड़कें अपने ख़वाब में
और नाप ली सारी धरती
तीन पग में।

तीन पग में
धरती नाप लेने वाली औरत
अपनी खिड़की से
सड़क पार का चाँद नहीं ताका करती
वह भर लेती है अपनी दोनों आँखों में
चाँद और सूरज एक साथ
उसके हांथों की उँगलियों से
एक साथ झर उठते हैं
आकाश के टिमटिमाते तारे
जुगनुओं से भर गया है मेरा अहाता
किसी भैरवी की नयी बंदिश
अभी उठने को है....

हौसलों का डमरू
मेरे बादलों में गूँजता है
आहटों के तांडव से थिरक उठता है
कोई नटराज नयी मुद्रा लिए हुए.

3.   ताला , राखी , भाषा , आंखें 

 ताला -
बेबस लटका रहा
घर के बाहर
चाबी के इंतज़ार में। ....

 राखी-
 बंधी पड़ी  रही
पोस्टमैन के पास
कलाई के इंतज़ार में। …

 भाषा-
कतार में रही
उनकी जिद में
पहचान के इंतज़ार में । …

 आँखें-
 देर तक तकतीं रहीं
 सपने में आसमान
 इन्द्रधनुष के इंतज़ार में

4 . प्रतिकिया 

वह  प्रेम लिख रही थी ,
प्रतिक्रिया मिली - क्रांति लिखो

वह  क्रांति करने लगी,
प्रतिक्रिया मिली - प्रेम करो

वह बायो पढ़ने लगी ,
प्रतिक्रिया मिली -आध्यात्म जियो

वह घुँघरू की दुकान खोलकर बैठ गयी ,
 प्रतिक्रिया नहीं मिली

 इस बार कला जागी थी
 पोस्टर बनने  लगे,
 कविताएँ छपने लगीं ,
 घुंघरू की दुकान के सामने खड़ी स्त्री ने अचानक
 ब्रेकिंग न्यूज़ का बैकग्राउंड म्यूजिक बदल दिया है ,
 अब गिफ्ट में घुंघरू का चलन चल निकला है


5  . धीमी आवाज़ का शोर 

उसकी दबती धीमी आवाज़ को
तेज कर सकने की हिम्मत मुझे चाहिए

नहीं सुननी उसकी आवाज़ केवल अपने कान में
चाहती हूँ कि उसकी आवाज़ और उसकी पीड़ा से
गूँज उठे यह धरती और ब्रह्मांड्

उसे धीमे से कहने की आदत है
उसमें प्रतिष्ठित लोगों के सामने घबराहट है
वह चाहकर भी चीख नहीं पाया कभी
उसकी पीड़ा में घुट गयी उसकी आवाज़ की तेजी

उसने बच्चों को देखा तेज दौड़ते हुए
उसने बच्चों की तेज आवाज़ को भी सुना
उसने भी औरों की तरह तेज़ दौड़ना चाहा
उसने भी औरों की तरह तेज बोलना चाहा

लेकिन उसके पाँव औरों की तरह नहीं थे
उसे कोई नहीं दे सकता सामान्य पाँव
लेकिन उसकी दबी हुयी आवाज़ तो तेज हो सकती है

उसकी धीमी आवाज़ उसकी घुटी हुयी पीड़ा है
उसकी दबती आवाज़ को तेज किया जा सकता है
उसके हौसले को ऊँचा करने की कोशिश में
उसकी आवाज़ भी ऊँची उठती जायेगी क्या ?

उसकी आवाज़ को तेज चीखना सिखाना है
उसकी घुटन को उससे बाहर निकालना है
उसके बँधे हाथ कंधे से ऊपर तक खड़े करने होंगे
उसका हाथ सिर्फ़ कोहनी तक ऊपर उठता है

कितना संकोच है उसके हाथों में, उसकी आवाज़ में
उसके मन की पीड़ा में,उसके मन की जरूरतों में

वह धीमी आवाज़ में तेज़ गति से जल्दी से
अपनी बात कहकर चुप हो जाना चाहता है
लेकिन अपनी आँखों के सपनों में वह चुपचाप
ख़ुद को किसी ऊंचाई पर अकेले देखता है

सपने देखने वाली उम्र में बच्चे तो
"शोर वाली जेनरेशन" का ताना सुनते हैं
लेकिन वह तो तेज आवाज़ निकालने के संकोच में
धीमे से ही कुछ कहकर जल्दी से शांत हो जाना चाहता है

मैं उसकी धीमी आवाज़ से उठती
किसी आक्रामक बैचेनी में हूँ

उसकी दबती धीमी आवाज़ को तेज़ करने की हिम्मत चाहिए

6  . लाल ग़ुलाब ....!!

मुझे चाँद नहीं चाहिए तुमसे
न ही कोई लाल ग़ुलाब !
गुलाब की खेती मैंने कर ली है और
चाँद की ओर मैंने कदम बढ़ा दिए हैं
न मेरे होंठों को गुलाबी पंखुड़ियाँ कहो और
न अपनी उँगली से मुझे चाँद का ख्वाब दिखाओ
मेरे होंठों में सवालों के काँटे हैं और
मेरे ख़वाब में मेरा पूरा आसमान
मैं सिर्फ़ ग़ुलाबी और लाल रंग कब तक पहनूं
तुम मेरे लिबास का रंग तय न करो
स्त्री !! तो तुमने रच ली नयी
जो खुले आम तुमसे प्रेम करे
तुम मेरी आँखों में न देखो, न रंग भरो मुझमें
एक अपना नया चित्र खींचो, कोई नयी बात बोलो
नहीं चाहिए मुझे तुमसे कोई ग़ुलाब न कोई चाँद
न रंग, न कोई ख़वाब , न कोई स्वप्निल प्रेमकथा
न अपने लिए चाहिए तुम्हारी रची कोई नयी भाषा
मैं एक नयी भाषा के साथ तुमसे संवाद करना चाहती हूँ

7. अभी तो उसे पैदा होने दो !

हाँ ,उस माँ को मालूम है
बेटी के होने का मतलब
कितना समझाया उसे कि
बेटी भी पढ़ -लिखकर आगे
तुम्हारा सहारा बन सकती है
नहीं माना उसने एक बार भी
आँसू भी नहीं थम सके उसके
न ही उसने मुझे कहने दिया -
अभी तो उसे पैदा होने दो !
वह खुद ही लगातार
एक के बाद एक ,
कई-कई किस्से
सुनाये जा रही थी लगातार
जीने की कोशिश में मरती हुई
मारी जाती ,जलाई जाती हुई
जलती हुयी ,घुटती हुयी ,तड़पती हुई
लड़कियों के किस्से-दर-किस्से
उन्हें घर में ही मारा और
जला दिया जाता
बिना किसी डर के।
वह माँ थी
आज ही बेटी के
पैदा होने से पहले ही
उसे जवान होकर मरता हुआ देख रही थी
"जल्लादों ने बहुत तड़पाकर मारा उसे
उनकी माँगों का मुँह बंद ही नहीं होता था"
अपनी अजन्मी बेटी की
जवानी की मौत पर
ज़ार-ज़ार रोये जा रही थी.।
उसके आँसुओं ने
जबड़ा थाम लिया था मेरा ,
और शब्द बहे जा रहे थे
उसके आँसुओं से मिलकर।
मैं अपनी धुन में
किसी नदी की राह में
उन अनवरत आँसुओं को
मिला देना चाहती हूँ
जो सींच सके उस धरती को
जो लड़कियों की लाशों के मलबे से
हर तरफ बंजर हुयी जाती है
एक हरा भरा उद्यान जहाँ
लड़कियाँ चिड़ियों सी हँसे
और इन्द्रधनुष सी चमके
उनके उन्मुक्त आकाश को
कोई धुआं काला न कर सके
कोई चहक घुटन न बन सके
बस करो !
अभी उसे पैदा तो होने दो।
उसे जिन्दा रहने की लड़ाई आती है
उसके साथ पूरी नई फसल का भरोसा है।
वह मार दिए जाने वाले
इन आंकड़ों से नहीं डरेगी
यू .पी और बिहार में सबसे ज्यादा होती हैं
दहेज़ हत्याएं और
कन्या भ्रूण हत्या के आंकड़ों को तो
आँसू पोंछती माएँ रास्ता दिखा देंगी।

8 . बादलों के सफ़ेद फाये !

बंजर ज़मीन से टकराकर
बदहवास लौट आती है
दबी हुयी कोई चीख़
थके पांवों से बेहाल
छोड़कर अपनी चप्पलें
अपनी क़ैद में वापस !
फिर चढ़ जाती हैं नंगे पांव
ऊँचे ख़ूबसूरत पहाड़ों पर
लिपट-लिपट जाती है
हवा के किसी झोंखे से
उड़ जाती बादलों के फाये पर
बहने लगती है बेलगाम
तेज़ बहते पानी की लहरों संग
खिलखिला उठती है !
पानी की लहरों के बीच
किसी पत्थर पर बैठ
वह दबी हुयी चीख़
जो बरसों बाद
घर से बाहर भागती है.…
सुना नहीं गया उसे कभी भी !
न आज जब वह खिलखिला उठी
न तब जब उसे दबा दिया था जोर से
बहरे और गूँगे होने का चलन
अब हमारी चमकदार पहचान है
हम आबाद शहर के चौराहे पर हैं
जिसकी हर राह की मंज़िल
किसी वीरान बस्ती से मिलती है
जहाँ चीखें बेख़ौफ़ खिलखिलाती हैं
वीरान बस्ती का पता सबकी ज़ेब में है
ज़ेब में नन्हीं पाज़ेब खनकती है
ज़ेब में कोई लोरी सिसकती है
ज़ेब से जब निकल भागता है कोई मिल्खा
तब दुनिया के हाथों से ताली बज उठती है
वीरान बस्ती में हर रात
किसी थियेटर के मंच पर
यही रंगीन जश्न होता है
फ़िर कोई चीख बेख़ौफ़
खिलखिलाकर
बदहवास लौट आती है
किसी बंज़र ज़मीन से टकराकर
थके पांवों बेहाल
छोड़कर अपनी चप्पलें
अपनी कैद में वापस !
उसकी गोद में गिर पड़ते हैं
नीले बादलों के सफ़ेद फाये









  • हमारी मासूम लड़कियाँ क्या जाने ,
    कौन मलाला ?
    _________________________
    उसकी उम्र 17 साल है । वह दिखने में बहुत सुन्दर मासूम है ।
    बालों को सजाने का तरीका और
    मुस्कुराने का हसीन अंदाज़ उसे खूब पता है।
    वह जब जी चाहे घर पर भरपूर नींद सोती है।
    वह खूब जी भरकर कार्टून देखती है।
    उसे मैग्गी पकाना खाना खूब आता है।

    उसे कहाँ मालुम किसी मलाला (16 ) के बारे में ?
    उसे किसने बताया दुनिया भर की लड़कियों के किसी अधिकार के बारे में ?
    उसे कहाँ पता कि उसे क्या-क्या नहीं पता अपने बारे में ?
    उसके भीतर क्यों उठे कोई आग
    कि उसे मरने से पहले बोलना है
    भले ही उसने वज़ूद के बंकरों पर
    आग बरसाते बम फटते देखे हों
    कि उसे मरने से पहले बोलना है
    भले ही उसकी आवाज़ कोई न सुने
    उसने जाना है कि बोलने वाली लड़कियाँ
    बुरी और बदनाम मानी जाती हैं और
    ज्यादा जानने पर जान को भी खतरा है
    वह नादाँ बने रहने की अदाएं जानती है
    ज़िंदा रहने की ख़ातिर नादाँ चेहरा लिए
    मासूम अदाओं के लिबास में लिपटी लड़की
    हमारी मलाला है क्या ....?
    जो पढ़ने के लिए लड़ती नहीं
    जो मरने से पहले बोलने की जिद नहीं रखती
    जो गोलियों से बहुत दूर गुड़िया और कार्टून के खेल
    और मैग्गी के स्वाद लिए सोलहवें साल की भरपूर नींद सोती है।
    न जाने कितनी मासूमाऐं हमेशा जीने की ख़ातिर
    कभी नहीं बोलती और भरपूर सोयी नींद में रहकर
    लज़ीज स्वाद और खूबसूरत अदाओं में जिन्दा हैं।
    हमारी मासूम लड़कियाँ क्या जाने
    कौन मलाला ?
    कैसे बनती मलाला ?
    जो बच्चों की खातिर लड़ती हो
    जिसने चार सौ विद्यालयों को
    खाक में जलते देखा हो
    जिसने पढ़ने जाती लड़की का
    पढ़ाई करने का हक़ छिनते देखा हो
    जो भाइयों के ख़िलाफ़ बोलने उठ खड़ी हो।
    मलाला और फूलनदेवी में फ़र्क़ पर बातचीत किन पाठों में होगी
    कौन चाहेगा इनके बारे में मासूम लड़कियों को बताना
    कौन रखना चाहता अपने घर में
    एक मलाला ,एक फूलनदेवी !
    कोई क्यों चाहेगा मलाला जैसी बहन ,बेटी
    या फूलनदेवी जैसी पत्नी या माँ !!
    (भले ही पढ़ने के हक़ बहनो के छीने गए हों भाइयों की खातिर
    और पतियों ने सालों तक घर में कैद पत्नी के किये बलात्कार)
    सब जग नौ देवियों की आस्था से जगमग है
    कानों में देवी के छंदों का संगीत रोज़ बज रहा है !
    __________________________________
    उन दिनों से पहले कहाँ थी यह समझ कि ज़िंदगी हर वक़्त इम्तहान लिया करती है.…
    1 - जून के महीने में जब राजधानी पानी की किल्लत से जूझ रही हो। ऐसे में भले ही आप पॉश कॉलोनी में रहते हों और आपने 'नये मेहमान ' एकांकी पढ़ा हो तब भी क्या फ़र्क़ पड़ेगा आपकी मुश्किल में। अगर ऐसे में कोई मेहमान आपके घर आ जाये। उनके साथ छोटा बच्चा भी हो। तो जब तक पास के मार्केट से बिसलेरी वाटर केन आएगा तब तक भले ही सामने के फ्लैट में पानी के दो टैंक भरे हों और आपके घर एक बूँद भी पानी न हो। तब भी पड़ोसी आपको एक भी बोतल पानी माँगने से भी नहीं देगा क्योंकि उसे नौकरानी से सुबह-सुबह अपने घर का फ़र्श और कपडे धुलवाने हैं। खैर। ....
    (माना कि ज़िंदगी इम्तहान लेती है )
    2 -जब आप ऑफिस जाने से पहले बच्चे को किसी प्ले स्कूल में छोड़ते हों और अचानक किसी दिन वहाँ पहुँचकर आपको पता चले कि आज वहाँ छुट्टी है। और आपके ऑफिस में आज कोई जरूरी मीटिंग है। परिवार और रिश्तेदार का कोई व्यकित शहर में नहीं है। तब कोई ऐसा दोस्त जिसका बच्चा आपके बच्चे की उम्र का हो। उस वक़्त दोस्त की शक्ल में ईश्वर नज़र आता है। आप बच्चे को दो घंटे के लिए वहाँ छोड़कर मीटिंग करके वापस बच्चे को लेने आ जाते हैं। लौटने पर बच्चा बिना पायजामे के मिलता है। क्योकि बच्चे ने पहना हुआ पायजामा गन्दा कर लिया था। बच्चा भी थोड़ा परेशान मिलता है क्योंकि गाँव में पले हुए बच्चों की तरह कभी भी उसे बिना पायजामे के रहने की उसे आदत नहीं थी। आपको परेशानी हुयी मन में कि दोस्त ने अपने बच्चे का पायजामा या दूसरा डाइपर क्यों नहीं पहना दिया। खैर …
    (माना कि ज़िन्दगी इम्तहान लेती है )
    3 - जो दिल्ली को जानते हैं उन्हें पता है कि यहाँ नर्सरी में तीन साल के बच्चे के दाखिले के सामने तीस साल के अनुभव और सारी पढ़ाई लिखाई गयी तेल लेने। आप सिर नीचे करके उल्टा नाचने को तैयार रहते हैं। मतलब यह कि स्कूल वाले केवल एक घण्टे का समय देकर कोई भी नया कागज़ लाने को कह दे , तो आप उससे बिना बहस किये सीधे कागज़ लाने की जुगाड़ में निकल जायेंगे। आपके साथ तीन साल का बच्चा गाड़ी में बैठे -बैठे सो गया हो। और आपकी घरेलू नौकरानी भी छुट्टी पर गयी हो। तब आप पुराने कटु अनुभव के बाबजूद बच्चे को किसी ऐसे दोस्त के घर एक घंटे के लिए छोड़ देंगे जो आपके बच्चे को खूब पसंद करता हो और उसे क्यूट - क्यूट कहकर उसके खूब फोटो खींचता हो। जब आपने स्कूल का माँगा कागज़ जमा करके बच्चे का नर्सरी दाखिला लेकर विजय भाव के साथ दोस्त के घर थैंकफुल पहुंचे अपने बच्चे को लेने ;तो दरवाजा खोलते ही दोस्त ने दरवाजे पर ही बच्चे को दे दिया और उसकी पॉटी शु पर आपको एहसान तले रौंद डाला। खैर.... (माना कि ज़िन्दगी इम्तहान लेती है )
    4 - किसी बोर हो रहे अकेले रहने वाले मित्र ने आपको शाम मज़े से बिताने के लिए अपने घर बुलाया हो और बात -बात में उससे कोई हल्का -फुल्का कोई छोटा सा फेवर आपने अपने लिए उससे कह दिया हो। ऐसे में मित्र उस काम के लिए मना करने की बजाय सीधे आपको अपने घर से चले जाने को कह दे। यह ख्याल भी न रखे कि उसने खुद ही तो बुलाया था शाम मज़े से गुजरने के लिए। तो आपको उठकर चले आने और पूरी स्थिति समझ पाने में कितनी भी मुश्किल हो सकती है। क्योंकि आपने तो उसको दोस्त समझकर ही कुछ उम्मीद कर ली थी। खैर…
    (माना कि ज़िन्दगी इम्तहान लेती है )
    घरों में अक्सर बच्चे स्कूल से रटाया हुआ गाना दोहराते हैं -बोली कोयल मीठे बोल
    देती कानों में रस घोल
    हम बच्चे भी मीठा बोलें
    सबके कानों में रस घोलें
    इससे कितना सुख पायेंगे
    सबके प्यारे बन जायेंगे।
    सबके प्यारे बन जाने का स्वप्न जिस ज़ुबान में बच्चे सीख रहे हैं। उनके पाठ ज़िंदगी के अनुभवों में उतरकर कहाँ फलीभूत होंगें , जब वे ज़िन्दगी के इम्तहानों से गुजरेंगे ?
    (बंद मुँह से बोलते हुए )
    वे सदैव संवेदनशील रहे , बौद्धिक रहे ,प्रबुद्धों के कद्रदान रहे। उनके जैसे ज्ञान का दूर-दूर तक कोई उदाहरण नहीं। उनके आस-पास ही नहीं दूर-दूर तक के लोगों ने उन्हें ऐसा ही जाना। संवेदनशील होने के नाते उन्होंने हमेशा न्याय की बात की। इसीलिए हर संस्था में उनका नाम आदर के साथ शीर्ष पर रहा। बात यहीं ख़त्म नहीं होती। वे पारस हो गए। जिस पर हाथ रख दें वह सोना हो जाए। उन तक पहुँचने की होड़ में लोग कुछ भी कर गुज़रने को तैयार। .... उनके नाम की सिफ़ारिश का मिल जाना मतलब आराध्य के चरणों की पावन, कल्याणकारी ,पवित्र धूल मिल जाना। उनकी भेजी सिफारिश के आगे किसी की भी औक़ात धूल में मिल जाए। चाहे वह सेवा से मिली हो या किसी अन्य कारण से..... । संस्थाओं ने कभी उनके विरोध में मुँह नहीं खोला। भले ही अपने नाम पर पक्षपाती होने का दाग़ लगा लिया हो। आखिर शीर्ष पर किसी को तो रखना ही होगा। महत्ता शीर्ष से ज्यादा तो उस गर्दन की है जिस पर शीर्ष टिका है।
    इस खबर से क्या फ़र्क़ पड़ेगा कि अस्पतालों में स्पोन्टिलाइटिस के मरीज़ बढ़ रहे हैं.....
    आँखें ठीक हैं लेकिन नज़र के चिकित्सकों की बढ़त बनी हुयी है।

    क्या अब भी मुझे उन्हें संवेदनशील और प्रबुद्ध मानते रहना होगा जबकि वे पारस बनते- बनते पत्थर बन गए ?
    (बंद मुँह से बोलते हुए )
    शिक्षक दिवस पर कुछ यादें !
    _________________________
    (1 )
    " सर ! आपसे कुछ बात करनी है…"
    " हाँ ,कहो "
    " सर ,मेरे साथ के सभी विद्यार्थी बात कर रहे हैं कि इस बदनाम लेखिका पर काम करोगी तो किसी साक्षात्कार में चयन नहीं होगा। "
    " हाँ ,तो साक्षात्कार वाले कहें कि सती हो जाओ तो हो जाना। "
    उन्होंने चलते -चलते ही इतनी बात कही और चले गए।
    इसके तीसरे दिन मैं उनसे मिली उनके चेम्बर में उसी बदनाम लेखिका के ऊपर बनाई गयी अपनी सिनोप्सिस के साथ।
    उसी लेखिका पर किये गए काम के साथ साक्षात्कार भी दिया और उच्चतर शिक्षा आयोग ने प्रवक्ता पद पर चयन भी किया।
    आज भी उस एक वाक्य को नहीं भूलती कि "साक्षात्कार वाले कहें कि सती हो जाओ तो हो जाना "....
    यह एक अध्यापक की भाषा का एक वाक्य है जिसने मुझे हमेशा के लिए 'साक्षात्कार वालों ' से निडर बना दिया।
    (2)
    एक विद्यालय में एक अध्यापिका को छात्रा के पिता से कहते सुना कि "अगर इस लड़की का पढ़ने में ध्यान नहीं लगता तो शादी कर दो इसकी।"
    (3)
    एक अध्यापिका को कहते सुना कि "स्कूल में लड़कियों को एकादशी ,अमावस्या के बारे में बताना चाहिए। आख़िर आगे जाकर उन्हीं को तो घर चलाना है। "
    .....और भी है बहुत कुछ , जो लड़कियों की शिक्षा को उनके सामाजिक स्टेटस से जोड़ता है। ………………………
    ताला -
    बेबस लटका रहा
    घर के बाहर
    चाबी के इंतज़ार में। ....
    राखी-
    बंधी पड़ी रही
    पोस्टमैन के पास
    कलाई के इंतज़ार में। …
    भाषा-
    कतार में रही
    उनकी जिद में
    पहचान के इंतज़ार में । …
    आँखें-
    देर तक तकतीं रहीं
    सपने में आसमान
    इन्द्रधनुष के इंतज़ार में। ...